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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तों जिज्ञासुरथार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।।
(गीता ७।१६)

हे भरतवंशियोंमें श्रेष्ठ अर्जुन! उत्तम कार्य करनेवाले अर्थार्थी, आर्त्त, जिज्ञासु और ज्ञानी- ऐसे चार प्रकारके भक्तजन मुझको भजते हैं।

पहले तीन अज्ञानी हैं और चौथा ज्ञानी है। ज्ञानी अर्थात् निष्कामी है। अज्ञानी इसलिये कि वे माँगते हैं, भगवान् तो बिना माँगे ही देते हैं। अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु कष्ट निवारणके लिये मुक्तिके लिये प्रार्थना करता है। ज्ञानी ऐसा निष्कामी है कि देनेपर भी नहीं लेता, माँगना तो दूर रहा। 'एकभक्तिर्विशिष्यते' मैं ज्ञानीकी अत्यन्त प्रिय हूँ वह मुझे अत्यन्त प्रिय है, प्रह्लाद अतिशय प्रिय है। ज्ञानी उसे कहते हैं जिसके हृदयमें ज्ञान हो। भगवान्के तत्व रहस्यको जाननेवाला हो। प्रहादको भगवान् कहते हैं वर माँग, प्रह्वाद बोले क्या मुझे छल रहे हैं? क्या मैं वणिक हूँ? सौदा करता हूँ? भगवान् कहते हैं-मेरी खुशीके लिये माँग। प्रह्लाद कहते हैं आप बार-बार माँगने को कहते हैं, अवश्य ही मेरे मनमें माँगनेकी इच्छा छिपी इच्छा हो तो वह न रहे। एक अन्य कथा सुनी हुई है प्रह्लादको जब भगवान्ने बहुत कहा तब प्रह्लादने कहा कि आप देनेका वचन दें। भगवान्ने स्वीकार किया तो प्रह्लाद बोले कि सबका उद्धार कर दें। भगवान् बोले उनका पाप-पुण्य कौन भोगेगा? प्रह्लाद बोले-मुझे भुगता दें। भगवान् बोले-तुमको कैसे भुगतायें। प्रह्लाद बोले-सबको माफ कर दें। भगवान् बोले-सबका उद्धार कैसे हो सकता है? प्रह्लाद बोले

जैसी आपकी इच्छा। भगवान् बोले-जो मन, वाणी, शरीर किसी प्रकारसे भी तुम्हारे संसर्गमें आ जाय, दर्शन-स्पर्श कुछ भी करेगा, उसका उद्धार हो जायगा। इसीलिये तुलसीदासजी कहते हैं।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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