गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
|
443 पाठक हैं |
इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
हे अर्जुन! जो भक्त जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूँ,
क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकारसे मेरे ही मार्गका अनुसरण करते हैं। भगवान्
सत्संकल्प हैं, उनकी इच्छासे ही हमारा कार्य बन जायेगा। भगवान्को चाहते रहो
भगवान् अवश्य मिलेंगे। हम स्वयं ही विलम्ब होनेके कारण हैं। भगवान् तो बिना
बुलाये ही आते हैं। फिर हम याचना करें तो भगवान् रुक ही कैसे सकते हैं। हम
हृदयसे नहीं चाहते।
लगन लगन सब कोई कहे लगन कहावे सोय।
नारायण जा लगनमें तन मन दीजे खोय।।
पुत्रके लिये, धनके लिये भगवान्से प्रार्थना करना तुच्छ है, इतने बड़े आदमीसे
इतनी छोटी प्रार्थना। हमें तो वह चीज माँगनी चाहिये, जिसका कभी नाश न हो।
सूर्य चन्द्रमाका नाश होनेपर भी उसका नाश न हो ऐसी माँग पेश करनी चाहिये।
भगवान् ऐसी माँग पूरी कर देते हैं। जो माँग पेश नहीं करते, उनका कार्य और
जल्दी सिद्ध होता है। भगवान् कहते हैं- 'नियोंगक्षेम आत्मवान्' (गीता २।४५)।
राग-द्वेष, प्रिय-अप्रिय सब द्वन्द्वोंसे रहित हो जा, केवल मेरे परायण हो जा,
मेरी शरण हो जा। भगवान् तुरन्त प्रकट हो जाते हैं, सदाके लिये सुखी कर देते
हैं। भगवान्से कोई चीज माँगनेकी आवश्यकता ही नहीं है, यदि
माँगनेकी इच्छा हो तो भगवान्को ही माँग ले। भगवान् नित्य-वस्तु हैं सदाके
लिये सुख-शान्ति प्राप्त हो जाय, यदि दूसरी माँग पेश करनी हो तो यह करे कि हे
प्रभु हम आपसे मित्रता चाहते हैं, आपसे प्रेम करना चाहते हैं और भी माँग करनी
हो तो सदाके लिये सुख माँगे और नीचे उतरे तो स्वगादि माँग सकते हैं।
|
- सत्संग की अमूल्य बातें