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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।



लोग कहते हैं कि भगवान् भक्तोंका उद्धार करें इसमें क्या निहोरा। पापियोंका उद्धार करते हैं तभी तो पतितपावन हैं। बात तो सही है। ठहरे। कोई कहे कि मैं पतित हूँ। मेरा उद्धार करें तो पतितपावन मानूँ। भगवान् तो पतितपावन हैं ही। आप नहीं मानें तब भी उद्धार करते ही हैं। भगवान् न्यायकारी और पतितपावन दोनों हैं। दोनों बातें एक जगह कैसे रह सकती है? ईश्वरका कानून ही अलौकिक है। ईश्वरमें दोनों बातें हैं-न्यायकारी और पतितपावन दोनों हैं। उसके लिये न्यायकारी हैं जो लिये पतितपावन हैं। जो भगवान्को पतितपावन पुकारता है, कहता है कि आप सर्वशक्तिमान हैं, आप सब कर सकते हैं। न्यायकी बात आप जानें, आप पतितपावन हैं और मैं पतित हूँ बस और किसी बातसे मुझे मतलब नहीं है। कानूनकी रक्षा करके माफी तो दयालु राजा भी दे देते
हैं। अपराधीको दण्ड-विधान करके कितने ही कैदियोंको राजालोग भी छोड़ देते हैं। उसकी इतनी स्वतन्त्रता है ही। राजासे दयाकी याचना करनेपर कोई दोषी नहीं ठहराता है। राज्यमें किसी उत्सव आदिके मौकेपर कैदी छोड़े जाते हैं, यह कानून है। भगवान्के राज्यमें यह कानून है कि जो कैदी छूटना चाहे वही छोड़ दिया जाता है। कितना दयालुतापूर्ण कानून है, जो मुक्ति चाहता है उसीको भगवान् मुक्ति दे देते इसमें तो आश्चर्य ही क्या है। हमलोगोंको भगवान् मनुष्य बनाते हैं, यह बिना चाहे ही मुक्तिका मौका देना है।
कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस बिन हेतु सनेही।

भगवान् विशेष कृपा करके बिना हेतु ही मौका देते हैं, हमलोंगों के आचरणोंकी तरफ नहीं देखते। भगवान् प्रेमी हैं, दयालु हैं, बिना ही कारण प्रेम और दया करनेवाले हैं, सुहृद हैं- सुहृदं सर्वभूतानाम् (५।२९)। यह मौका कभी ही मिलता है, क्योंकि जीव असंख्य हैं भगवान् सभीको ही मौका देते हैं। मनुष्य-शरीर दिया, मुक्तिका द्वार मिला। फिर भी सब मुक्त नहीं होते, इसमें हेतु यह जीव स्वयं ही है। भगवानन्ने तो बड़ा मौका दिया और जो मौका माँगे उसे भगवान् मौका देनेको तैयार हैं-

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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