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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते।। (गीता १०।१०)

उन निरन्तर मेरे ध्यान आदिमें लगे हुए और प्रेमपूर्वक भजनेवाले भक्तोंको मैं वह तत्वज्ञानरूप योग देता हूँ जिससे वे मुझको ही प्राप्त होते हैं।
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुतानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।
(गीता ९।२२)

जो अनन्यप्रेमी भक्तजन मुझ परमेश्वरको निरन्तर चिन्तन करते हुए निष्कामभावसे भजते हैं, उन नित्य-निरन्तर मेरा चिन्तन करनेवाले पुरुषोंका योगक्षेम मैं स्वयं प्राप्त कर देता हूँ।
अप्राप्तकी प्राप्ति और प्रासिकी रक्षा करते हैं, मदद देनेको तैयार हैं। जो निरन्तर भजन करता है उसके लिये यह कानून लागू पड़ता है। 'हे नाथ मैं आपकी शरण हूँ'-इतना कहनेसे भी भगवान् उद्धार करते
हैं। भगवान्ने विभीषणसे कहा है-

सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते।
अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतदव्रतं मम्।।
(अ० रा० यु० ३।१२)

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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