गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
ज्ञानमार्गसे प्राप्त हुए योगीकी दृष्टिमें सृष्टि ही नहीं है। उसको प्रतीति
होती है कि संसार उसका आत्मा ही है। यदि मेरी स्तुति आदि करके दूसरोंको लाभ
हो जाय तो क्या हानि है? यह भाव जिसके हृदयमें होता है वह महात्मा ही नहीं
है। महात्माके हृदयमें ऐसा कोई धर्मी होता ही नहीं। परमात्माको प्राप्त हुए
पुरुषके लिये ज्ञानकी दृष्टिसे राम, कृष्ण, अल्ला, खुदा सब उसके ही रूप हो
गये, फिर जो जैसी जिस रूपकी उपासना करता है उससे छुड़ाकर अपने नाम-रूपकी पूजा
कैसे करवा सकता है। भक्तिके सिद्धान्तसे तो पहले ही वह अपनेको सेवक मानकर
चलता है। उससे अपनी पूजा आदि कैसे करवायी जा सकती है।
भगवान्की दयालुता
अवतारका शरीर मायिक नहीं है। ब्रह्माकी सृष्टि मायिक है। भगवान् श्रीकृष्ण
सशरीर ही परमधामको चले गये, यह बात भागवतमें आती है। अर्जुनको भगवान्ने
विश्वरूप दिखलाया और तुरन्त ही चतुर्भुजरूप हो गये। अर्जुनकी प्रार्थनासे ही
दोनों रूप दिखलाये, प्रादुर्भाव और तिरोभाव होना हुआ, जन्मना और मरना नहीं।
जन्मके समय भगवान् श्रीकृष्ण चतुर्भुजरूपसे प्रकट हुए। श्रीदेवकीजीके
प्रार्थना करनेपर भगवान् दो भुजावाले हुये। यह द्विभुजरूप देवकीके गर्भसे
नहीं जन्मा। इसी प्रकार अन्त समयमें इस शरीरसे अप्रकट हो गये। भगवान्का शरीर
दिव्य है। एक बार बलदेवजीने तीन वर्षके बछड़ोंसे गायोंका इतना अधिक प्रेम
देखकर ध्यान लगाकर देखा तो सब बछड़े श्रीकृष्णस्वरूप दिखलायी पड़े। उस समय
श्रीकृष्णने उनके पूछनेपर सारी घटना सुनायी। ब्रह्मा बछड़े हर ले गये। उनके
स्थानपर भगवान्ने जो बछड़े बनाये, वे ब्रह्माकी सृष्टिके नहीं थे।
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- सत्संग की अमूल्य बातें