गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
भगवान् तो सबकी बागडोर हाथमें लेनेके लिये तैयार हैं। जिस समय हमारे सारे काम
भगवान्की आज्ञानुकूल होने लगें तो समझना चाहिये कि हमारी बागडोर प्रभुके
हाथमें है। सबसे उत्तम सिद्धान्त यह है कि हम तो निमित्तमात्र हैं, भगवान् ही
सारे कर्म करा रहे हैं। उसकी पहचान यही है कि सारे कर्म भगवान्के अनुकूल हो
रहे हैं। हम लोगोंको निमित्तमात्र बन जाना चाहिये। भगवान् करायें वैसे ही
करना चाहिये। भगवान् विपरीत कर्म कभी नहीं कराते।
भगवत्प्राप्त पुरुष अपने नाम-रूपकी पूजा बिलकुल नहीं चाहता। उसमें
मान-बड़ाई-प्रतिष्ठा चाहनेकी गन्ध भी नहीं होती। व्यवहारके लिये ऐसा कहते
हैं-मानापमानयोस्तुल्य:।
शुकदेवजी जा रहे हैं, रास्तेमें बालक धूल फेंकते हैं, सभामें पहुँचते ही सब
लोग आदर देते हैं, उनकी दोनोंमें समानता है। भक्तिमार्गसे जानेवाले तथा
ज्ञानमार्गसे जानेवाले दोनोंमें यही बात होती है। गीता अध्याय १२ में भतिकी
तथा अध्याय १४ में ज्ञानकी बात कही गयी है।
ज्ञानके मार्गसे-कीर्ति-अपकीर्ति नामकी और सत्कार-अपमान देहका ही होता है,
गुणातीत पुरुष इनसे परे होता है। देह और नाममें उसका अहंकार ही नहीं होता,
महात्माओंमें ऐसा अभिमान होता ही नहीं कि यह मेरा नाम है। दीवालकी
निन्दा-स्तुतिसे कोई दु:खी-सुखी नहीं होता, ऐसे ही भक्तोंका देहमें अहंकार
नहीं होता।
भक्तके अहंकारके नाशका क्रम-पहले अपनेको सबका सेवक मानता है-
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- सत्संग की अमूल्य बातें