लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

443 पाठक हैं

इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


उस अविनाशी परब्रह्मका और अमृतका तथा नित्यधर्मका और अखण्ड एकरस आनन्दका आश्रय मैं हूँ।
केवल सत्यके पालनसे परमात्माकी प्राप्ति हो जाती है। भगवान् ही धर्मके रूपमें प्रकट होते हैं। धर्म, ईश्वर, सत्य और न्याय-इनमें कोई भेद नहीं है, इसलिये सत्यपर विशेष ध्यान रखना चाहिये। एक आदमी वाणीसे तो सत्य बोलता है, परन्तु कपट रखकर बोलता है, तो यह न्याय नहीं है। जो न्याय नहीं वह सत्य नहीं। न्याय ही धर्म है, धर्म ही भगवान्का स्वरूप है। धर्म है वही सत्य है। सत्य है वही धर्म है। हरिश्चन्द्रने सत्यका त्याग नहीं किया। वहाँ कोई झूठकी बात नहीं थी, जब उनकी स्त्री रोहताश्वको जलाने गयी थी, यदि वे जलाने देते तो धर्मका त्याग होता, न्यायका त्याग होता। न्यायका त्याग होना ही सत्यका त्याग है। कोई झूठ बोलता है, तो लोग कहते हैं-अन्याय करता है।

सत्यपर खूब जोर रखना चाहिये। भारी आपत्ति आ जाय तो मौन रह सकता है, यह छूट है। अपराध है, परन्तु माफी है। प्राण जानेके समय भी ऐसी छूट है। धर्मसंकटके समय दोनोंको तौल ले और जो न्याय मालूम दे, जो हलके दोष वाला हो, वह कर ले।

स्वाभाविक महात्मा और विशेषाधिकारयुक्त महात्मा-सभी महात्माओंकी यह स्वभाविक चेष्टा होती है कि सबका कल्याण हो, परन्तु उन विशेषाधिकारयुक्त महात्माकी कोई भी क्रिया असफल नहीं होती। शरीरकी, मनकी, वाणीकी सारी क्रिया सफल होती है। कोई भी उनकी क्रियामें रुकावट नहीं डाल सकता। जो कारक पुरुष होते हैं उनका शरीर अनामय होता है, क्योंकि बीमारी पापसे होती है। महात्मा पुरुषके शरीरमें बीमारी हो सकती है; क्योंकि उनके पूर्वके पाप हो सकते हैं, अवतार और कारकके नहीं हो सकते। महात्माओंकी बहुत-सी क्रिया प्रारब्धके संयोगवश होती है या स्वेच्छासे प्रारब्ध भोग होता है, परन्तु कारक पुरुषकी सारी क्रिया लोगोंकी श्रद्धा, प्रेम और उनके प्रारब्धसे होती है, ईश्वर प्रेरित होती है। साधारण लोगोंकी क्रिया पापमय भी हो सकती है। महात्माओंके द्वारा कोई भी पापकी क्रिया नहीं हो सकती।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book