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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।



मान-बड़ाई चाहनेवालोंकी श्रेणियाँ

महापुरुषोंके गुण-प्रभावकी बात सुननेसे, श्रद्धावान् पुरुषोंका सङ्ग, दर्शन, उनसे एकान्तमें श्रद्धाके विषयकी आलोचना करनेसे श्रद्धा बढ़ती है। उनकी किसी भी प्रकारकी क्रिया देखकर श्रद्धावान्को आनन्दमें, प्रेममें मुग्धता हो जाती है, बेहोशी हो जाती है। भगवान् कृष्णकी लीला देखकर गोपियाँ ग्वालबाल प्रेममें मुग्ध हो जाते थे, बेहोश हो जाते थे, यह श्रद्धाका फल है।

गीता १२। १३ से १९ के लक्षण जिनमें घटते हों, वही महापुरुष है, इनमें बहुतसे लक्षण स्वसंवेद्य हैं। दूसरा मनुष्य महापुरुषको पहचान सके ऐसे लक्षण शास्त्रमें बहुत कम लिखे हैं। प्रधानतासे इस प्रकार हैं-
उनकी सबपर दया रहती है, वे सबके हितमें रत रहते हैं। ज्ञानमार्ग भक्तिमार्ग दोनोंसे चलनेवालोंमें यह बात रहती है।
ज्ञानमार्ग— सर्वभूतहिते रताः। (गीता १२।४)
भक्तिमार्ग- मैत्रः करुण एव च। (गीता १२।१३)

दया और प्रेम होनेपर सुहृदता कहलाती है। उनके व्यवहारमें हृदयमें समता होती है। भगवान् कहते हैं-
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्॥

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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