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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


प्रवचन दिनांक ६-२-३९ गोरखपुर

असम्भवको सम्भव बनानेवाले भगवान् कहते हैं-चरणरजको लेकर पवित्र होनेके लिये मैं उन भक्तोंके पीछे-पीछे घूमता हूँ। अवध सरिस प्रिय मोहि न सोऊ। यह रहस्य निकलता है कि भगवान्में अवधवासियोंका प्रेम वैकुण्ठवासियोंसे भी अधिक है। शरशय्यापर भीष्म भगवान्का ध्यान करते हैं, भगवान् भी उनका ध्यान करते हैं। सीताजी अशोकवाटिकामें विलाप करती हैं, भगवान् भी वनमें वृक्षोंसे पूछ रहे हैं। रामकी व्याकुलता सीतासे भी बढ़कर हो रही है। वास्तव में तो महापुरुषोंके लिये महापुरुष ही प्रमाण हैं। कोई भी उदाहरण, दृष्टान्त केवल थोड़ा सा अंश समझानेके लिये दिया जाता है।

भगवान्का नाम-उच्चारण करनेसे कल्याण हो इसमें तो कहना ही क्या है, महापुरुषोंके नाम-उच्चारणसे भी कल्याण हो जाता है। उनके नामका उच्चारण करनेसे ही उनके भाव-गुण-चरित्र हृदयमें आ जाते हैं। उन महापुरुषका स्वरूप हम नहीं जानते, परन्तु नाम-उच्चारण करते ही उनका कोई स्वरूप हमारे हृदयमें अंकित हो जाता है, उनके चरित्र भी हृदयमें आ जाते हैं, भाव भी आते हैं, इन सबमें हेतु हुआ
महापुरुषका नाम। चित्र तो हमारे सामने है नहीं, चरित्रोंमें, लेखोंमें, गुणोंकी बातोंमें सब बातें नामपर ही निर्भर हैं, सबका आधार नाम ही है।

भूतकालमें जितने महापुरुष हुए हैं, उनका नाम याद करते ही उनके गुण आदिकी स्मृति होती है और कल्याण हो जाता है। जब महापुरुषके नामकी इतनी महिमा युक्तिसे सिद्ध होती है, तब भगवान्के नामको महिमा क्या कही जाय।
श्रद्धासे अधिक लाभ होता है और तुरन्त होता है। बिना श्रद्धा विलम्ब हो सकता है।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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