गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
(गीता ९।। २९)
मैं सब भूतोंमें समभावसे व्यापक हूँ न कोई मेरा अप्रिय है और न प्रिय है;
परन्तु जो भक्त मुझको प्रेमसे भजते हैं, वे मुझमें हैं और मैं भी उनमें
प्रत्यक्ष प्रकट हूँ।
भजनेवालोंमें भेद दीखता है यह न्याययुक्त है।
समदरसी मोहि कह सब कोऊ। सेवक प्रिय अनन्यगति सोऊ।।
सूर्य सब जगह समान होते हुए भी दर्पणमें प्रतिबिम्ब पड़ता है। काठमें नहीं
पड़ता। दर्पण पात्र है, यह पात्रकी विशेषता है।
अच्छे पुरुष अपनी सफाई नहीं देना चाहते, दूसरों की दृष्टि में जो दोष हैं, वह
उनकी दृष्टिसे स्वीकार कर लेते हैं। वास्तव में महापुरुषोंमें कोई दोष नहीं
होता। दूसरा कोई उनका अपराध समझता है तो वे उसे स्वीकार कर लेते हैं। यह उनकी
साधुता है, यह उनका समताका व्यवहार है।
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- सत्संग की अमूल्य बातें