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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


१६९. प्रह्लादने ऐसा वरदान भगवान्से नहीं लिया कि मेरा संग करनेवालेका उद्धार हो जाय। यह वरदान तो भगवान्ने अपनी प्रसन्नतासे ही दिया था और उसके साथी राक्षस प्रहादके कहनेके अनुसार चलते थे। हिरण्यकशिपुकी इतनी कड़ी रोक होनेपर भी वे लोग छिपकर भगवन्नाम जपा करते थे।
१७०. हर वक्त चेष्टा रखे-
(प्रत्याहार) काम क्रोधादिको हटाकर जगह पर कब्जा करना है।
(धारणा) जगहमें पाया रोपना है।
(ध्यान) नींव गाड़कर दीवाल बना देनी है।
(समाधि) मकान तैयार कर लेना है यानी भगवत्प्राप्ति कर लेनी है।
१७१. ऐसा सरल समय भविष्यमें नहीं मिलेगा। भविष्यमें ऐसे मनुष्य होंगे कि हम कहते हैं वही धर्म है, हमें ही धन दो, हमारी ही सेवा करो। ऐसे वह देनेवाला और लेनेवाला दोनों ही नरकमें पड़ेंगे। ऐसा अनुमान होता है कि नरक में भी शायद जगह न रहे। जैसे वर्तमानकालमें गांधीजीके आंदोलनसे सरकारकी जेलमें जगह नहीं रही। इसी तरह नरकादिकी जगह भी सीमावाली है।
१७२. मैं बांकुड़ेमें बीमार था, मेरेसे कुछ चेष्टा भी नहीं होती थी।

तब भी मेरे सामने इन लोगोंका जितना अभ्यास होता था, उससे चार आनेभर भी मेरे वहाँसे आनेके बाद नहीं रहा। मेरे सामने जितना साधन होता था, उतना भी नहीं हो रहा है, फिर मेरे बाद होगा, ऐसी आशा कैसे की जाय।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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