गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
प्रश्न-यदि आदमी एक बार तो सब कर्म भगवान्के अर्पण कर दिया, फिर आसक्तिके
कारण उससे शास्त्र विरुद्ध होता रहे तो क्या करे।
उत्तर-फिर भी जो काम करे, वे भगवान्के अर्पण करते-करते उन कर्मोंसे आसक्ति
छूट जायेगी, किन्तु कोई आदमी यह समझ ले कि पाप तो कर लें, फिर पीछे भगवान्के
अर्पण कर देंगे, ऐसे कर्म बिना भोगे नष्ट नहीं होते।
१६५. धन लुटा जा रहा है लूट लेना चाहिये। लोग खूब जोरशोरसे स्वार्थ-कुआर्थमें
रत हैं। परमार्थमें कम समय देते हैं। परमार्थमें थोड़ेमें ही भगवान् मिल जाते
हैं।
१६६. निष्कामभावसे लोगोंको खूब काम करना चाहिये खूब सेवा करनी चाहिये।
१६७. सत्संगसे कल्याण होता है। जिसे इस बातका विश्वास होगा वह नित्य
सत्संगमें जायेगा।
१६८. यदि मुझे मित्र मानकर साधन न करे तो मेरा मित्र बनने योग्य नहीं है,
क्योंकि उसके उलटा परिणाम होगा यानी भजन-ध्यान नहीं बनेगा। यदि वह कहे कि
मुझे तो विश्वास है कि कल्याण होगा। किस आचरण के भरोसे विश्वास है। मेरा
मित्र होनेसे कल्याण होनेका उसे विश्वास है और मेरी बातको पागलकी बात समझकर
उसका आदर नहीं करता। भगवान्ने गीता-(अ० १८ श्लोक ५८) में कहा है मेरेमें
चित्त लगानेसे संसारसमुद्रसे तर जायगा, यदि तू मेरे वचन नहीं मानेगा तो तेरा
नाश हो जायेगा।
प्रश्न-जैसे प्रह्लादके दर्शन करनेवालेका उद्धार हो गया ऐसे ही आपका करनेसे
उद्धार हो जायगा ऐसा मान लिया होगा।
उत्तर-मुझे भगवान्ने अभी ऐसा अधिकार नहीं दिया है यदि ऐसा अधिकार दें तो मैं
नहीं लूगा, क्योंकि ऐसा अधिकार लेनेसे मैं संसारमें आलसियोंको बढ़ानेवाला
हुआ।
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- सत्संग की अमूल्य बातें