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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।

१६१. भगवान् अपने भक्तोंपर मायाका प्रयोग उनको चेत करानेके लिये करते हैं।
१६२. अर्जुन बहुत श्रेष्ठ पुरुष थे। अर्जुनको भगवान्ने कहा कि मेरे सामने तुझे यह मोह कैसे प्राप्त हो गया। मेरे सामने भी माया तुझे दबा रही है फिर मेरे बिना तेरी क्या दशा होगी।
१६३. साधनका उपाय इस तरह निकाले- २ माला सबेरे, २ माला दोपहर, २ माला रात्रिमें। इस तरह धीरे-धीरे, थोड़ा-थोड़ा समय निकालकर अभ्यास बढ़ाये।
१६४. आजतक जो कुछ पुण्य-पाप किये हुए हैं, वे सब परमात्माके अर्पण करनेके बाद पिछले कर्म लागू नहीं पड़ते। सारे पिछले कर्म तो भगवान्के अर्पण कर दिये और आगे करे वे सब गीता अ० १२।। १० के अनुसार भगवदर्थ करे। यदि भगवदर्थ कर्म नहीं कर सकें तो जी काम करें उसे गीता अ० १२ श्लोक ११ के अनुसार भगवदर्पण करना चाहिये। भगवान् कहते हैं यदि तू मेरे अर्थ कर्म नहीं कर सकता है तो कर्म करनेके बाद मेरे अर्पण कर दे (गीता ९।२७)। इस प्रकार करनेसे तू शुभाशुभ कर्मसे छूटकर मुझे प्राप्त हो जायेगा (गीता ९। २८) । कर्म अर्पण तीन प्रकारसे कर सकते हैं-
(१) मेरेसे आजतक जो कुछ शुभ कर्म बना है, वह सब आपकी
प्रेरणासे बना है, वह सब आपके अर्पण है। मुझे इसका फल बिलकुल नहीं चाहिये और जो कुछ दूषित कर्म बन गया उसे आप मुझे भुगता दें।
(२) अच्छे कर्म भगवान्के अर्पण करनेवालेको बुरे कर्म भोगने नहीं पड़ते।
(३) मेरे दूषित कर्म माफ कर दें।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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