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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


१४२. प्रारब्धके अनुसार जितना शब्द बोलना है उतना ही बोल सकता है, जितना श्वास आना है उतना ही आ सकता है। इस बातको विचारकर मनुष्यको कामकी बात ही बोलनी चाहिये।
१४३. श्रीकृष्णचन्द्रजी महाराजने गीतामें कई जगह कहा है कि मैंने तुम्हें बहुत गोपनीय तथा गुह्य बात कही है। इससे यह भाव दिखाया मानो पहले किसीको नहीं कही हो (गीता १८।६४)। श्रीकृष्णचन्द्रजीकी गीताजी देखकर लोगोंके यह भाव होता है कि उनके सामने १८ अक्षौहिणी सेना मर गयी। उनका प्रभाव नहीं जाना। वह लोग मूर्ख थे, किन्तु यह बात समझनी अपनी भूल है। अब भी यदि श्रीकृष्णचन्द्रजी महाराज आ जायें तो हमसे भी यह बात होनी कोई बड़ी बात नहीं है।
१४४. ऐसे भक्त संसारमें दुर्लभ हैं जिन्हें भगवान्का मुख्तारनामा मिला हुआ है। आज यदि अधिकारप्राप्त पुरुष मिल जायँ तो हम सबका उद्धार हो जाय।
१४५. आपलोग चेष्टा करें तो सभी इस प्रकारके बन सकते हैं। एक
पुरुष भी ऐसा मिल जाय तो कल्याण हो सकता है, इसलिये उनकी खोज करनी चाहिये।
१४६. सेवा करनेके लिये कई लोगोंने नाम लिखा रखा है, किन्तु सेवा करनेवाला कोई एक ही निकलता है। में उन्हें वही काम बताऊँगा जो काम वह अच्छी तरह कर सकते हैं, किन्तु आलस्यके कारण करना नहीं चाहते, इसलिये मैं उन्हें नहीं कहता। कहकर उनकी इज्जत ही लेनी है। हजारों आदमियोंमें दस-बीस ही काम करनेवाले होते हैं।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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