गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
१४७. मैं इतना बीमार होकर भी शरीरसे कितना काम करता हूँ। मुझे कोई यह नहीं कह
सकता कि मैं आलसी हूँ। यह भले ही कह सकता है कि यह बहुत ज्यादा परिश्रम करता
है। लोग तो सत्संगके कलंक लगा रहे हैं कि सत्संग करनेवाले आलसी हैं, इसलिये
लोग सत्संगमें नहीं लग रहे हैं। यह नुकसान कम नहीं है, क्योंकि सत्संगमें जो
लोग लग सकते थे उन्हें वे रोकनेवाले हुए।
१४८. साधन करना चाहिये। साधन करनेसे उद्धार होगा।
१४९. अर्जुन भगवान्का भत था। उसे भी भगवान्ने कह दिया यदि तू मेरी बात नहीं
मानेगा तो नष्ट हो जायेगा, फिर और लोगोंकी बात ही क्या है, इसलिये उनके कहे
अनुसार चलना ठीक है।
१५०. अपना अवगुण स्वयं ही सोचना चाहिये। स्वयं ही सोचनेसे उसकी बुद्धिका
विकास होगा तथा दोषोंके नाश होनेकी चेष्टा भी होगी।
१५१. कई आदमी यह बात मान रखे हैं कि मेरा इनके संगसे ही उद्धार हो जायेगा,
किन्तु साधन नहीं करते। उनका यह मानना युक्ति संगत नहीं है, क्योंकि जिस
सत्संग की यह महिमा है कि अन्तकालमें उद्धार हो जायेगा, उसका फल यह थोड़े ही
है कि साधन कम हो जाय। सत्संगसे साधन तेज ही होना चाहिये।
१५२. गीताजी अर्थ, भाव, विषयसहित याद करनेवाला पहली पास है।
श्लोकोंके भावके अनुसार धारण करनेकी कोशिश करनेवाला दूसरी पास है। गीताजीके
अनुसार गुणोंको धारण कर लेना अवगुणोंको निकाल देना तीसरी भूमिका है।
१५३. सत्संगमें नियमसे जानेसे इस जन्ममें उद्धार हो जायेगा।
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- सत्संग की अमूल्य बातें