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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


नाथ एक बर मागऊँ राम कृपा करि देहु।
जन्म जन्म प्रभु पद कमल कबहुँ घटै जनि नेहु।।

१३५. बीमारीसे बहुत शिक्षा मिलती है। मन्दाग्निकी बीमारी साधन
करनेवाले पुरुषके लिये बहुत अच्छी है, क्योंकि धीरे-धीरे आदमीके शरीरको कमजोर करके सावधान कराती रहती है तथा अन्तकालतक चेत रहता है।
१३६. महाराज युधिष्ठिरका बर्ताव देखकर कितना भारी रोमांच होता है कि दुर्योधनके साथ कितनी भलाई करके भी कहीं गिनायी हो ऐसा मुझे याद नहीं आता। श्रीरामचन्द्रजी महाराजके बर्तावका तो कहना ही क्या है। जिस समय उनका बताव याद आता है उस समय रामचन्द्रजी महाराजकी शान्त मूर्ति सामने बँध जाती है। भरतजी, लक्ष्मणजी, दशरथजी, कौशल्याजी, सीताजी उन सबका ही बर्ताव बहुत उत्तम है; किन्तु सुमित्राजीका बर्ताव तो बहुत ही प्रत्यक्ष चमकता है। लक्ष्मणजीसे भी ज्यादा उत्तम समझा जाता है-

अवध तहाँ जहँ राम निवासू। तहँईं दिवसु जहँ भानु प्रकासू।
जीं पै सीय रामु बन जाहीं। अवध तुम्हार काजु कछु नाहीं।।
पुत्रवती जुबती जग सोई। रघुपति भगतु जासु सुतु होई।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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