गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
१२९. बर्ताव बहुत उत्तम होना चाहिये जैसे पाण्डवोंका कौरवोंके साथ और
श्रीरामचन्द्रजीका अपने भाइयोंके साथ और उनके भाइयोंका महाराज
श्रीरामचन्द्रजीके साथ था। श्रीभरतजीका मिलाप देखकर सुग्रीव और विभीषणको
पश्चाताप हुआ।
१३०. भगवत्प्राप्तिकी इच्छा इस प्रकारकी रखनी चाहिये कि सदाव्रत बाँटनेवाला
बनें यानी दूसरोंको मुक्त करा दें ऐसी इच्छा रखनी चाहिये, नहीं तो कमा कर
खानेवाला बननेकी चेष्टा करनी चाहिये। भिखारी होनेकी इच्छा नहीं करनी चाहिये,
यानी साधन करके ही भगवत्प्रासिकी इच्छा रखनी चाहिये।
१३१. वक्तामें सदाचार, विद्या और युक्ति हो तो लोगोंके ऊपर बहुत असर पड़ता
है। सदाचार में नि:स्वार्थभावकी बहुत आवश्यकता है।
१३२. कल्याणमें श्रद्धा ही प्रधान है।
१३३. जो आदमी यह चाहता है कि थोड़ा भजन करनेसे भगवान् मिल जायें, उनके लिये
तो भगवान्का भजन करना परिश्रम है। जो भजनका मर्म नहीं जानते उन्हें तो
परिश्रम ही होता है। वे तो बेचारे बोझा ढोते हैं। बोझा ढोनेवालेको मजूरी
मिलती है और उन्हें इसके बदले भगवद्विषयक धन मिलता है।
१३४. जिन्हें भगवान्के भजनमें आनन्द आता है वे चाहते हैं कि भजन-ध्यान छूटे
नहीं। उन्हें भजन-ध्यानका थोड़ा आनन्द आया है। जिन्हें भजनका पूरा आनन्द आ
गया वे तो भगवान्की प्राप्ति भी नहीं चाहते। यही चाहते हैं कि भजन-ध्यान
बढ़ता रहे। बार-बार जन्म हो और यही काम करें।
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- सत्संग की अमूल्य बातें