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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


११४. आढ़तिये एवं व्यापारी ग्राहकोंसे जो धर्मादेकी रकम वसूल करते हैं, वे रुपये धर्मादेके कामोंमें या चन्दे आदिमें दे सकते हैं, परन्तु जिस जगह अपना नाम हो, उस जगह लगाना पाप है।

११५. मठ गौशालाका पैसा जिस ग्रामकी गौशालाके निमित्तसे निकलता है उसी जगह ही लगाना चाहिये। दूसरी जगह लगाना पाप है।
११६. जो हर समय भजन, ध्यान, श्रीगीताजीका अभ्यास करे, उससे मैं बहुत प्रसन्न रहता हूँ।
११७. मुझे गीताजी बहुत प्यारी है, क्योंकि मेरे प्यारे प्रेमीकी बनायी हुई है।
११८. श्रीगीताजीके प्रचारमें जो थोड़ा भी सहयोग देता है, उसे भी बहुत लाभ है, जो पुस्तक सुधारकर लाता है, उसको भी बहुत लाभ है। जैसे दलालके साथ नमूनेका बन्डल ढोनेवालेकी भी मालिकसे मुलाकात होती रहती है।
११९. सबसे ऊँचा काम श्रीगीताजीका प्रचार करना और श्रीपरमात्माके ध्यानका है। इनमें भी श्रीगीताजीका प्रचार एक नम्बर है। इससे बढ़कर भी यह बात ऊँची है, जिस बातको सुनकर श्रीगीताजीका प्रचार करनेकी शक्ति बढ़े, उत्तेजना हो और ध्यानकी स्थिति बढ़े। ऐसी प्रभावकी बातें सुननेके लिये हर वक्त नहीं मिलतीं, इन्हें सब काम छोड़कर सुनना चाहिये।
१२०. जब यह विश्वास हो जाय कि मृत्यु होनेके बाद कौन पूछनेवाला है। माता, पिता, रुपया, बेटा कोई काम नहीं आयेगा। समयको क्यों धूलमें मिलाता है बिना प्रेम भगवान्की प्राप्ति नहीं होती, बिना तत्पर हुए प्रेम नहीं होता। यदि भगवान्से प्रेम करना चाहते हो तो उनके मनके अनुकूल बनी। श्रीभगवान्की इच्छा यही है कि भगवान्की भक्तिका प्रचार करना चाहिये। केवल यही उद्देश्य होना चाहिये कि श्रीभगवान् प्रसन्न हों। अपना मान, बड़ाई, पूजा, स्वार्थ शरीरका आराम न चाहे।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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