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			 गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
      ११०. सिद्धि दिखाना निन्दाकी बात है, तब भी भक्त लोग उस कामको संसारके हितके
      लिये कर लेते हैं। 
      १११. भगवान्का बर्ताव देखकर चित्तमें गदूदभाव तथा अश्रुपात होना चाहिये।
      किन्तु विषका कीड़ा विषमें ही प्रसन्न रहता है, उसी तरह परन्तु वास्तव में
      उसका दु:ख देखकर भी महात्मा लोग उसको मैलेसे निकालकर मारना नहीं चाहते। उसी
      प्रकार संसारके लोग संसारमें प्रसन्न हैं, इसलिये भगवान् बलात्कारसे कैसे
      निकालें। 
      ११२. भगवान् श्रीकृष्णके साथ दुर्वासा मुनिष्का बर्ताव, अश्वत्थामाद्वारा
      पाण्डवोंके पुत्रोंको अन्यायसे मारनेपर भी अश्वत्थामापर क्षमा। ब्राह्मणोंका
      इतना कड़ा बर्ताव होते हुए भी ब्राह्मणोंके साथ नरमाईका बर्ताव था। 
      ११३. प्रश्न-कामना छोड़नेके बाद भी कुछ बाकी रहता है क्या? 
      उत्तर-बहुत-सा काम हो जाता है, थोड़ा बाकी रहता है। 
      विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।
      निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति।। 
      (गीता २।७१) 
      
      जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं त्यागकर ममतारहित, अहंकाररहित और स्पृहारहित हुआ
      विचरता है, वही शान्तिको प्राप्त होता है, अर्थात् वह शान्तिकी प्राप्त है। 			
						
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- सत्संग की अमूल्य बातें
 

 
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