उपन्यास >> राग दरबारी राग दरबारीश्रीलाल शुक्ल
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चपरासी घूम पड़ा। दरवाजे पर खड़े-खड़े बोला, “गाली दे रहे हो, प्रिंसिपल साहब
?"
उन्होंने कहा, “ठीक है, ठीक है, जाओ, अपना काम करो।" “अपना काम तो कर ही रहा
हूँ। आप कहें तो अब न करूँ।"
प्रिंसिपल माथे पर झुर्रियाँ डालकर दीवार पर टँगे एक दूसरे कैलेण्डर को देखने
लगे थे। चपरासी ने उसी तरह पूछा, “कहें तो खन्ना पर निगाह रखना बन्द कर दूं।"
प्रिंसिपल साहब चिढ़ गए। बोले, “भाड़ में जाओ।"
चपरासी उसी तरह सीना ताने खड़ा रहा। लापरवाही से बोला, “मुझे खन्ना-वन्ना न
समझ लीजिएगा। काम चौवीस घण्टे करा लीजिए, वह मुझे बरदाश्त है, पर यह अबे-तबे,
तू-तड़ाक मुझे बरदाश्त नहीं।"
प्रिंसिपल साहब उसकी ओर देखते रह गए। चपरासी ने कहा, “आप बाँभन हैं और मैं भी
बाँभन हूँ। नमक से नमक नहीं खाया जाता। हाँ !"
प्रिंसिपल साहब ने ठण्डे सुरों में कहा, “तुम्हें धोखा हुआ है। मैं तुम्हें
नहीं, खन्ना के लिए कह रहा था। टुच्चा है। रामाधीन से मिलकर मीटिंग करने का
नोटिस भिजबाता है।" चपरासी को यक़ीन दिलाने के लिए कि यह गाली खन्ना को ही
समर्पित है, उन्होंने फिर कहा, "टुच्चा !"
"अभी बुलाये लाता हूँ।" चपरासी की आवाज भी ठण्डी पड़ गई। प्रिंसिपल साहब
खड़ाउँओं की धीमी पड़ती हुई 'खट-खट्' सुनते रहे। उनकी निगाह एक तीसरे
कैलेण्डर पर जाकर केन्द्रित हो गई जिसमें पाँच-पाँच साल के दो बच्चे
बड़ी-बड़ी राइफलें लिये बर्फ पर लेटे थे और शायद चीनियों की फ़ौज का इन्तजार
कर रहे थे और इस तरह बड़े कलात्मक ढंग से बता रहे थे कि फैक्टरी में जूट के
थैले सबसे अच्छे बनते हैं। प्रिंसिपल साहब इस कैलेण्डर पर निगाह जमाकर बैठे
हुए खन्ना का इन्तजार करते रहे और सोचते रहे कि इसे वाइस-प्रिंसिपली का शौक न
चर्राया होता तो कितना अच्छा होता! वे भूल गए कि सबके अपने-अपने शौक हैं।
रामाधीन भीखमखेड़वी को चिट्ठी के आरम्भ में उर्दू-कविता लिखने का शौक है; खुद
उन्हें अपने दफ्तर में रंग-बिरंगे कैलेण्डर लटकाने का शौक है, और
चपरासी को, जो कि क्लर्क ही की तरह वैद्यजी का रिश्तेदार था, अकड़कर बात करने
का शौक है।
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