उपन्यास >> राग दरबारी राग दरबारीश्रीलाल शुक्ल
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रंगनाथ इन हमलों से लड़खड़ा गया था। पर उसने इस बात को मामूली जाँच-पड़ताल का
सवाल मानकर सरलता से जवाब दिया, “खद्दर तो आजकल सभी पहनते हैं।"
"अजी, कोई तुक का आदमी तो पहनता नहीं।" कहकर उसने दुवारा खिड़की के बाहर थूका
और गियर को टॉप में डाल दिया।
रंगनाथ का परसनालिटी कल्ट समाप्त हो गया। थोड़ी देर वह चुपचाप बैठा रहा।
बाद में मुँह से सीटी बजाने लगा। ड्राइवर ने उसे कुहनी से हिलाकर कहा, "देखो
जी, चुपचाप बैठो। यह कीर्तन की जगह नहीं है।"
रंगनाथ चुप हो गया। तभी ड्राइवर ने झुंझलाकर कहा, “यह गियर बार-बार
फिसलकर...न्यूटरल ही में घुसता है। देख क्या रहे हो ? जरा पकड़े रहो जी !"
थोड़ी देर में उसने दुबारा झुंझलाकर कहा, “ऐसे नहीं, इस तरह ! दवाकर ठीक से
पकड़े रहो।"
ट्रक के पीछे काफ़ी देर से हॉर्न बजता आ रहा था। रंगनाथ उसे सुनता रहा था और
ड्राइवर उसे अनसुना करता रहा था। कुछ देर बाद पीछे से क्लीनर ने लटककर ड्राइवर
की कनपटी के पास खिड़की पर खट्-खट् करना शुरू कर दिया। ट्रकवालों की भाषा में
इस कार्रवाई का निश्चित ही कोई खौफ़नाक मतलव होगा, क्योंकि उसी वक्त ड्राइवर ने
रफ़्तार कम कर दी और ट्रक को सड़क की बायीं पटरी पर कर लिया।
हॉर्न की आवाज एक ऐसे स्टेशन-वैगन से आ रही थी जो आजकल विदेशों के आशीर्वाद से
सैकड़ों की संख्या में यहाँ देश की प्रगति के लिए इस्तेमाल होते हैं और हर सड़क
पर हर वक्त देखे जा सकते हैं। स्टेशन-वैगन दायें से निकलकर आगे धीमा पड़ गया और
उससे बाहर निकले हुए एक खाकी हाथ ने ट्रक को रुकने का इशारा दिया। दोनों
गाड़ियाँ रुक गईं।
स्टेशन-वैगन से एक अफसरनुमा चपरासी और एक चपरासीनुमा अफसर उतरे।
खाकी कपड़े पहने हुए दो सिपाही भी उतर । उनकं उतरते ही पिंडारियों-जैसी
लूट-खसोट शरू हो गई। किसी ने ड्राइवर का ड्राइविंग लाइसेंस छीना, किसी ने
रजिस्ट्रेशन-कार्ड; कोई बैकव्यू मिरर खटखटाने लगा, कोई ट्रक का हॉर्न बजाने
लगा। कोई ब्रेक देखने लगा। उन्होंने फुटवार्ड हिलाकर देखा, बत्तियाँ जलायीं,
पीछे बजनेवाली घण्टी टुनटुनायी। उन्होंने जो कुछ भी देखा, वह खराब निकला; जिस
चीज को छुआ, उसी में गड़बड़ी आ गई। इस तरह उन चार आदमियों ने चार मिनट में लगभग
चालीस दोष निकाले और फिर एक पेड़ के नीचे खड़े होकर इस प्रश्न पर बहस करनी शुरू
कर दी कि दुश्मन के साथ कैसा सलूक किया जाए।
रंगनाथ की समझ में कुल यही आया कि दुनिया में कर्मवाद के सिद्धान्त, 'पोयोटिक
जस्टिस' आदि की कहानियाँ सच्ची हैं; ट्रक की चेकिंग हो रही है और ड्राइवर से
भगवान उसके अपमान का बदला ले रहा है। वह अपनी जगह बैठा रहा। पर इसी बीच ड्राइवर
ने मौका निकालकर कहा, “शिरिमानजी, जरा नीचे उतर आवें। वहाँ गियर पकड़कर बैठने
की अब क्या जरूरत है ?"
रंगनाथ एक दूसरे पेड़ के नीचे जाकर खड़ा हो गया। उधर ड्राइवर और चेकिंग जत्थे
में ट्रक के एक-एक पुर्जे को लेकर बहस चल रही थी। देखते-देखते बहस पुर्जों से
फिसलकर देश की सामान्य दशा और आर्थिक दुरवस्था पर आ गई और थोड़ी ही देर में
उपस्थित लोगों की छोटी-छोटी उपसमितियाँ बन गई। वे अलग-अलग पेड़ों के नीचे एक-एक
विषय पर विशेषज्ञ की हैसियत से विचार करने लगीं। काफ़ी बहस हो जाने के बाद एक
पेड़ के नीचे खुला अधिवेशन-जैसा होने लगा और कुछ देर में जान पड़ा, गोप्ठी खत्म
होनेवाली है।
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