उपन्यास >> राग दरबारी राग दरबारीश्रीलाल शुक्ल
|
221 पाठक हैं |
दोनों जल्दी-जल्दी कपड़े पहनकर बाहर आए। कपड़े पहनने का अर्थ यही नहीं कि
बद्री ने चूड़ीदार पैजामा और शेरवानी पहनी हो। नंगे बदन पर ढीली पड़ी हुई
तहमद उन्होंने कमर के चारों ओर कस ली और एक चादर ओढ़ लिया। बस, कपड़े पहनने
की क्रिया पूरी हो गई। रंगनाथ परमहंसों की इस गति तक नहीं पहुंच पाया था।
उसने कमीज डाल ली। दरवाजे तक पहुँचते-पहुँचते उसके क़दम और भी तेज हो गए। तब
तक चारों ओर से 'चोर ! चोर ! चोर !' के नारे उठने लगे थे। शोर हाथों-हाथ इतना
बढ़ गया कि अंग्रेजों ने अगर उसे 1921 में सुन लिया होता तो हिन्दुस्तान
छोड़कर वे तभी अपने देश भाग गए होते।
दोनों जीने से उतरकर नीचे आए। वैठक से बाहर निकलते-निकलते बद्री पहलवान ने
रंगनाथ से कहा, “तुम यहीं दरवाजा बन्द करके घर पर बैठो। मैं बाहर जाकर देखता
उधर रुप्पन बाबू घर के अन्दर से धोती का छोर कन्धे पर लपेटते हुए सड़फड़-
सड़फड़ वहीं पहुंच गए और बोले, “आप दोनों घर पर रहें। मैं बाहर जाता हूँ।"
ऐसा लगा, जैसे बाहर जाने का मतलब जौहर दिखाना था या चक्रव्यूह भेदना था।
दोनों भाई बाहर जाने की जिद पकड़ गए। रंगनाथ ने शहीदों की-सी अदा में कहा,
“यह है, तो जाइए आप लोग बाहर। मैं ही घर पर रहूँगा।"
सामने सड़क से चाँदनी में तीन आदमी ‘चोर ! चोर !' चीखते हुए निकले। उनके पीछे
दो आदमी उसी तरह ‘चोर! चोर!' का नारा बुलन्द करते हुए निकल गए। फिर एक अकेला
आदमी उसी तरह ‘चोर ! चोर !' का हल्ला मचाता हुआ निकला। फिर तीन आदमी और; सबके
हाथों में लाठियाँ थीं। सभी दौड़ रहे थे। सभी चोरों को दौड़ा रहे थे।
जुलूस में सबसे बाद में निकलनेवालों में से बद्री ने कुछ को पहचाना। वह भी
दौड़कर उन्हीं में मिल गए। पुकारकर बोले, “कौन है ? छोटे ! चोर कहाँ है ?"
छोटे ने हाँफते-हाँफते कहा, “आगे ! आगे निकल गए !'' कुछ देर शान्ति रही।
रुप्पन बाबू और रंगनाथ बैठक का दरवाजा बन्द करके, ताला लगाकर छत पर वापस चले
आए। नीचे से वैद्यजी बँखारकर बोले, “कौन है ?" रुप्पन बाबू ने जवाब दिया,
“चोर हैं पिताजी !"
वैद्यजी घबराहट में गरजकर बोले, “कौन ? रुप्पन ! तुम छत पर हो ?"
रुप्पन ने गाँव में उठते हुए शोर को अपनी ओर से यथाशक्ति बढ़ावा देते हुए
कहा, "हाँ, हमीं हैं। क्यों जान-बूझकर पूछ रहे हैं ? चैन से सोते क्यों नहीं
?"
वैद्यजी अपने छोटे लड़के की यह आदर-भरी वाणी सुनकर चुप हो गए। छत पर रुप्पन
बाबू और रंगनाथ गाँव-भर में फैलती-फूटती आवाजों को सुनते रहे।
|