श्रंगार - प्रेम >> अब के बिछुड़े अब के बिछुड़ेसुदर्शन प्रियदर्शिनी
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पत्र - 26
प्राण!
हमारे आज और कल...कल और आज तो जैसे इस विज्ञान के बनाये हुये विनाशक हथियारों से सज गये हैं। जितने ही संगीन हथियार होंगे, उतने ही हम उन्नतिशील गिने जायेंगे। आज बड़ी-बड़ी शक्तियों, अपनी इसी शक्ति के छोटे-छोटे देशों के बीच छिड़े हुये आपसी मन-मटौवल को भुना रही हैं। उस पर ये शक्तियाँ नहीं जानती कि युद्ध में संघर्षशील एवं युद्ध से लोटे हुये यौद्धा की मानसिक स्थिति क्या रह जाती है-इस पर कब-कोई इतिहासकार अपनी कलम उठायेगा। इतिहास तो लेखा-जोखा होता है-तिथियों का, स्थितियों का या उन संख्याओं का जो सजीव से निर्जीव होकर एक विशिष्ट अंक में (नंबर) बदल गए। लेकिन इन लिखित इतिहासों के पीछे के अलिखित इतिहास को कौन लिखेगा। वे लहूलुहान कांटों पर लोटती लाशों की गाथा-कब लिखि जायेगी प्राण...।
कल मैंने एक अमरीकी पत्र में एक समाचार पत्र कि वहाँ लैबनान से लौटे हुये मेरिन (जवान फौजी) मानसिक रूप से इतने आतंकित है कि मनोवैज्ञानिक चिकित्सायें लेने के बाद भी वह प्रकृतिस्थ नहीं हो पा रहे हैं। वे अप्रकृतिस्थ एवं अस्त-व्यस्त ही रहते है। सदैव कहीं अपने में खोये हुये-सिमटे हुये-एक अलग दुनियाँ में। उनकी आँखों जैसे युद्ध के भयानक दृश्यों को ही देखती रहती है। उनके सामने जीवन के अर्थ बिल्कुल बदल गए है। किसी बच्चे की मौत, किसी औरत के आँसू-उन्हें इतना विहल कर देते हैं कि वह अर्द्ध-विशिष्ट-सी स्थिति को प्राप्त कर लेते है। ऐसे ही एक फौजी-विलियम स्मिथ ने न जाने कितनी बार आत्महत्या करने का प्रयत्न किया। उसकी पत्नी, उसके मित्र, उसे इस भय के कारण सदैव घेरे रहते है।
एक दिन वह एक पार्टी खत्म होने से पहले ही अंदर से निकल कर अपनी कार तक आया। मन न जाने किस उथल-पुथल से उद्वेलित था और उसके कदम इतने लड़खडाये हुये थे-कि सड़क पर एक मासूम बच्चे को अकेले देखकर-बस फूट-फूट कर रोने लगा। जब पार्टी से लोग बाहर आते दिखे, तभी उसने अपने-आप को गोली मार ली।
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