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रहस्य-रोमांच >> खूनी छलावा, छलावा और शैतान

खूनी छलावा, छलावा और शैतान

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :335
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9408
आईएसबीएन :9789383600304

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

धड़ाम ! कानों के पर्दों को हिला देने वाला एक ऐसा भयानक विस्फोट हुआ, जिसने वहां उपस्थित अनेकों प्राणियों को न सिर्फ चौंका दिया, बल्कि बुरी तरह भयभीत भी कर दिया।

मेहमान भयभीत होकर इधर-उधर भागने लगे।

इस विस्फोट के सबसे निकट विकास था - परंतु वह खतरनाक लड़का भला इतना शरीफ कहां था कि उसकी चपेट में आता !

विस्फोट होते ही उसने भयानक जिन्न की भांति रिक्त वायुमंडल में ठीक किसी नट की भांति दो-तीन कला दिखाईं और अगले ही पल वह उस विस्फोट वाले स्थान से सबसे अधिक दूर था।

जब विस्फोट हुआ तो विकास के दाएं-बाएं रैना और रघुनाथ खड़े थे, उन दोनों में से कोई भी कुछ न समझ सका कि यह यकायक क्या हुआ, अतः वे लोग विस्फोट वाले स्थान से दूर भी कुछ न हो सके, परंतु विस्फोट उनके अत्यधिक निकट होने के पश्चात भी उन्हें किसी प्रकार की लेशमात्र भी हानि न पहुंची।

चौंका विजय भी था, किंतु न तो कोई ऐसा कार्य था जो वह करता और न ही वह कुछ समझ सका।

यह विस्फोट अचानक हुआ था। विजय भी सतर्क हो गया था, परंतु इस जोरदार धमाके के उपरांत अन्य किसी नवीन अथवा खतरनाक घटना ने जन्म नहीं लिया।

आज विकास का तेरहवां जन्म-दिवस था और इस खतरनाक लड़के के जन्म-दिवस पर इस प्रकार की खौफनाक घटना का होना कोई आश्चर्य की बात न थी, क्योंकि उसके प्रत्येक जन्म-दिवस पर अपराधी जगत के हीरे यानी एक-से-एक खूंखार अपराधी उसे आशीर्वाद देने आया करते थे और सबसे बड़ी विशेषता ये थी कि उस दिन कोई भी अपराधी इस प्रकार का कोई भी अपराध नहीं करता था, जिससे साधारण जनता को किसी प्रकार की हानि हो, लेकिन आज...यानी इस तेरहवें जन्म-दिवस पर वे सभी अपराधी आ चुके थे, जो अक्सर आया करते थे। जिनमें विशेष सिंगही, जैक्सन और अलफांसे इत्यादि हैं।

ऐसे सभी भयानक अपराधी अपने विचित्र ढंग से विकास को आशीर्वाद देकर चले जाते थे। परंतु अब...यानी सबके पश्चात अब तक समस्त मेहमान निश्चिंत हो चुके थे कि अब कोई नहीं आएगा और इसी भयानक विस्फोट ने न सिर्फ सबको चौंका दिया, बल्कि भयानक आतंक भी फैला दिया था।

हमेशा की भांति समारोह में विजय के साथ उसके दोस्तों के रूप में अशरफ, ब्लैक ब्वॉय और आशा इत्यादि सभी सीक्रेट सर्विस के जांबाज, विजय के पिता ठाकुर साहब और उनकी पत्नी विजय की माताजी इत्यादि सभी उपस्थित थे।

सभी कार्य विकास के पूर्व जन्म-दिवसों की भांति सुचारु रूप से चल रहा था। अबकी बार विजय और विकास की नोंकझोंक हो चुकी थी। विजय ने दो-चार झकझकियां सुनाईं तो उत्तर में विकास ने दस-बीस दिलजलियां सुनाकर विजय की बुद्धि का दिवाला निकाल दिया था।

वैसे विजय जान चुका था कि विकास अपने ढंग का एक अनोखा ही बालक है।

‘दहकते शहर’ और ‘आग के बेटे’ नामक इन दो अभियानों में ही विकास ने कुछ इस प्रकार के खतरनाक कारनामे किए थे कि विजय स्वयं उसकी विलक्षण बुद्धि पर दांतों तले उंगली दबाकर रह गया था।

‘विकास के बारे में वैसे तो आप परिचित होंगे ही, लेकिन अगर आप मेरा यह उपन्यास पहली बार पढ़ रहे हैं तो आप ‘विकास’ के बारे में विस्तारपूर्वक जानने के लिए ‘दहकते शहर’ और ‘आग के बेटे’ अवश्य पढ़ें।

खैर यह भयानक, कानों के पर्दों को कंपकंपा देने वाला विस्फोट उस समय हुआ, जब प्रसन्नता में डूबे समस्त मेहमानों ने विकास को ले जाकर केक के पास खड़ा कर दिया और उसे काटने का अनुरोध किया।

उस समय रघुनाथ और रैना उसके दाएं-बाएं खड़े थे। विजय विकास के ठीक सामने उस लंबी मेज के पास खड़ा था, जिस पर वह केक रखा था।

विस्फोट ठीक उस समय हुआ, जब विकास ने छुरी उठाकर उस केक से स्पर्श की !

बस...उसी क्षण !

जैसे ही छुरी केक से स्पर्श हुई, अचानक एक भयानक विस्फोट के कारण वह केक चीथड़े-चीथड़े हो गया। आग की भी कोई चिंगारी नहीं लपकी।

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