उपन्यास >> सुमन सुमनवेद प्रकाश शर्मा
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सुमन...
Vyakaran Pustak
‘‘मैं आपकी क्या लगती हूँ?’’
‘‘छोटी साली का दूसरा रिश्ता?’’
‘‘छोटी बहन...।’’
‘‘नहीं...ऽ...ऽ...ऽ।’’ सुमन इतनी शक्ति के साथ चीखी कि अदालत का कमरा जैसे कांप गया। वहां बैठे लोग तो उसके इस कदर चीखने पर भयभीत हो गए...सुमन चीखी–‘‘बहन और भाई के पवित्र रिश्ते को बदनाम मत करे...बहन के रिश्ते पर कीचड़ मत उछालो...आज तुमने इस भरी अदालत में अपनी साली को अपनी बहन क्यों कहा...? जो शब्द मुझसे अकेले में कहा करते थे वह क्यों नहीं कहा?’’
संजय का चेहरा हल्दी की भाँति पीला पड़ चुका था...सारी अदालत में गहरा सन्नाटा था।
‘‘छोटी साली का दूसरा रिश्ता?’’
‘‘छोटी बहन...।’’
‘‘नहीं...ऽ...ऽ...ऽ।’’ सुमन इतनी शक्ति के साथ चीखी कि अदालत का कमरा जैसे कांप गया। वहां बैठे लोग तो उसके इस कदर चीखने पर भयभीत हो गए...सुमन चीखी–‘‘बहन और भाई के पवित्र रिश्ते को बदनाम मत करे...बहन के रिश्ते पर कीचड़ मत उछालो...आज तुमने इस भरी अदालत में अपनी साली को अपनी बहन क्यों कहा...? जो शब्द मुझसे अकेले में कहा करते थे वह क्यों नहीं कहा?’’
संजय का चेहरा हल्दी की भाँति पीला पड़ चुका था...सारी अदालत में गहरा सन्नाटा था।
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