लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> पौराणिक कथाएँ

पौराणिक कथाएँ

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 939
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

106 पाठक हैं

प्रस्तुत है पौराणिक कथाएँ.....


शबर-दम्पतिकी दृढ़ निष्ठा
प्राचीन कालकी बात है। सिंहकेतु नामक एक पंचालदेशीय राजकुमार एक दिन अपने सेवकोंको साथ लेकर वनमें शिकार खेलने गया। उसके सेवकोमेसे एक शबरको शिकारकी खोजमें इधर-उधर घूमते समय एक टूटा-फूटा शिवालय दीख पड़ा। उसके चबूतरेपर एक शिवलिंग पड़ा था, जो टूटकर जलहरीसे सर्वथा अलग हो गया था। शबरने उसे मूर्तिमान-सौभाग्यकी तरह उठा लिया। वह राजकुमारके पास पहुँचा और उसे शिवलिंग दिखलाकर विनयपूर्वक कहने लगा-'प्रभो! देखिये, यह कैसा सुन्दर शिवलिंग है। आप यदि कृपापूर्वक मुझे पूजाकी विधि बता दें तो मैं नित्य इसकी पूजा किया करूँ।'

निषादके इस प्रकार पूछनेपर राजकुमारने प्रेमपूर्वक पूजाकी विधि बतला दी। षोडशोपचार-पूजनके अतिरिक्त उसने चिताभस्म चढ़ानेकी बात भी बतलायी। अब वह शबर प्रतिदिन शिवलिंगको स्नान कराकर चन्दन, अक्षत, वनके नये-नये पत्र, पुष्प, फल, धूप, दीप, नृत्य, वाद्यके द्वारा भगवान् महेश्वरका पूजन करने लगा। वह प्रतिदिन चिताभस्म भी अवश्य भेंट करता। तत्पश्चात् वह स्वयं प्रसाद ग्रहण करता। इस प्रकार वह श्रद्धालु शबर पत्नीके साथ भक्तिपूर्वक भगवान-शंकरकी आराधनामें तल्लीन हो गया। एक दिन वह पूजाके लिये बैठा तो देखता है कि पात्रमें चिताभस्म तनिक भी शेष नहीं है। उसने बड़े प्रयत्नसे इधर-उधर ढूँढ़ा, पर उसे कहीं भी चिताभस्म नहीं मिला। अन्तमें उसने यह स्थिति पत्नीसे व्यक्त की। साथ ही उसने यह भी कहा कि 'यदि चिताभस्म नहीं मिलता तो पूजाके बिना मैं अब क्षणभर भी जीवित 'रह सकता।'

स्त्रीने उसे चिन्तित देखकर कहा-'नाथ! डरिये मत, एक उपाय है। यह घर तो पुराना हो ही गया है। मैं इसमें आग लगाकर उसीमें प्रवेश कर जाती हूँ। इससे आपकी पूजाके निमित्त पर्याप्त चिताभस्म तैयार हो जायगी।' बहुत वाद-विवादके बाद शबर भी उसके प्रस्तावसे सहमत हो गया। शबरीने स्वामीकी आज्ञा पाकर स्नान किया और उस घरमें आग लगाकर अग्निकी तीन बार परिक्रमा की, पतिको नमस्कार किया, फिर सदाशिव भगवान्का हृदयमें ध्यान करती हुई वह अग्निमें घुस गयी। वह क्षणभरमें जलकर भस्म हो गयी, फिर शबरने उस भस्मसे भगवान् भूतनाथकी पूजा की।

शबरको कोई विषाद तो था नहीं। स्वभाववश पूजाके पश्चात् वह प्रसाद देनेके लिये अपनी स्त्रीको पुकारने लगा। स्मरण करते ही वह स्त्री तुरंत आकर खड़ी हो गयी। अब शबरको उसके जलनेकी बात याद आयी। उसने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि 'तुम और यह मकान तो सब जल गये थे, फिर यह सब कैसे हुआ?'

शबरीने कहा-'जब मैं आगमें घुसी तो मुझे लगा कि जैसे मैं जलमें घुसी हूँ। आधे क्षणतक तो प्रगाढ़ निद्रा-सी विदित हुई और अब जगी हूँ। जागनेपर देखती हूँ तो यह घर भी पूर्ववत् खड़ा है। अब प्रसादके लिये यहाँ आयी हूँ।'

शबर-दम्पति इस प्रकार बातें कर ही रहे थे कि उनके सामने एक दिव्य विमान आ गया। उसपर भगवान्के चार गण थे। उन्होंने ज्यों ही उन्हें स्पर्श किया और विमानपर बैठाया त्यों ही उनके शरीर दिव्य हो गये। वास्तवमें श्रद्धायुक्त भगवदाराधनाका ऐसा ही माहात्म्य है।
(स्कन्दपुराण)

-- ० --

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book