गीता प्रेस, गोरखपुर >> पौराणिक कथाएँ पौराणिक कथाएँगीताप्रेस
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प्रस्तुत है पौराणिक कथाएँ.....
दरिद्रता कहां-कहां रहती है?
समुद्र-मन्थनके समय हलाहलके निकलनेके पश्चात् दरिद्रताकी, तत्पश्चात्
लक्ष्मीजीकी उत्पत्ति हुई। इसलिये दरिद्राको ज्येष्ठा भी कहते हैं।
ज्येष्ठाका विवाह दुःसह ब्राह्मणके साथ हुआ। विवाहके बाद दुःसह मुनि अपनी
पत्नीके साथ विचरण करने लगे। जिस देशमें भगवान्का उद्घोष होता, होम होता,
वेदपाठ होता, भस्म लगाये लोग होते-वहाँसे ज्येष्ठा दोनों कान बंद कर दूर भाग
जाती। यह देखकर दुःसह मुनि उद्विग्न हो गये। उन दिनों सब जगह धर्मकी चर्चा और
पुण्य कृत्य हुआ ही करते थे। अतः दरिद्रा भागते-भागते थक गयी, तब उसे दुःसह
मुनि निर्जन वनमें ले गये। ज्येष्ठा डर रही थी कि मेरे पति मुझे छोड़कर किसी
अन्य कन्यासे विवाह न कर लें। दुःसह मुनिने यह प्रतिज्ञा कर कि 'मैं किसी
अन्य कन्यासे विवाह नहीं करूँगा' पत्नीको आश्वस्त कर दिया।आगे बढ़नेपर दुःसह मुनिने महर्षि मार्कण्डेयको आते हुए देखा। उन्होंने महर्षिको साष्टांग प्रणाम किया और पूछा कि 'इस भार्याके साथ मैं कहाँ रहूँ और कहाँ न रहूँ?' मार्कण्डेय मुनिने पहले उन स्थानोंको बताना आरम्भ किया, जहाँ दरिद्राको प्रवेश नहीं करना चाहिये-
'जहाँ रुद्रके भक्त हों और भस्म लगानेवाले लोग हों, वहाँ तुमलोग प्रवेश न करना। जहाँ नारायण, गोविन्द, शंकर, महादेव आदि भगवान्के नामका कीर्तन होता हो, वहाँ तुम दोनोंको नहीं जाना चाहिये; क्योंकि आग उगलता हुआ विष्णुका चक्र उन लोगोंके अशुभको नाश करता रहता है। जिस घरमें स्वाहा, वषट्कार और वेदका घोष होता हो, जहांके लोग नित्यकर्ममें लगे हुए भगवान्की पूजामें लगे हुए हों, उस घरको दूरसे ही त्याग देना। जिस घरमें भगवान्की मूर्ति हो, गायें हों, भक्त हों, उस घरमें भी तुम दोनों मत घुसना।'
तब दुःसह मुनिने पूछा-'महर्षे! अब आप हमें यह बतायें कि हमारे प्रवेशके स्थान कौन-कौन-से हैं?' महर्षि मार्कण्डेयजी ने कहा-'जहाँ पति-पत्नी परस्पर झगड़ा करते हों, उस घरमें तुम दोनों निर्भय होकर घुस जाओ। जहाँ भगवान्की निन्दा होती हो, जप, होम आदि न होते हों, भगवान्के नाम नहीं लिये जाते हों, उस घरमें घुस जाओ। जो लोग बच्चोंको न देकर स्वयं खा लेते हों, उस घरमें तुम दोनों घुस जाओ। जिस घरमें काँटेदार, दूधवाले, पलाशके वृक्ष और निम्बके वृक्ष हों, जिस घरमें दोपहरिया, तगर, अपराजिताके फूलका पेड़ हो, वे घर तुम दोनोंके रहने योग्य हैं, वहाँ अवश्य जाओ। जिस घरमें केला, ताड़, तमाल, भल्लातक (भिलाव), इमली, कदम्ब, खैरके पेड़ हों, वहाँ तुम दरिद्राके साथ घुस जाया करो। जो स्नान आदि मंगल कृत्य न करते हों, दाँत-मुख साफ नहीं करते, गंदे कपड़े पहनते, संध्याकालमें सोते या खाते हों, जुआ खेलते हों, ब्राह्मणके धनका हरण करते हों, दूसरेकी स्त्रीसे सम्बन्ध रखते हों, हाथ-पैर न धोते हों, उन घरोंमें दरिद्राके साथ तुम रहो।'
मार्कण्डेय ऋषिके चले जानेके बाद दुःसहने अपनी पत्नी दरिद्रासे कहा-'ज्यैष्ठे! तुम इस पीपलके वृक्षके नीचे बैठ जाओ। मैं रसातल जाकर रहनेके स्थानका पता लगाता हूँ।' दरिद्राने पूछा-'नाथ! तब मैं खाऊँगी क्या? मुझे कौन भोजन देगा?' दुःसहने कहा-'प्रवेशके स्थान तो तुझे मालूम ही हो गये हैं, वहाँ घुसकर खा-पी लेना। हाँ यह याद रखना कि जो स्त्री पुष्प, धूप आदिसे तुम्हारी पूजा करती हो, उसके घरमें मत घुसना।' इतना कहकर दुःसह रसातलमें चले गये।
ज्येष्ठा वहीं बैठी हुई थी कि लक्ष्मीके साथ भगवान् विष्णु वहाँ आ गये। ज्येष्ठाने भगवान् विष्णुसे कहा-'मेरे पति रसातल चले गये हैं, मैं अब अनाथ हो गयी हूँ, मेरी जीविकाका प्रबन्ध कर दीजिये।' भगवान् विष्णुने कहा-'ज्येष्ठे! जो माता पार्वती, शंकर और मेरे भक्तोंकी निन्दा करते हैं, उनके सारे धनपर तुम्हारा ही अधिकार है। उनका तुम अच्छी तरह उपभोग करो। जो लोग भगवान् शंकरकी निन्दा कर मेरी पूजा करते हैं, ऐसे मेरे भक्त अभागे होते हैं, उनके धनपर भी तुम्हारा ही अधिकार है।' इस प्रकार ज्येष्ठाको आश्वासन देकर भगवान् विष्णु लक्ष्मी- सहित अपने निवासस्थान वैकुण्ठको चले गये। (लिंगपुराण)
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