गीता प्रेस, गोरखपुर >> पौराणिक कथाएँ पौराणिक कथाएँगीताप्रेस
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प्रस्तुत है पौराणिक कथाएँ.....
गुणनिधिपर भगवान् शिवकी कृपा
पूर्वकालमें यज्ञदत्त नामक एक ब्राह्मण थे। समस्त वेद-शास्त्रादिका ज्ञाता
होनेसे उन्होंने अतुल धन एवं कीर्ति अर्जित की थी। उनकी पत्नी सर्वगुणसम्पन्न
थी। कुछ दिनोंके बाद उन्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम गुणनिधि रखा
गया। बाल्यावस्थामें इस बालकने कुछ दिन तो धर्मशास्त्रादि समस्त विद्याओंका
अध्ययन किया, परंतु बादमें वह कुसंगतिमें पड़ गया। कुसंगतिके प्रभावसे वह
धर्मविरुद्ध कार्य करने लगा वह अपनी मातासे द्रव्य लेकर जूआ खेलने लगा और
धीरे-धीरे अपने पिता द्वारा अर्जित धन तथा कीर्तिको नष्ट करने लगा। कुसंगतिके
प्रभावसे उसने स्नान-संध्या आदि कार्य ही नहीं छोड़ा, अपितु शास्त्र-निन्दकोके
साथ रहकर वह चोरी, परस्त्रीगमन, मद्यपानादि कुकर्म भी करने लगा, परंतु उसकी
माता पुत्र-स्नेहवश न तो उसे कुछ कहती थी और न उसके पिताको ही कुछ बताती।
इसीलिये यज्ञदत्तको कुछ भी पता नहीं चला। जब उनका पुत्र सोलह वर्षका हो गया
तब उन्होंने बहुत धन खर्च करके एक शीलवती कन्यासे गुणनिधि का विवाह कर दिया,
परंतु फिर भी उसने कुसंगतिको न छोड़ा उसकी माता उसे बहुत समझाती थी कि तुम
कुसंगतिको त्याग दो, नहीं तो यदि तुम्हारे पिताको पता लग गया तो अनिष्ट हो
जायगा। तुम अच्छी संगति करो तथा अपनी पत्नीमें मन लगाओ। यदि तुम्हारे
कुकर्मोंका राजाको पता लग गया तो वह हमें धन देना बंद कर देगा और हमारे कुलका
यश भी नष्ट हो जायगा, परंतु बहुत समझानेपर भी वह नहीं सुधरा, अपितु उसके
अपराध और बढ़ते ही गये। उसने वेश्यागमन तथा द्यूतक्रीड़ामें घरकी समस्त
सम्पत्ति नष्ट कर दी। एक दिन वह ऊपनी सोती हुई मांके हाथसे अँगूठी निकाल ले
गया और उसे जुएमें हार गया। अकस्मात् एक दिन गुणनिधिके पिता यज्ञदत्तने उस
अँगूठीको एक जुआरीके हाथमें देखा, तब उन्होंने उससे डाँटकर पूछा-'तुमने यह
अगूँठी कहाँसे ली?' जुआरी डर गया और उसने गुणनिधिके सम्बन्धमें सब कुछ
सत्य-सत्य बता दिया। जुआरीसे अपने पुत्रके विषयमें सुनकर यज्ञदत्तको बड़ा
आश्चर्य हुआ। वे लज्जासे व्याकुल होते हुए घर आये और उन्होंने अँगूठीके
सम्बन्धमें प्राप्त हुई गुणनिधिके विषयकी सारी बातें अपने पत्नीसे कही।
माताने गुणनिधिको बचानेका प्रयास किया, किंतु यज्ञदत्त क्रोधसे भर उठे और
बोले कि 'मेरे साथ तुम भी अपने पुत्रसे नाता तोड़ लो तभी मैं भोजन करूँगा।'
पतिकी बात सुनकर वह उनके चरणोंपर गिर पड़ी और गुणनिधिको एक बार क्षमा कर
देनेकी प्रार्थना की, जिससे यज्ञदत्तका क्रोध कुछ कम हो गया।जब गुणनिधिको इस घटनाका पता चला तब उसे बड़ी आत्मग्लानि हुई। वह अपनी माताके उपदेशोंका स्मरण कर शोक करने लगा तथा अपने कुकर्मोंके कारण अपनेको धिक्कारने लगा और पिताके भयसे घर छोड़कर भाग गया, परंतु जीविकाका कोई भी साधन न होनेसे जंगलमें जाकर रुदन करने लगा। इसी समय एक शिवभक्त विविध प्रकारकी पूजन-सामग्रियोंसे युक्त हो अपने साथ अनेक शिवभक्तोंको लेकर जा रहा था। उस दिन सभी व्रतोंमें उत्तम तथा सभी वेदों एवं शास्त्रोंद्वारा वर्णित शिवरात्रि-व्रतका दिन था। उसीके निमित्त वे भक्तगण शिवालयमें जा रहे थे। उनके साथ ले जाये गये विविध पक्वान्नोंकी सुगन्धसे गुणनिधिकी भूख बढ़ गयी। वह उनके पीछे-पीछे इस उद्देश्यसे शिवालयमें चला गया कि जब ये लोग भोजनको शिवजीके निमित्त अर्पण कर सो जायँगे तब मैं उसे ले लूँगा। उन भक्तोंने शिवजीका षोडशोपचार पूजन किया तथा नैवेद्य अर्पित करके वे शिवजीकी स्तुति करने लगे। कुछ देर बाद उन भक्तोंको नींद आ गयी, तब छिपकर बैठे हुए गुणनिधिने भोजन उठा लिया, परंतु लौटते समय उसका पैर लगनेसे एक शिवभक्त जाग गया और वह चोर-चोर कहकर चिल्लाने लगा। गुणनिधि जान बचाकर भागा, परंतु एक नगररक्षकने उसे अपने तीरसे मार गिराया। तदुपरान्त उसे लेनेके लिये बड़े भयंकर यमदूत आये और उसे ले जाने लगे। तभी भगवान् शिवने अपने गणोंसे कहा कि इसने मेरा परमप्रिय शिवरात्रिका व्रत तथा रात्रि-जागरण किया है, अतः इसे यमगणोंसे छुड़ा लाओ। यमगणोंके विरोध करनेपर शिवगणोंने उन्हें शिवजीका संदेश सुनाया और उसे छुड़ाकर शिवजीके पास ले गये। शिवजीके अनुग्रहसे वह महान् शिवभक्त कलिंगदेशका राजा हुआ। वही अगले जन्ममें भगवान् शंकर तथा माँ पार्वतीके कृपाप्रसादसे यक्षोंका अधिपति कुबेर हुआ। (शिवपुराण)
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