रहस्य-रोमांच >> लाश कहां छुपाऊं लाश कहां छुपाऊंवेद प्रकाश शर्मा
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मैं पवित्र गीता पर हाथ रखकर कसम खाता हूं... कि जो भी लिखूंगा, सच लिखूंगा और सच के अलावा कुछ नहीं लिखूंगा। मेरे लिखे को महज एक काल्पनिक उपन्यास न समझें और उसको पढ़ते वक्त हर क्षण यह स्मरण रखें कि जो कुछ मैं लिख रहा हूं, वह उसी तरह सत्य है, जिस तरह पूरब से सूर्य का उदय होना। पिछले दिनों जो घटनाएं अथवा दुर्घटनाएं घटी हैं - मैं उन्हें ज्यों-का-त्यों यहां लिखकर आपकी सेवा में पेश कर रहा हूं। आप विश्वास करें कि मैं कहीं भी अतिश्योक्ति अलंकार को स्थान नहीं दूंगा। एक-एक शब्द केवल वही लिखूंगा-जो मेरे साथ घटा है। मैं भारतीय हूं और भारतीय कभी गीता की कसम झूठी नहीं खा सकता, ऐसा मेरा विश्वास है। इसी विश्वास के साथ, मैं ये दस्तावेज लिखकर दे रहा हूं कि आप मेरे लिखे पर विश्वास करेंगे और मेरे हालात को मद्देनजर रखकर मेरे बारे में जरूर कुछ सोचेंगे।
मैंने अपनी पिछली जिन्दगी में कभी कोई उपन्यास नहीं लिखा है, हां - पढ़ा जरुर है। जासूसी उपन्यास पढ़ने का शौक मुझे यहां शहर में आकर ही पड़ा है। मगर - इस तरह लिखने का मेरा पहला ही अनुभव है। मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा भी नहीं हूं, बड़ी कठिनाई से मेरे पिता ने मुझे मैट्रिक तक पढ़ाया है। यहां पर अपनी शिक्षा मैंने केवल इसलिए लिखी है, ताकि अगर लिखने के मामले में कोई त्रुटि कर जाऊं तो आप मुझे क्षमा कर सकें। मैं केवल उतने ही शब्द लिख सकता हूं - जितने मैंने पढ़े हैं।
अगर आप असलियत जानना चाहते हैं तो मैं मुजरिम नहीं हूं। डाकू भी नहीं - बम भी नहीं। हकीकत तो यही है कि बुनियादी रूप से मैं कुछ भी नहीं हूं।
मगर मुझे यह सब बना दिया गया।
मैं अच्छी तरह जानता हूं कि अदालत और कानून भी मुझे सजा दिए बिना नहीं रहेगा।
एक नहीं - मुझ पर अनेक आरोप हैं - हत्या, डकैती, लूट ! कानून की नजरों में मैंने सभी कुछ किया है। और उसमें मैं कानून को भी गलत नहीं कह सकता, क्योंकि हकीकत यह है कि कानून ने मुझ पर जो भी अभियोग लगाए हैं - उनमें से कोई भी गलत नहीं है। मैंने सभी कुछ किया है - हत्या भी, लूट भी, चोरी भी - मैं कबूल करता हूं कि मैंने यह सब कुछ किया है - किंतु फिर भी मैं खुद को गुनहगार नहीं मानता - अगर मानवता की नजर से आप देखें तो वे हालात व परिस्थितियां देखें-जिनमें फंसकर मुझे यह सब करना पड़ा।
मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है कि अपनी ये दर्दनाक कहानी मैं कहां से शुरू करूं ? अपने दिल की व्यथा को व्यक्त करने में मैं कौन-से शब्दों का प्रयोग करूं - जिन्हें पढ़कर आप मेरे हालात को समझ सकें। इस वक्त अगर मेरी जगह कोई लेखक होता तो शायद अपने मनोभावों को सरलता से आपको समझा सकता, किंतु मैं कलम का धनी नहीं हूं - फिर भी ये दस्तावेज तैयार करके आप लोगों के सम्मुख पेश कर रहा हूं। आशा है - आप मेरे बारे में सब कुछ जानने के बाद मुझसे सहानुभूति रखेंगे। आप अगर किसी का दर्द समझते हैं तो मेरा दर्द भी जरूर समझेंगे। जैसा कि पहले भी लिख चुका हूं - मैं निर्णय नहीं कर पा रहा हूं कि अपनी कहानी मैं कहां से शुरू करू - उस ताश से - जो मेरे लिए एक भारी मुसीबत बन गई - अथवा उस चोरी से - जिसका रहस्य खुलने के बाद मैं आत्महत्या के बारे में सोचने लगा, या उस पत्नी से - जो मुझे असीम प्रेम करती है अथवा उन बच्चों से - जो मेरे बिना अनाथ हैं या उस दोस्त से - जिसने मेरे लिए अपना सारा जीवन कुर्बान कर दिया या मैं अपनी बर्बादी का सारा दोष उसी को दूं।
खैर, ऐसी शुरुआत मुझे नहीं आती - जो आपको रोमांचित कर सके।
मैं तो शुरू से ही अपनी कहानी आपको सुनाए देता हूं - अब ये आपकी इच्छा है कि आप मेरे दर्द को समझे अथवा नहीं।
मेरा नाम चंपक है।
आप सोच रहे होंगे - बड़ा अजीब है मेरा नाम।
मैंने अपनी पिछली जिन्दगी में कभी कोई उपन्यास नहीं लिखा है, हां - पढ़ा जरुर है। जासूसी उपन्यास पढ़ने का शौक मुझे यहां शहर में आकर ही पड़ा है। मगर - इस तरह लिखने का मेरा पहला ही अनुभव है। मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा भी नहीं हूं, बड़ी कठिनाई से मेरे पिता ने मुझे मैट्रिक तक पढ़ाया है। यहां पर अपनी शिक्षा मैंने केवल इसलिए लिखी है, ताकि अगर लिखने के मामले में कोई त्रुटि कर जाऊं तो आप मुझे क्षमा कर सकें। मैं केवल उतने ही शब्द लिख सकता हूं - जितने मैंने पढ़े हैं।
अगर आप असलियत जानना चाहते हैं तो मैं मुजरिम नहीं हूं। डाकू भी नहीं - बम भी नहीं। हकीकत तो यही है कि बुनियादी रूप से मैं कुछ भी नहीं हूं।
मगर मुझे यह सब बना दिया गया।
मैं अच्छी तरह जानता हूं कि अदालत और कानून भी मुझे सजा दिए बिना नहीं रहेगा।
एक नहीं - मुझ पर अनेक आरोप हैं - हत्या, डकैती, लूट ! कानून की नजरों में मैंने सभी कुछ किया है। और उसमें मैं कानून को भी गलत नहीं कह सकता, क्योंकि हकीकत यह है कि कानून ने मुझ पर जो भी अभियोग लगाए हैं - उनमें से कोई भी गलत नहीं है। मैंने सभी कुछ किया है - हत्या भी, लूट भी, चोरी भी - मैं कबूल करता हूं कि मैंने यह सब कुछ किया है - किंतु फिर भी मैं खुद को गुनहगार नहीं मानता - अगर मानवता की नजर से आप देखें तो वे हालात व परिस्थितियां देखें-जिनमें फंसकर मुझे यह सब करना पड़ा।
मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है कि अपनी ये दर्दनाक कहानी मैं कहां से शुरू करूं ? अपने दिल की व्यथा को व्यक्त करने में मैं कौन-से शब्दों का प्रयोग करूं - जिन्हें पढ़कर आप मेरे हालात को समझ सकें। इस वक्त अगर मेरी जगह कोई लेखक होता तो शायद अपने मनोभावों को सरलता से आपको समझा सकता, किंतु मैं कलम का धनी नहीं हूं - फिर भी ये दस्तावेज तैयार करके आप लोगों के सम्मुख पेश कर रहा हूं। आशा है - आप मेरे बारे में सब कुछ जानने के बाद मुझसे सहानुभूति रखेंगे। आप अगर किसी का दर्द समझते हैं तो मेरा दर्द भी जरूर समझेंगे। जैसा कि पहले भी लिख चुका हूं - मैं निर्णय नहीं कर पा रहा हूं कि अपनी कहानी मैं कहां से शुरू करू - उस ताश से - जो मेरे लिए एक भारी मुसीबत बन गई - अथवा उस चोरी से - जिसका रहस्य खुलने के बाद मैं आत्महत्या के बारे में सोचने लगा, या उस पत्नी से - जो मुझे असीम प्रेम करती है अथवा उन बच्चों से - जो मेरे बिना अनाथ हैं या उस दोस्त से - जिसने मेरे लिए अपना सारा जीवन कुर्बान कर दिया या मैं अपनी बर्बादी का सारा दोष उसी को दूं।
खैर, ऐसी शुरुआत मुझे नहीं आती - जो आपको रोमांचित कर सके।
मैं तो शुरू से ही अपनी कहानी आपको सुनाए देता हूं - अब ये आपकी इच्छा है कि आप मेरे दर्द को समझे अथवा नहीं।
मेरा नाम चंपक है।
आप सोच रहे होंगे - बड़ा अजीब है मेरा नाम।
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