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रहस्य-रोमांच >> कोख का मोती

कोख का मोती

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :288
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9374
आईएसबीएन :0000

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘‘अरे !’’ किंग कोबरा ने चौंकते हुए पूछा - ‘‘क्या बात है केशव, तुम इतने भन्नाए हुए क्यों हो ? चेहरा पत्थर की तरह सख्त क्यों हो रहा है ? इतने खतरनाक मूड में हमने पहले तुम्हें कभी नहीं देखा !’’

केशव की झील-सी नीली आंखों में इस वक्त मानो लहू तैर रहा था। सुर्ख आंखों से एकटक किंग कोबरा के चेहरे को घूरता हुआ बोला वह - ‘‘आप ‘अंडरवर्ल्ड’ के बादशाह हैं, यह बात कहावत की तरह प्रसिद्ध है कि जुर्म की दुनिया में अगर पत्ते को भी खड़कना है तो खड़कने से पहले उसे आपके संगठन की इजाजत लेनी होगी। उस संगठन की इजाजत जिसे ‘कोबरा ऑर्गेनाइजेशन’ कहा जाता है।’’

‘‘यह सच है मगर...।’’

‘‘उसकी बात पूरी होने से पहले ही केशव पंडित एक कदम आगे बढ़ा और बोला - ‘‘आप मुझे कोबरा संगठन में लेना चाहते थे न ?’’

‘‘हां...हां। म... मगर बात क्या है ?’’ किंग कोबरा जैसा शख्स हकला गया।

‘‘मुझे अलफांसे, सिंगही, जैक्सन, जेम्स बॉण्ड और बागारोफ जैसी अनेक हस्तियों से टकराना है।’’

‘‘तो ?’’

‘‘कोबरा आर्गेनाइजेशन में कोई ओहदा चाहिए मुझे।’’

किंग कोबरा एक झटके के साथ अपनी कुर्सी से खड़ा हो गया। इतनी तेजी से खड़ा हुआ था वह कि रिवॉल्विंग चेयर घूमती रह गई और उस घूमती हुई ऊंची पुश्त पाली दुर्लभ कुर्सी की तरफ इशारा करके किंग कोबरा ने कहा - ‘‘कुर्सी हाजिर है केशव, संगठन में तुम्हें इससे नीचे का ओहदा देना तुम्हारा अपमान करना होगा।’’

एक-एक कदम इस तरह रखता हुआ केशव कुर्सी की तरफ बढ़ा जैसे जमीन को रौंद डालना चाहता हो और फिर घूमती हुई कुर्सी को रोककर उस पर बैठ गया - दोनों पैर मेज पर फैला दिए उसने-चेहरा गरूर से तना हुआ था - यूं, जैसे विकास का फन कुचलने का फख़ हासिल कर चुका हो।

इस वक्त उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे कि किंग कोबरा जैसा शख्स सिहरकर रह गया।

जाने क्यों, रीढ़ की हड्डी में एक खौफनाक लहर दौड़ गई।

केशव पंडित के चेहरे पर साफ-साफ लिखा था कि वह ‘कहर’ बनकर अपने दुश्मनों पर झपटने वाला है - किंग कोबरा अभी उससे कुछ पूछने की हिम्मत जुटा ही रहा था कि बेहद लम्बी और तनावपूर्ण खामोशी के बाद केशव ने कहा - ‘‘आप भी बैठिए।’’

जाने उसके ‘लहजे’ में ऐसा क्या जादू था कि किंग कोबरा खुद को केशव के हुक्म का पालन करने से रोक न सका। वह मेज के इस तरफ पड़ी उन तीन में से एक कुर्सी पर बैठ गया, जिन पर ‘उससे’ मिलने वाले लोग आकर बैठा करते थे। केशव ने अपने दाएं हाथ की मुट्ठी से किंग कोबरा वाली दुर्लभ कुर्सी के हत्थे पर हौले-हौले घूंसा बरसाते हुए सवाल किया - ‘‘तो आप यह कुर्सी मुझे सौंप रहे हैं ?’’

‘‘यकीनन।’’ किंग कोबरा ने दृढ़तापूर्वक कहा।

केशव ने एक बार पुनः पूछा - ‘‘आप किंग कोबरा बना रहे हैं मुझे?’’

‘‘कह चुका हूं कि ‘कोबरा संगठन’ से इससे नीचे का ओहदा देना तुम्हारा अपमान करना होगा।’’

पत्थर से नजर आने वाले गुलाबी होंठों पर मुस्कान दौड़ गई। अत्यंत जहरीली मुस्कान।

किंग कोबरा की विचित्र आंखों में झांकता हुआ बोला वह - ‘‘आज से पहले आपने ऐसी कोई बात कभी नहीं कही जिससे मुझे इल्म हो कि आप मुझे बेवकूफ समझते हैं।’’

‘‘क... क्या मतलब ?’’ किंग कोबरा बौखला उठा।

केशव पंडित ने बेहद कठोर स्वर में कहा - ‘‘सिर्फ यह जानना चाहता हूं कि आप मुझे ‘बेवकूफ’ कब से समझने लगे ?’’

‘‘हम समझ नहीं पाए केशव, ऐसी हमने क्या बात कह दी जिससे तुम्हें लगा कि हम तुम्हें ‘बेवकूफ’ समझते हैं।’’

केशव पंडित ने अपने दोनों पांव नीचे किए। रिवॉल्विंग चेयर को सरकाकर मेज के नजदीक किया और दोनों कोहनियां चमचमाती मेज पर टिकाने के बाद दुनिया की सबसे विचित्र आंखों में आंखें डालकर बोला - ‘‘क्या आपको यह हक है कि किसी अन्य शख्स को ‘किंग कोबरा’ बना सकें ?’’

‘‘हां...हां... क्यों नहीं।’’ किंग कोबरा बौखला उठा - ‘‘म...मैं कोबरा संगठन का मुखिया...।’’

‘‘झूठ !’’ चमचमाती मेज पर जोर से घूंसा मारता हुआ केशव गुर्राया।

किंग कोबरा के अल्फाज उसके हलक में घुटकर रह गए थे, जबकि एक बार गुर्राने के बाद केशव रुका नहीं बल्कि गुर्राता चला गया - ‘‘आप झूठ बोल रहे हैं मिस्टर किंग कोबरा, सफेद झूठ। ऐसा झूठ जिसके सिर-पैर नहीं है और मजे की बात ये है कि आप समझ बैठे है कि केशव पंडित इस झांसे में आ जाएगा-आपने ऐसा सोचा, क्या यही बात मुझे यह इल्म कराने के लिए काफी नहीं है कि आप मुझे बेवकूफ समझने लगे हैं ?’’

किंग कोबरा की अवस्था ऐसी हो गई जैसे जिस्म को लकवा मार गया हो।

आंखें तक पथरा गई थीं उसकी -

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