रहस्य-रोमांच >> हिन्द का बेटा हिन्द का बेटावेद प्रकाश शर्मा
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
- ‘‘गीता पर हाथ रखकर कसम खाओ कि जो कुछ कहोगे सच कहोगे, सच के सिवा कुछ नहीं कहोगे।’’ भीड़ से खचाखच भरे अदालत कक्ष में सरकारी वकील मिस्टर टंडन ने उस हृष्ट-पुष्ट आदमी के सामने ताल जिल्द चढ़ी गीता फैलाकर कहा।
एक बार उस आदमी ने गीता को देखा, फिर सरकारी वकील को, एक नजर न्यायाधीश पर डाली और इसके बाद अदालत कक्ष में उमड़ने वाली उस भीड़ को देखा, जिसमें से अधिकांश अदालत का फैसला सुनने नहीं सिर्फ उसे देखने आए थे। इसके पहले खुद को देखने वालों की इतनी जबरदस्त भीड़ उसने कभी नहीं देखी थी। कक्ष में बिछी कुर्सियों पर फिसलती उसकी नजर सबसे आगे पंक्ति में बैठे कुछ आदमियों पर रूक गई। वे अन्य कोई नहीं विजय, विकास, सुपर रघुनाथ, ठाकुल निर्भयसिंह और ब्लैक ब्वॉय के अलावा और कोई नहीं थे। कटघरे में खड़े इस आदमी की नजर खासतौर से विजय पर स्थिर थी। अपने चेहरे पर साधारण भाव लिये विजय उस आदमी को देख रहा था। कटघरे में खड़ा व्यक्ति अपनी लाल सुर्ख आंखों से विजय को देख रहा था। कदाचित उसकी आंखें बुरी तरह फूट-फूटकर रोने के कारण लाल थीं। विजय उन नजरों का सामना नहीं कर सका, न जाने क्यों उसके जिस्म में झुरझुरी-सी दौड़ गई।
बड़े ही व्यंग्यात्मक ढंग से मुस्कराया वह आदमी, बोला - ‘‘क्यों मास्टर, आज गुलफाम से नजरें नहीं मिलती ?’’
- ‘‘इस कटघरे में खड़े होकर आप सिर्फ वह कहिए जिसकी इजाजत ये अदालत देती है।’’ मिस्टर टंडन ने गुलफाम से कहा।
गुलफाम !
इस वक्त मुजरिम के भेष में खड़ा व्यक्ति गुलफाम ही तो था। दुनिया में शायद सिर्फ वही एक ऐसा व्यक्ति होगा जो विजय को ‘मास्टर’ कहता था। गुलफाम अपने जमाने का माना हुआ गुंडा था। राजनगर का अपराध-जगत उसके नाम से थर-थर कांपता था। विजय ने खुद राजनगर के इस जबरदस्त गुंडे को अपने ढंग से सुधारा था। एक केस के सिलसिले में विजय गुलफाम से टकराया था। गुलफाम विजय की खूबियों से प्रभावित हुआ और विजय के कहने से ही उसने गुंडागर्दी छोड़ दी। राजनगर में ही वह ‘‘गुलफाम होटल और रेस्टोरेंट’’ के नाम से एक छोटी-सी दुकान चलाने लगा, उस दिन के बाद कभी किसी ने गुलफाम के हाथ में चाकू नहीं देखा। वह विजय को ‘मास्टर’ कहने लगा था। उसकी वह बहुत इज्जत करता था। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी गुलफाम के पास राजनगर के कोने-कोने में बसने वाले एक-एक गुंडे की रिपोर्ट रहती थी। कहा जाता था कि राजनगर में होने वाला एक भी अपराध ऐसा नहीं है जिसके करने वाले मुजरिमों की वह जानता न हो। हर नया, पुराना गुंडा अनाज भी गुलफाम के नाम से खौफ खाता था। यही कारण था कि जब भी विजय को किसी केस के सिलसिले में किसी गुंडे की तलाश होती, वह फौरन ‘गुलफाम होटल और रेस्टोरेंट’ पर जाकर उससे मिलता था। अपराध जगत में गुलफाम के हाथ इतने लम्बे थे कि दो घंटे के अंदर ही वह विजय के सामने इच्छित व्यक्ति लाकर खड़ा कर देता था। वही गुलफाम इस वक्त अपने प्रसिद्ध लिबास यानि कि एक चैकदार तहमद और आधी कलाइयों वाला जालीदार बनियान पहने कटघरे में खड़ा था। उसके गले में पड़ा काला ताबीज उसके व्यक्तित्व को हमेशा की तरह निखारता चला आ रहा था। उसका कसरती जिस्म देखकर कोई भी आदमी उसकी असीमित ताकत का आसानी से अनुमान लगा सकता था।
एक बार उस आदमी ने गीता को देखा, फिर सरकारी वकील को, एक नजर न्यायाधीश पर डाली और इसके बाद अदालत कक्ष में उमड़ने वाली उस भीड़ को देखा, जिसमें से अधिकांश अदालत का फैसला सुनने नहीं सिर्फ उसे देखने आए थे। इसके पहले खुद को देखने वालों की इतनी जबरदस्त भीड़ उसने कभी नहीं देखी थी। कक्ष में बिछी कुर्सियों पर फिसलती उसकी नजर सबसे आगे पंक्ति में बैठे कुछ आदमियों पर रूक गई। वे अन्य कोई नहीं विजय, विकास, सुपर रघुनाथ, ठाकुल निर्भयसिंह और ब्लैक ब्वॉय के अलावा और कोई नहीं थे। कटघरे में खड़े इस आदमी की नजर खासतौर से विजय पर स्थिर थी। अपने चेहरे पर साधारण भाव लिये विजय उस आदमी को देख रहा था। कटघरे में खड़ा व्यक्ति अपनी लाल सुर्ख आंखों से विजय को देख रहा था। कदाचित उसकी आंखें बुरी तरह फूट-फूटकर रोने के कारण लाल थीं। विजय उन नजरों का सामना नहीं कर सका, न जाने क्यों उसके जिस्म में झुरझुरी-सी दौड़ गई।
बड़े ही व्यंग्यात्मक ढंग से मुस्कराया वह आदमी, बोला - ‘‘क्यों मास्टर, आज गुलफाम से नजरें नहीं मिलती ?’’
- ‘‘इस कटघरे में खड़े होकर आप सिर्फ वह कहिए जिसकी इजाजत ये अदालत देती है।’’ मिस्टर टंडन ने गुलफाम से कहा।
गुलफाम !
इस वक्त मुजरिम के भेष में खड़ा व्यक्ति गुलफाम ही तो था। दुनिया में शायद सिर्फ वही एक ऐसा व्यक्ति होगा जो विजय को ‘मास्टर’ कहता था। गुलफाम अपने जमाने का माना हुआ गुंडा था। राजनगर का अपराध-जगत उसके नाम से थर-थर कांपता था। विजय ने खुद राजनगर के इस जबरदस्त गुंडे को अपने ढंग से सुधारा था। एक केस के सिलसिले में विजय गुलफाम से टकराया था। गुलफाम विजय की खूबियों से प्रभावित हुआ और विजय के कहने से ही उसने गुंडागर्दी छोड़ दी। राजनगर में ही वह ‘‘गुलफाम होटल और रेस्टोरेंट’’ के नाम से एक छोटी-सी दुकान चलाने लगा, उस दिन के बाद कभी किसी ने गुलफाम के हाथ में चाकू नहीं देखा। वह विजय को ‘मास्टर’ कहने लगा था। उसकी वह बहुत इज्जत करता था। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी गुलफाम के पास राजनगर के कोने-कोने में बसने वाले एक-एक गुंडे की रिपोर्ट रहती थी। कहा जाता था कि राजनगर में होने वाला एक भी अपराध ऐसा नहीं है जिसके करने वाले मुजरिमों की वह जानता न हो। हर नया, पुराना गुंडा अनाज भी गुलफाम के नाम से खौफ खाता था। यही कारण था कि जब भी विजय को किसी केस के सिलसिले में किसी गुंडे की तलाश होती, वह फौरन ‘गुलफाम होटल और रेस्टोरेंट’ पर जाकर उससे मिलता था। अपराध जगत में गुलफाम के हाथ इतने लम्बे थे कि दो घंटे के अंदर ही वह विजय के सामने इच्छित व्यक्ति लाकर खड़ा कर देता था। वही गुलफाम इस वक्त अपने प्रसिद्ध लिबास यानि कि एक चैकदार तहमद और आधी कलाइयों वाला जालीदार बनियान पहने कटघरे में खड़ा था। उसके गले में पड़ा काला ताबीज उसके व्यक्तित्व को हमेशा की तरह निखारता चला आ रहा था। उसका कसरती जिस्म देखकर कोई भी आदमी उसकी असीमित ताकत का आसानी से अनुमान लगा सकता था।
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