रहस्य-रोमांच >> बिच्छू बिच्छूवेद प्रकाश शर्मा
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘खून दो आजादी लो’ में मैंने लिखा था :
यह कथानक ‘वतन की कसम’ नामक उपन्यास के अन्त से आगे बढ़ाया गया था। ‘वतन की कसम’ के अंत से क्रांतिदल की सरदार अर्थात् राधिका अपने प्रेमी झबरा को इसलिए गोली सार देती है, क्योंकि झबरा ने वतन की कसम का अपमान किया था। उसी दृश्य से ‘खून दो आजादी लो’ का श्रीगणेश है।
झबरा को मारने के उपरान्त अभी राधिका अपने समक्ष पड़ी उसकी लाश को देख ही रही थी कि एक आवाज ने उसकी विचार-श्रृंखला भंग की। उसने देखा कि एक स्याहपोश उससे सम्बोधित हुआ। राधिका को पहचानने में देर न लगी कि उस नकाब के पीछे शंकर कपूर का चेहरा छुपा है। पहले क्रांतिदल का सरदार शंकर कपूर ही था। राधिका के सामने ही जब एक बार शंकर कपूर पुलिस की गोलियों से मारा गया तो मरने से पूर्व उसने राधिका से क्या था कि क्रांतिदल का नेतृत्व राधिका करे। बस - अपना कार्यभार राधिका को सौंपने के उपरांत शंकर कपूर राधिका की दृष्टि से मर चुका था। यहीं कारण था कि झबरा की मौत के समय राधिका शंकर कपूर को जीवित देखकर चौंक पड़ी। शंकर राधिका का मुंहबोला भाई था।
शंकर कपूर ने उसे बताया कि वास्तव से वह उस दिन मरा नहीं था। वह यह भी बताता है कि क्रांतिदल सिर्फ जाना ही नहीं है जितने का नेतृत्व राधिका करती थी और जो पहाड़ियों से समाप्त हो गया। वास्तविकता यह थी कि क्रांतिदल राधिका से ऊपर एक बहुत बड़ा दल था। असल में संपूर्ण क्रांतिदल का सर्वोच्च सरदार तो काई और ही है। उसी सरदार के आदेशानुसार शंकर कपूर के मरने का नाटक क्रांतिदल की उस शाखा का सरदार राधिका को बनाने के लिये किया गया या। शाखा - जी हां, वह दल जिसका नेतृत्व राधिका करती थी। सम्पूर्ण क्रांति मण्डल की एक शाखामात्र था। सम्पूर्ण मंडल के सर्वोच्च, मुख्य और अज्ञात सरदार ने राधिका की दृष्टि में शंकर कपूर को मार कर राधिका को मंडल की उस शाखा का सरदार बना दिया था और वास्तविकता यह थी कि शंकर कपूर को मुख्य सरदार ने मंडल में राधिका से ऊपर का एक सम्मानित पदाधिकारी बना दिया था।
यह सम्पूर्ण भेद राधिका को बताने के उपरांत शंकर कपूर ने कहा था कि - अब भी वह मुख्य सरदार के आदेश पर ही यहां आया है। सरदार ने राधिका को अपने पास बुलवाया था। सब कुछ समझने के वाद राधिका उसके साथ चलने हेतु तैयार हुई ही थी कि वातावरण से पुलिस सायरन की आवाज गूंज उठी। पुलिस के वहां पहुंचने से पूर्व ही पुलिस में इंस्पेक्टर के पद पर आसीन क्रांतिकारी वर्मा ने उन्हें वहां से सुरक्षित निकाल दिया। जाते समय राधिका झबरा की ताश अपने कंधे पर लादना नहीं भूली थी।
उधर - उस क्रांतिकारी का नाम जयचंद था, जिसने इनाम के लोभ से मंडल की राधिका वाली शाखा से गद्दारी की थी। उसी की दी हुई सूचना के आधार पर पुलिस ने पहाड़ियों से छुपे क्रांतिकारियों के अड्डे और अस्सी विद्रोहियों के एक दल को समाप्त करने में सफलता अर्जित की थी। जार्ज ग्रेन, रियाब्लो, जेम्स, बेनडान, डेनमार्क और पुलिस के डी. आई. जी. मिस्टर अग्रवाल पुलिस हैडक्वार्टर के एक हॉल में इस बात पर विचार-विमर्श कर रहे थे कि विद्रोहियों के जिस अड्डे को वे नष्ट करके जाए हैं, उनमें विद्रोहियों का सरदार भी मारा गया है या नहीं।
यह कथानक ‘वतन की कसम’ नामक उपन्यास के अन्त से आगे बढ़ाया गया था। ‘वतन की कसम’ के अंत से क्रांतिदल की सरदार अर्थात् राधिका अपने प्रेमी झबरा को इसलिए गोली सार देती है, क्योंकि झबरा ने वतन की कसम का अपमान किया था। उसी दृश्य से ‘खून दो आजादी लो’ का श्रीगणेश है।
झबरा को मारने के उपरान्त अभी राधिका अपने समक्ष पड़ी उसकी लाश को देख ही रही थी कि एक आवाज ने उसकी विचार-श्रृंखला भंग की। उसने देखा कि एक स्याहपोश उससे सम्बोधित हुआ। राधिका को पहचानने में देर न लगी कि उस नकाब के पीछे शंकर कपूर का चेहरा छुपा है। पहले क्रांतिदल का सरदार शंकर कपूर ही था। राधिका के सामने ही जब एक बार शंकर कपूर पुलिस की गोलियों से मारा गया तो मरने से पूर्व उसने राधिका से क्या था कि क्रांतिदल का नेतृत्व राधिका करे। बस - अपना कार्यभार राधिका को सौंपने के उपरांत शंकर कपूर राधिका की दृष्टि से मर चुका था। यहीं कारण था कि झबरा की मौत के समय राधिका शंकर कपूर को जीवित देखकर चौंक पड़ी। शंकर राधिका का मुंहबोला भाई था।
शंकर कपूर ने उसे बताया कि वास्तव से वह उस दिन मरा नहीं था। वह यह भी बताता है कि क्रांतिदल सिर्फ जाना ही नहीं है जितने का नेतृत्व राधिका करती थी और जो पहाड़ियों से समाप्त हो गया। वास्तविकता यह थी कि क्रांतिदल राधिका से ऊपर एक बहुत बड़ा दल था। असल में संपूर्ण क्रांतिदल का सर्वोच्च सरदार तो काई और ही है। उसी सरदार के आदेशानुसार शंकर कपूर के मरने का नाटक क्रांतिदल की उस शाखा का सरदार राधिका को बनाने के लिये किया गया या। शाखा - जी हां, वह दल जिसका नेतृत्व राधिका करती थी। सम्पूर्ण क्रांति मण्डल की एक शाखामात्र था। सम्पूर्ण मंडल के सर्वोच्च, मुख्य और अज्ञात सरदार ने राधिका की दृष्टि में शंकर कपूर को मार कर राधिका को मंडल की उस शाखा का सरदार बना दिया था और वास्तविकता यह थी कि शंकर कपूर को मुख्य सरदार ने मंडल में राधिका से ऊपर का एक सम्मानित पदाधिकारी बना दिया था।
यह सम्पूर्ण भेद राधिका को बताने के उपरांत शंकर कपूर ने कहा था कि - अब भी वह मुख्य सरदार के आदेश पर ही यहां आया है। सरदार ने राधिका को अपने पास बुलवाया था। सब कुछ समझने के वाद राधिका उसके साथ चलने हेतु तैयार हुई ही थी कि वातावरण से पुलिस सायरन की आवाज गूंज उठी। पुलिस के वहां पहुंचने से पूर्व ही पुलिस में इंस्पेक्टर के पद पर आसीन क्रांतिकारी वर्मा ने उन्हें वहां से सुरक्षित निकाल दिया। जाते समय राधिका झबरा की ताश अपने कंधे पर लादना नहीं भूली थी।
उधर - उस क्रांतिकारी का नाम जयचंद था, जिसने इनाम के लोभ से मंडल की राधिका वाली शाखा से गद्दारी की थी। उसी की दी हुई सूचना के आधार पर पुलिस ने पहाड़ियों से छुपे क्रांतिकारियों के अड्डे और अस्सी विद्रोहियों के एक दल को समाप्त करने में सफलता अर्जित की थी। जार्ज ग्रेन, रियाब्लो, जेम्स, बेनडान, डेनमार्क और पुलिस के डी. आई. जी. मिस्टर अग्रवाल पुलिस हैडक्वार्टर के एक हॉल में इस बात पर विचार-विमर्श कर रहे थे कि विद्रोहियों के जिस अड्डे को वे नष्ट करके जाए हैं, उनमें विद्रोहियों का सरदार भी मारा गया है या नहीं।
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