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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
अब मैं आपको वह स्वप्न बताऊंगा, जो युद्धकाल में 'प्रेमसेवा' (अर्थात्
सैनिकों की कामसन्तुष्टि का काय) के बारे में है। वह पहले सैनिक अस्पताल गई
और दरवाजे के सन्तरी से उसने कहा कि वह मुख्य डाक्टर (उसने एक नाम बोला जो
उसे याद नहीं था) से बातचीत करना चाहती है क्योंकि वह अस्पताल में काम करने
के लिए अपनी सेवाएं पेश करना चाहती है। ऐसा कहते हुए उसने 'सेवा' शब्द पर इस
तरह जोर दिया कि सारजेण्ट ने तरन्त समझ लिया कि वह 'प्रेमसेवा' के बारे में
कह रही है। क्योंकि वह वृद्ध महिला थी, इसलिए कुछ दुविधा के बाद उसने उसे
जाने दिया, पर मुख्य डाक्टर को ढूंढ़ने के बजाय वह एक बड़े अंधेरे कमरे में
पहुंची जहां कई अफसर, और सेना के डाक्टर एक लम्बी मेज़ के चारों ओर खड़े या
बैठे थे। वह एक डाक्टर की ओर मुड़ी और उसे उसने अपना प्रस्ताव बताया। वह
जल्दी ही उसका मतलब समझ गया। उसने स्वप्न में ये शब्द कहे थे, 'मैं और वियेना
की असंख्य दूसरी स्त्रियां और लड़कियां योद्धाओं के लिए, चाहे वे अफसर हों या
साधारण सैनिक...को तैयार हैं'–यह कथन अन्त में अस्पष्ट बुदबुदाहट में समाप्त
हो गया। पर उसने अफसरों के कुछ परेशान और कुछ दुर्भावनापूर्ण भावों से यह समझ
लिया कि उन्होंने उसका मतलब समझ लिया है। महिला ने आगे कहा 'मैं जानती हूं कि
हमारा फैसला अजीब मालूम होता है, पर हमारा विचार पक्का है। रणक्षेत्र में
सैनिक से यह नहीं पूछा जाता कि वह मरना चाहता है या नहीं।' इसके बाद एक मिनट
तक कष्टकारी चुप्पी रही; तब स्टाफ डाक्टर ने अपनी बांह उसकी कमर में डाल दी
और कहा, 'श्रीमतीजी, मान लो कि सचमुच यहां तक नौबत आ जाए कि...(अस्पष्ट
ध्वनि)।' उसने अपने को उसकी बांह से छुड़ा लिया और सोचा, 'वे सब एक-से होते
हैं, और उत्तर दिया, 'हे भगवान्, मैं तो बुढ़िया औरत हूं और शायद मेरे साथ यह
नहीं होगा, और एक शर्त अवश्य माननी होगी; उमर का अवश्य ध्यान रखना होगा।
जिससे कोई बुढ़िया स्त्री और जवान लड़का नहीं...(अस्पष्ट ध्वनि), यह बड़ी
भयंकर बात होगी।' स्टाफ डाक्टर ने कहा, 'मैं बिलकुल समझता हूं।' पर कुछ अफसर,
जिनमें एक वह भी था जिसने अपनी जवानी में उससे प्रेम किया था, ज़ोर से हंसे
और महिला ने कहा कि मुझे डाक्टर के पास ले चलो जिस वह जानती थी ताकि सारी बात
सीधी पेश की जा सके। तब उसे यह ध्यान आया और इससे उसे बड़ी चिन्ता हुई, कि
उसे उसका नाम मालूम नहीं था, पर स्टाफ डाक्टर ने बहुत आदर और विनय के साथ एक
संकरी, घुमावदार लोहे की सीढ़ी से, जो उस कमरे से, जिसमें वे थे, सीधी ऊपर की
मंज़िलों को जाती थी, उसे तीसरी मंज़िल का रास्ता दिखाया। जब वह ऊपर पहुंची
तब उसने एक अफसर को यह कहते सुना, 'वह जवान हो या बूढ़ी, पर यह एक महान
निश्चय है; वह सम्मान का पात्र है!' इस भावना के साथ कि वह तो सिर्फ अपना
कर्तव्य कर रही है, वह अन्तहीन सीढ़ी पर चढ़ गई। यह स्वप्न कुछ ही सप्ताहों
के भीतर दो बार आया, इसमें कहीं-कहीं मामूली हेर-फेर थे; पर वे, जैसा कि
महिला ने कहा, बिलकुल महत्त्वहीन और निरर्थक थे।
यह स्वप्न दिवास्वप्न की तरह ही आगे बढ़ता है; सिर्फ कुछ स्थानों पर रुकावट आ
जाती है और इसकी वस्तु में मौजूद बहुत-से व्यक्तिगत प्रश्न पूछताछ से हल हो
जाते हैं। परन्तु जैसा कि आप जानते हैं, यह पूछताछ नहीं की गई। पर इसमें सबसे
अधिक ध्यान खींचने वाली और हमारे लिए सबसे दिलचस्प चीज़ यह है कि वस्तु में,
न कि स्मरण में, बहुत-से खाली स्थान आते हैं। तीन स्थानों पर वस्तु मानो काट
दी गई है। जहां ये खाली स्थान आते हैं. वहां भाषणों के बीच में अस्पष्ट
बदबदाहट आ जाती है।
हमने इस स्वप्न का विश्लेषण नहीं किया, इसलिए यदि ठीक-ठीक देखा जाए तो हमें
इसके अर्थ के बारे में कुछ कहने का अधिकार नहीं है, परन्तु कुछ ऐसे संकेत हैं
जिनसे हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं; उदहारण के लिए, 'प्रेमसेवा' शब्द; और सबसे
बढ़कर बात यह है कि अस्पष्ट ध्वनि से पहले टूटे हुए भाषणों को पूरा करने के
लिए जिस तरह की चीज़ चाहिए, उसका एक ही तात्पर्य हो सकता है। यदि हम उन्हें
वैसे पूरा कर दें तो एक ऐसी कल्पना बन जाती है जिसमें वस्तु यह है कि स्वप्न
देखने वाला अपना कर्तव्य समझकर छोटे-बड़े सब तरह के सैनिकों की यौन
आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए तैयार है। यह निश्चित रूप से बड़ी आश्चर्यजनक
बात है, बेशर्मी-भरी कामुकतापूर्ण कल्पना है; पर स्वप्न इसके बारे में कुछ
नहीं कहता। जहां प्रसंग से यह स्वीकृत होनी चाहिए थी ठीक वहीं व्यक्त स्वप्न
में अस्पष्ट ध्वनि है; कोई चीज़ छोड़ दी गई है या दबा दी गई है।
मुझे आशा है कि आप यह अनुभव करेंगे कि यह अनुमान कितना स्वाभाविक है कि ये
वाक्य चोट पहुंचाने वाले होने के कारण ही दबाए गए हैं। अब बताइए कि इस तरह की
चीज़ और कहां होती है? आजकल के ज़माने में इसे खोजने आपको दूर नहीं जाना
होगा। किसी भी राजनीतिक अखबार को ले लीजिए, और आप देखेंगे कि जगह-जगह कोई
चीज़ गायब है, और इसके स्थान पर सफेद खाली कागज़ दिखाई दे रहा है। आप जानते
हैं कि यह प्रेस-सेन्सर का काम है। जहां-जहां जगह खाली है वहां-वहां शुरू में
जो चीज़ लिखी हुई थी, उसे सेन्सरशिप अधिकारियों ने नापसन्द किया और इस कारण
उसे हटा दिया गया। आप शायद इसे बड़े अफसोस की बात समझेंगे, क्योंकि वही
समाचार का सबसे महत्त्वपूर्ण या सारभूत भाग होता है।
कुछ जगह सेन्सरशिप ने पूरे वाक्य को नहीं छुआ है क्योंकि लेखक ने पहले ही यह
अनुमान करके कि सेन्सर को किन वाक्यों पर आपत्ति हो सकती है, उन्हें हल्का
करके, थोड़ा-सा बदलकर या जो कुछ वह वास्तव में लिखना चाहता है, उसके संकेतों
से ही सन्तुष्ट होकर सेन्सर की पेशबन्दी कर दी है। इस अवस्था में कोई जगह
खाली नहीं है, पर बात कहने के घुमावदार और स्पष्ट तरीके से आपको इस तथ्य का
पता चल सकता है कि लिखने के समय लेखक को सेन्सरशिप का ध्यान था।
अब इस सादृश्य के अनुसार चलते हुए हम कहते हैं कि स्वप्न में जो बातें छोड़
दी गई हैं या बुदबुदाहट के रूप में आई हैं वे भी किसी सेन्सरशिप की काटछांट
का नतीजा है। हम सचमच 'स्वप्न-सेन्सरशिप' या 'स्वप्नगत काट-छांट' शब्दों का
प्रयोग करते हैं और स्वप्न के विपर्यास का आंशिक कारण इसी को समझते हैं।
व्यक्त स्वप्न में जहां कहीं खाली स्थान है, वहां हम जानते हैं कि यह
सेन्सरशिप के कारण है, और इससे भी आगे बढ़कर हमें यह समझ लेना चाहिए कि दूसरे
अधिक प्रमुख रूप से निर्दिष्ट अवयव मे जहां कहीं कोई ऐसा अवयव है जिसकी याद
धुंधली, अनिश्चित या संदिग्ध है, वहां वह सेन्सरशिप के काम का ही सबूत है; पर
सेन्सरशिप इतना छिपा हुआ या चतुराई-भरा रूप बहुत कम ग्रहण करती है जितना इसने
'प्रेमसेवा' वाले स्वप्न में ग्रहण किया। प्रायः सेन्सरशिप ऊपर बताये गए
दूसरे तरीके से अपने होने का आभास देती है अर्थात् सच्चे अर्थ के स्थान पर
उसके रूप-भेद, संकेत और अस्पष्ट निर्देश पेश करती है।
स्वप्न-सेन्सरशिप के कार्य करने का एक तीसरा तरीका भी है, जो प्रेस-सेन्सरशिप
के नियमों से नहीं मिलता; पर बात यह है कि मैं आपको स्वप्न-सेन्सरशिप के
कार्य करने की यह विशेष रीति उस स्वप्न में ही दिखा सकता हूं जिसका अब तक
हमने विश्लेषण किया है। आपको 'डेढ़ फ्लोरिन के तीन खराब थियेटर-टिकटों' वाला
स्वप्न याद होगा। इस स्वप्न के पीछे मौजूद गुप्त विचारों में, ‘बहुत
जल्दबाज़ी' का तथ्य मुख्य था। उसका अर्थ यह था 'इतनी जल्दी विवाह करना
बेवकूफी थी; इतनी जल्दी टिकट लेना भी बेवकूफी थी, ननद का इतनी जल्दबाजी में
एक जेवर पर अपने रुपये खर्च कर डालना हास्यापद था।' स्वप्न-विचारों के इस
केन्द्रीय तत्त्व की कोई भी चीज़ व्यक्त वस्तु में नहीं दिखाई दी। उसमें हर
चीज़ का केन्द्र थियेटर जाना और टिकट लेना ही था, बल्कि स्थान-परिवर्तन और
स्वप्न-अवयवों की नई जोड़-तोड़ से व्यक्त वस्तु गुप्त विचारों से इतनी भिन्न
हो गई कि कोई भी उसके पीछे इसके होने का सन्देह नहीं करेगा। यह बलाघात का
विस्थापन या परिवर्तन विपर्यास में काम आने वाला एक प्रधान साधन है और इसी के
कारण स्वप्न में ऐसी विचित्रता आ जाती है जो स्वप्न देखने वाले को यह मानने
से रोकती है कि यह स्वप्न उसके अपने मन से पैदा हुआ है।
तो, विलोपन या किसी चीज़ का छूट जाना, रूप-भेद, और सामग्री की नई
जोड़-तोड़-इन तीन प्रकार से स्वप्न-सेन्सरशिप का कार्य होता है और विपर्यास
में प्रयुक्त साधन यही है। सेन्सरशिप स्वयं विपर्यास की, जो इस समय हमारी खोज
का विषय है, जन्मदाता या जन्मदाताओं में से एक है। रूप-भेद और विन्यास की
अदलबदल को आमतौर से विस्थापन1 शब्द के अन्तर्गत शामिल किया जाता है।
स्वप्न-सेन्सरशिप के कार्यों पर इतना विचार करने के बाद अब हमें इसकी गतिकी
पर ध्यान देना चाहिए। मुझे आशा है कि आप सेन्सरशिप शब्द का अर्थ बिलकुल
मनुष्य के रूप में नहीं ले रहे। आप यह मत समझिए कि सेन्सर कोई छोटा-सा मनुष्य
या आत्मिक सत्ता है जो मस्तिष्क की छोटी-सी कोठरी में रहती है और वहां से
सीमित कर्तव्य पूरे करती है और न आप इसे किसी छोटे-से स्थान में सीमित करके
यह कल्पना कर सकते हैं कि यह कोई ऐसा 'मस्तिष्क-केन्द्र' है जहां से
सेन्सरकारी असर किया करता है और उस केन्द्र को चोट पहुंचाने, या उसके निकल
जाने से सेन्सर का प्रभाव खत्म हो जाएगा। फिलहाल हम इसे गतिकीय सम्बन्ध का
प्रकट करने वाला एक उपयोगी शब्द-मात्र मान सकते हैं। इसके कारण हमें यह पूछने
में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए कि किस प्रकार की प्रवृत्तियां यह प्रभाव पैदा
करती हैं और किस प्रकार की प्रवृत्तियों पर इसका प्रभाव पड़ता है, और फिर
हमें यह जानने पर आश्चर्य न होना चाहिए कि हम शायद सेन्सरशिप को बिना पहचाने
उससे मिल चुके हैं।
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1. Displacement
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