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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
अब हम यह भी समझते हैं कि यह बात कितनी महत्त्वहीन है कि हमें स्वप्न के बारे
में कम याद है या अधिक, और उससे भी बढ़कर यह कि हमें वह ठीकठाक याद है या
नहीं। स्वप्न जिस रूप में याद है, उस रूप में वह बिलकुल ही यथार्थ चीज़ नहीं
है, बल्कि एक विपर्यस्त स्थानापन्न है, अर्थात् उसके स्थान पर बिगड़े हुए रूप
में मौजूद कोई और चीज़ है जो दूसरे स्थानापन्न मनोबिम्बों को वहां लाकर हमें
असली विचार के पास पहुंचाने का एक साधन बनती है, स्वप्न के पीछे मौजूद अचेतन
विचारों को चेतना में लाने का एक उपाय बनती है। अगर हमारा स्मरण दोषपूर्ण था
तो इतना ही हुआ है कि स्थानापन्न और विपर्यस्त हो गया है और यह विपर्यास भी
बिना किसी प्रेरक कारण के नहीं हो सकता।
हम दूसरों के स्वप्नों की तरह अपने स्वप्नों का भी अर्थ लगा सकते हैं। असल
में तो, हम अपने स्वप्नों से अधिक सीख सकते हैं, और उससे हमें अधिक पक्का
निश्चय होता है। अब, यदि हम इस दिशा में परीक्षण करें तो हम देखते हैं कि कोई
चीज़ हमारे विरुद्ध कार्य कर रही है। यह सच है कि साहचर्य आते हैं, पर हम उन
सबको ग्रहण नहीं करते। हम उनकी आलोचना करके छंटाई कर देते हैं। हम एक साहचर्य
के बारे में अपने-आपसे कहते हैं, 'नहीं, यह यहां नहीं जंचता, वह अप्रासंगिक
है,' और दूसरे के बारे में कहते हैं, 'यह बिलकुल बेतुका है, और तीसरे के बारे
में कहते हैं, 'यह असली बात से बिलकुल मेल नहीं खाता।' और तब हम यह भी देख
सकते हैं कि ऐसे एतराज़ करने में हम साहचर्यों के पूरी तरह स्पष्ट होने से
पहले ही उनका गला घोंट देते हैं और अन्त में उन्हें बिलकुल आने से ही रोक
देते हैं। इस ओर तो हम आरम्भिक मनोबिम्ब को अर्थात् स्वयं स्वप्न-अवयव को,
कसकर पकड़े रहने की ओर झुकते हैं, और दूसरी ओर छंटाई करके हम मुक्त या
स्वतन्त्र साहचर्य के प्रक्रम के परिणामों को दूषित कर देते हैं। यदि हम
स्वयं अर्थ लगाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं, बल्कि किसी और को अर्थ लगाने का
मौका दे रहे हैं, तो हमें स्पष्ट रूप से पता चलेगा कि इस छंटाई के लिए हमें
प्रेरित करने वाला एक और प्रेरक कारण है क्योंकि हम जानते हैं कि इसमें छंटाई
पर रोक है। कभी-कभी हम अपने को यह सोचता हुआ पाते हैं, 'नहीं, यह साहचर्य
बहुत अप्रिय है, यह मैं उसे नहीं बता सकता, या नहीं बताऊंगा।'
स्पष्ट है कि इन आक्षेपों से हमारे काम की सफलता संदिग्ध हो जाने का खतरा है।
हमें अपने स्वप्नों का अर्थ लगाते हुए इनसे बचे रहना चाहिए और इनके सामने न
झुकने का पक्का इरादा कर लेना चाहिए, और किसी दूसरे के स्वप्नों का अर्थ
लगाते हुए यह निश्चित नियम लागू करके उनसे बचना चाहिए कि वे किसी साहचर्य को
न रोकें, चाहे उसके विरुद्ध ऊपर बताई गई चार आपत्तियों में से कोई भी पैदा
होती हो, अर्थात् कि यह बिलकुल महत्त्वहीन है, बहुत बेतुका है, बिलकुल
अप्रासंगिक है या बड़ा अप्रिय है। वह इस नियम का पालन करने का वचन देता है।
पर. फिर भी. हमें यह देखकर परेशानी हो सकती है कि वह अपने वचन को बाद में
कितने अधूरे ढंग से पूरा करता है। पहले तो हम इसका कारण यह समझते हैं कि
हमारे पक्के आश्वासन के बाद भी उसे यह भरोसा नहीं है कि मुक्त या स्वतन्त्र
साहचर्य के प्रक्रम से होने वाले परिणाम मुक्त साहचर्य को उचित सिद्ध कर
सकेंगे; और शायद हमारा अगला विचार यह होगा कि पहले उसे अपने सिद्धान्त का
पक्षपाती बनाएं, उसे पढ़ने के लिए पुस्तकें दें या व्याख्यानों में भेजें
जिससे वह इस विषय पर हमारे विचारों का हो जाए। पर हम देखेंगे कि कुछ
साहचर्यों के विरुद्ध वही आलोचना-भरे आक्षेप हमारे अपने अन्दर भी आएंगे जिन
पर हम निश्चय ही, अश्रद्धालु होने का सन्देह नहीं कर सकते, और वे आक्षेप बाद
में ही, मानो पुनर्विचार करने पर हट सकते हैं और इस तरह हम कोई गलत कदम उठाने
से बच जाएंगे बजाय इसके कि हम अपनी आज्ञा न मानने के कारण स्वप्नद्रष्टा से
परेशान हों, हम इस अनुभव को कोई नई चीज़ सीखने का साधन बना सकते हैं और उस
चीज़ की हमें जितनी कम सम्भावना थी, वह उतनी ही अधिक महत्त्वपूर्ण है। हम
जानते हैं कि स्वप्न का अर्थ लगाने का काम असल में ऐसे प्रतिरोध को पराजित
करना ही है जो इस तरह के आलोचना-भरे आक्षेपों के रूप में प्रकट होता है। यह
प्रतिरोध स्वप्नद्रष्टा के सैद्धान्तिक विश्वास से बिलकुल स्वतन्त्र होता है।
हमें इससे भी कुछ अधिक बात समझ में आती है। अनुभव से प्रकट होता है कि इस तरह
का आलोचनापूर्ण आक्षेप कभी भी उचित नहीं होता। इसके विपरीत, लोग इस तरह जिन
साहचर्यों को दबाना चाहते हैं, वे बिना अपवाद के सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण
सिद्ध होते हैं। वे अचेतन विचार की खोज में निर्णायक होते हैं। जब किसी
साहचर्य पर इस तरह का आक्षेप किया जाए, तब निश्चित रूप से इस पर विशेष ध्यान
देना चाहिए।
यह प्रतिरोध एक बिलकुल नई चीज़ है। यह एक ऐसी घटना है, जिसका हमें अपनी
परिकल्पनाओं पर चलने से पता चला है, यद्यपि यह उनमें शामिल नहीं है। हम इस
नये कारक से ज़रा भी प्रसन्न नहीं हैं क्योंकि हमें पहले ही सन्देह है कि
इससे हमारे काम में कोई आसानी नहीं होगी। यह हमें स्वप्नों के विषय में सारी
कोशिश छोड़ने के लिए भी आकृष्ट कर सकता है। ऐसे तुच्छ विषय को उठाना और उस पर
इतनी उलझन में पड़ना उससे तो यही अच्छा है कि हमारी विधि से आराम से आगे
बढ़ते जाइए। पर इसके विपरीत, हमें ये कठिनाइयां आकर्षक लगेंगी, और यह सन्देह
होने लगेगा कि इस कार्य के लिए इतनी परेशानी उठाना उचित है। जब कभी हम
स्वप्न-अवयव द्वारा लाए गए स्थानापन्न से छिपे हुए अचेतन विचार में घुसने की
कोशिश करते हैं, तब ये प्रतिरोध सदा सामने आकर खड़े हो जाते हैं। इसलिए हम
कल्पना कर सकते हैं कि स्थानापन्न के पीछे अवश्य कोई बड़ी अर्थपूर्ण बात छिपी
होगी, क्योंकि यदि ऐसा नहीं है तो हमें तो ऐसी कठिनाइयों का क्यों सामना करना
पड़े जिनका प्रयोजन बातों को छिपाए रखना है। जब कोई बच्चा अपनी मुट्ठी खोलकर
यह दिखाने को तैयार नहीं होता कि उसमें क्या है, तब हम निश्चित रूप से यह समझ
सकते हैं कि उसके हाथ में कोई ऐसी चीज़ है जो नहीं होनी चाहिए थी।
ज्यों ही हम प्रतिरोध की गतिकीय1 अवधारणा को अपने विषय के अन्तर्गत लाते हैं
त्यों ही हमें यह ध्यान कर लेना चाहिए कि यह कारक मात्रा की दृष्टि से
परिवर्ती होता है। प्रतिरोध बड़ा भी होता है और छोटा भी, और अपने काम के बीच
में हमें यह अन्तर दिखाई देने की सम्भावना है। शायद हम इसके साथ एक और भी
अनुभव जोड़ सकते हैं, जो स्वप्न-निर्वचन के सिलसिले में आया है। मेरा आशय यह
है कि कभी-कभी बहुत थोड़े-से साहचर्य-शायद सिर्फ एक ही-हमें स्वप्न-अवयव से
उसके पीछे मौजूद अचेतन विचार पर पहुंचाने के लिए काफी होता है, और कभीकभी
साहचर्यों की लम्बी श्रृंखला की ज़रूरत होती है और बहुत-से गम्भीर आक्षेपों
को शान्त करना पड़ता है। हम सम्भवतः सोचेंगे कि प्रतिरोधों की शक्ति में
हेर-फेर के साथ अपेक्षित साहचर्यों की संख्या में भी हेर-फेर हो जाता है और
बहुत सम्भव है, हमारा विचार सही होता है। यदि सिर्फ हलका-सा प्रतिरोध है तो
स्थानापन्न बिम्ब अचेतन विचार से बहुत परे नहीं है। दूसरी ओर प्रबल प्रतिरोध
अचेतन विचार का रूप बहुत बिगाड़ देता है और इस तरह स्थानापन्न से अचेतन विचार
तक बहुत लम्बी यात्रा करनी पड़ती है।
शायद अब यह उचित होगा कि हम एक स्वप्न लेकर उस पर अपनी विधि की परीक्षा करें
और देखें कि हमने जो आशाएं की हैं वे पूरी उतरती हैं या नहीं। बहुत ठीक है।
पर हम कौन-सा स्वप्न चुनेंगे? आप नहीं जानते कि मेरे लिए यह निश्चय करना
कितना कठिन है, और न मैं आपको अभी यह स्पष्ट कर सकता हैं कि इसमें क्या
कठिनाइयां हैं। स्पष्टतः कुछ स्वप्न अवश्य ऐसे होंगे जिनमें कुल मिलाकर बहुत
ही थोड़ा विपर्यास होगा और आप सोचेंगे कि उन्हीं से शुरू करना सबसे अच्छा
रहेगा। परन्तु सबसे कम विपर्यस्त स्वप्न कौन-से हैं? क्या वे हैं जिनसे ठीक
अर्थ निकलता है, और जो बहुत-सी बातों की अस्पष्ट खिचड़ी नहीं हैं, और जिनके
दो उदाहरण मैं पहले आपको दे चुका हूं? यह मानकर हम बड़ी भूल करेंगे, क्योंकि
परीक्षण से पता चलता है कि इन स्वप्नों में इतना अधिक विपर्यास हुआ है जितना
और स्वप्नों में नहीं होता। अब यदि मैं कोई विशेष शर्त न रखकर कोई भी स्वप्न
ले लूं तो शायद आपको बड़ी निराशा होगी। हमें शायद एक ही स्वप्न-अवयव के इतने
अधिक साहचर्य देखने और दर्ज करने पड़ें कि सारे काम की एक स्पष्ट रूपरेखा
प्राप्त करना बिलकुल असम्भव हो जाए। यदि हम स्वप्न को लिख डालें और इससे पैदा
होने वाले सब साहचर्यों की इससे तुलना करें तो हम यह देखेंगे कि स्वप्न का
कथानक कई गुना लम्बा हो गया है। इसलिए सबसे अधिक व्यावहारिक तरीका यही हो
सकता है कि विश्लेषण के लिए कई छोटे-छोटे स्वप्न छांट लिए जाएं जिनमें से
प्रत्येक से हमें कोई-न-कोई विचार मिले, या किसी कल्पना की पुष्टि हो। यदि
अनुभव से हमें यह संकेत न मिले कि हमें यह विपर्यस्त स्वप्नों की खोज असल में
कहां करनी चाहिए तो हम इसी मार्ग पर चलने का फैसला करेंगे।
पर मैं मामले को आसान बनाने का एक और तरीका सुझा सकता हूं, जो बिलकुल हमारे
सामने मौजूद है। बजाय इसके कि पूरे स्वप्न का अर्थ लगाने की कोशिश की जाए, हम
सिर्फ एक स्वप्न-अवयव पर विचार करें और कई उदाहरण लेकर यह पता लगाएं कि हमारी
विधि के प्रयोग से उनकी व्याख्या कैसे होती है।
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