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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
मैंने, और मेरे बाद अनेक व्यक्तियों ने बिना किसी विचार के पुकारे गए नामों
और संख्याओं की परीक्षा की है। इनमें से कुछ परीक्षण प्रकाशित हुए हैं। इसकी
विधि यह है : जो नाम आधा है, उससे साहचर्यों या सम्बन्धों की एक श्रृंखला
उबुद्ध हो जाती है, और अब ये साहचर्य, जैसा कि आप देखते हैं, सर्वथा मुक्त या
स्वतन्त्र नहीं होते, बल्कि ठीक उतनी दूर तक जुड़े रहते हैं जितनी दूर तक
साहचर्य स्वप्न के विभिन्न अवयवों से जुड़े रहते हैं; अब यह साहचर्य-श्रृंखला
तब तक कायम रखी जाती है जब तक आवेग से उत्पन्न विचार समाप्त न हो जाएं। पर तब
तक आप किसी नाम के साथ होने वाले मुक्त साहचर्य के प्रेरक कारण और सार्थकता
को स्पष्ट कर चुके होंगे। इन परीक्षणों से बार-बार वही परिणाम आता है; वे जो
सूचना देते हैं, उनमें प्रायः बहुत सारी सामग्री होती है, और इनमें इसके
विभिन्न रूपों पर विचार के लिए दूर-दूर तक जाना पड़ता है। संख्याओं के स्वतः
पैदा होने वाले साहचर्य शायद सबसे अधिक स्पष्ट प्रदर्शित होते हैं, वे
एक-दूसरे के बाद इतनी तेजी से आते हैं, और एक छिपे हुए ध्येय की ओर इतनी
आश्चर्यजनक निश्चितता से चलते हैं कि आदमी सचमुच हक्का-बक्का रह जाता है। मैं
आपको इस तरह के नाम-विश्लेषण का सिर्फ एक उदाहरण दूंगा, क्योंकि यह ऐसा
उदाहरण है जिसमें बहुत सारी सामग्री के झगड़े में नहीं पड़ना पड़ता।
एक बार मैं एक नौजवान का इलाज कर रहा था। तब मैंने इस विषय पर बलपूर्वक यह
कहा कि यद्यपि ऐसे मामलों में हमें पसन्द या चुनाव की स्वतन्त्रता दिखाई देती
है, तो भी तथ्यतः हम कोई ऐसा नाम नहीं सोच सकते जिसके बारे में यह सिद्ध न
किया जा सकता हो कि वह परीक्षण के पात्र व्यक्ति की तात्कालिक परिस्थितियों,
उसकी विलक्षणताओं, और उसकी उस क्षण की स्थिति से प्रायः निर्धारित है-उन
मानसिक और बाहरी परिस्थितियों में यही नाम आना निश्चित है। उसे इस बात में
सन्देह था, इसलिए मैंने कहा कि तुम अभी स्वयं यह परीक्षण करो। मैं जानता था
कि स्त्रियों और लड़कियों के साथ वह अनेक प्रकार से सम्बन्ध रखता था; इसलिए
मैंने उससे कहा कि मेरे ख्याल में, यदि आप अपने मन में किसी स्त्री का नाम
सोचेंगे तो आपको चुनाव करने के लिए बहुत सारे नाम मिल सकेंगे। उसने स्वीकार
किया। मुझे और शायद स्वयं उसे भी आश्चर्य हुआ कि उसने स्त्रियों के नामों की
झड़ी नहीं लगाई, बल्कि कुछ देर चुप रहा, और इसके बाद उसने स्वीकार किया कि
उसके मन में एक ही नाम आया है-'अलबाइन'। "कैसी अजीब बात है! इस नाम से आप किस
तरह सम्बद्ध हैं? आप कितनी 'अलबाइनों को जानते हैं?" विचित्र बात थी कि वह
अलबाइन नाम वाले किसी व्यक्ति को भी नहीं जानता था, और उस नाम से उसे कोई
साहचर्य या सम्बन्ध नहीं ज्ञात होता था। आप यह परिणाम निकालेंगे कि विश्लेषण
विफल रहा; पर नहीं, यह पहले ही पूरा हो चुका है, और किसी अन्य साहचर्य की
आवश्यकता नहीं रह गई है। वह आदमी असाधारण रूप से गोरा और सुन्दर था, और
विश्लेषण में उससे बातचीत करते हुए मैंने हंसी में उसे अलबिनो (महाश्वेत) कहा
था; इसके अलावा हम उसके स्वभाव में स्त्रैण तत्त्व खोजने में लगे हुए थे। इस
प्रकार, यह स्त्री अलबिनो वह स्वयं ही था-उस समय 'यही स्त्री' उसकी सबसे अधिक
दिलचस्पी का विषय थी।
इसी प्रकार किसी आदमी के मन में एकाएक जो गाने की तर्जे आ जाती हैं, उनके
विषय में यह सिद्ध किया जा सकता है किसी विचार-श्रृंखला के कारण, जो किसी
अज्ञात कारण से उस समय उसके मन में विना उसके जानते हुए चल रही होती है, वही
तर्जे आनी अनिवार्य थीं। यह प्रदर्शित करना आसान है कि तर्ज़ के साथ सम्बन्ध
या तो गीत के शब्दों के कारण होता है, और या उसे पैदा करने वाले स्रोत के
कारण। पर इतनी बात और कहना चाहता हूं कि यह बात उन वस्तुतः संगीतप्रेमी लोगों
के बारे में मैं ठीक नहीं मानता जिनके बारे में मुझे कोई विशेष अनुभव नहीं
है; उनकी चेतना में धुनों के एकाएक आने का कारण उनका संगीतात्मक महत्त्व हो
सकता है। निश्चित रूप से पहली अवस्था अधिक आन होती है। मैं एक ऐसे नौजवान को
जानता हूं जिसके मन में कुछ समय से हेलन आफ ट्राय के पेरिस के गीत की धुन
(मानता हूं कि वह मोहक थी) ही घूम रही थी; अन्त में विश्लेषण में उसका ध्यान
इस तथ्य की ओर खींचा गया कि उस समय उसकी दिलचस्पी में कोई ‘ईडा' और कोई
‘हेलन' प्रतिद्वन्द्विता कर रही थीं।
तो, यदि बिलकुल मुक्त या स्वतन्त्र रूप से पैदा होने वाले साहचर्य भी इस
प्रकार नियत या निर्धारित होते हैं और किसी सुनिश्चित सिलसिले में बंधे होते
हैं, तो हमारा यह नतीजा निकालना निश्चित रूप से उचित है कि एक ही
उद्दीपनबिम्ब से जुड़े हुए साहचर्य भी इतने ही निश्चित रूप से नियत होंगे।
जांच से यह पता चलता है कि वे केवल उस उद्दीपन-बिम्ब से ही जुड़े हुए नहीं
हैं जो हमने उनके सामने रखा है, बल्कि वे प्रबल भावनायुक्त विचारों और
अभिरुचियों के दायरों पर निर्भर भी हैं (इन दायरों को हम ग्रन्थियां1 कहते
हैं) और इस समय इन दायरों, अर्थात् अचेतन व्यापारों, के बारे में कुछ भी
ज्ञात नहीं है।
इस प्रकार जड़े हए साहचर्यों पर बड़े शिक्षाप्रद परीक्षण किए गए हैं
जिन्होंने मनोविश्लेषण के इतिहास पर बड़ा उल्लेखनीय प्रभाव डाला है। वुण्ट के
विचारसम्प्रदाय वालों ने तथाकथित 'साहचर्य-परीक्षण' को जन्म दिया, जिसमें
परीक्षण के आश्रयभूत व्यक्ति से यह कहा जाता है कि वह दिए हुए 'उद्दीपन-शब्द'
का, जल्दी-से-जल्दी जो भी 'प्रतिक्रिया-शब्द' उसके मन में आए उससे, उत्तर दे।
तब निम्नलिखित बातें नोट करनी चाहिए : उद्दीपन-शब्द के कथन और
प्रतिक्रिया-शब्द के कथन के बीच कितना समय बीता; प्रतिक्रिया-शब्द की
प्रकृति, और यही परीक्षण बाद में दोहराने पर उसमें दिखलाई पड़ी कोई भूल
इत्यादि। ब्लूलर और युंग के नेतृत्व में जूरिच सम्प्रदाय साहचर्य-परीक्षण की
प्रतिक्रियाओं की व्याख्या पर पहुंचने के लिए परीक्षण के अधीन व्यक्ति से यह
कहता था कि जो साहचर्य उसे ज़रा भी विशेषतायुक्त मालूम हों उन पर वह रोशनी
डाले, अर्थात् यह बाद के साहचर्यों से प्रतिक्रियाओं की व्याख्या पर पहुंचता
था। इस प्रकार, यह स्पष्ट हो गया कि ये असामान्य प्रतिक्रियाएं पूरी तरह उस
व्यक्ति की ग्रन्थियों अर्थात् भावना-ग्रन्थियों के अनुसार ही होती थीं। इस
खोज द्वारा ब्लूलर और युंग ने प्रायोगिक मनोविज्ञान और मनोविश्लेषण के बीच
पहला सम्बन्ध स्थापित किया।
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1. Complexes
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