विविध >> मनोविश्लेषण मनोविश्लेषणसिगमंड फ्रायड
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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
यह विधि निश्चित रूप से बड़ी सीधी है। तो भी मुझे डर है कि यह आपके अन्दर
बड़ा ज़बरदस्त विरोध पैदा करेगी। आप कहेंगे, 'एक और तीसरी परिकल्पना! उस पर
सबसे अधिक असंभाव्य! जब मैं स्वप्न देखने वाले से यह पूछता हूं कि स्वप्न के
बारे में आपके मन में क्या विचार आते हैं, तब क्या आप यह कहना चाहते हैं कि
उसके सबसे पहले साहचर्य, अर्थात् मन की बात से ही अभीष्ट व्याख्या हो जाएगी?
पर यह भी तो हो सकता है कि उसके मन में कोई साहचर्य ही न हो। यह ईश्वर ही
जानता है कि वह साहचर्य क्या हो सकता है। हम यह नहीं समझ सकते कि ऐसी आशा किस
आधार पर की जाती है। असल में, इससे भाग्य में बहुत अधिक विश्वास ध्वनित होता
है और वह भी ऐसी जगह, जहां आलोचना की क्षमता का अधिक प्रयोग करने से मामला
अधिक अच्छी तरह सुलझाया जा सकता है। इसके अलावा, स्वप्न किसी अकेली जीभ की
गलती जैसी चीज़ नहीं है; वह बहुत-से अवयवों का बना हुआ होता है। ऐसी अवस्था
में हम किस साहचर्य पर भरोसा करें?'
सारे अनावश्यक अंशों में आपकी बात सही है। यह सच है कि बोलने की गलती और
स्वप्न में कई भेद हैं, जिनमें से एक यह है कि स्वप्न बहुत-से अवयवों से बना
हुआ होता है। हमें अपनी विधि में उसका ध्यान रखना होगा। इसलिए मैं यह सुझाव
रखता हूं कि हम स्वप्न को उसके अनेक अवयवों में बांट दें, और प्रत्येक अवयव
पर अलग-अलग विचार करें। तब इसका और बोलने की गलती का फिर सादृश्य स्थापित हो
जाएगा। आपका यह कहना भी सही है कि स्वप्न के एक-एक अवयव के बारे में पूछने पर
स्वप्न देखने वाला यह जवाब दे सकता है कि उसे उनके बारे में कुछ ध्यान नहीं
है। कुछ उदाहरणों में हम यह उत्तर स्वीकार कर लेते हैं, और मैं आगे चलकर आपको
यह बताऊंगा कि वे कौन-से उदाहरण हैं। विचित्र बात यह है कि ये उदाहरण वे हैं
जिनके बारे में हमारे अपने शायद कुछ सुनिश्चित विचार हैं, परन्तु साधारणतया
जब स्वप्न देखने वाला यह कहता है कि उसका कोई विचार नहीं है, तब हम उसकी बात
का विरोध करेंगे, जवाब देने के लिए उस पर जोर डालेंगे, उसे यह विश्वास
दिलाएंगे कि उसके मन में अवश्य कछ विचार हैं और हम देखेंगे कि हम सही कहते
थे-वह कोई-न-कोई साहचर्य पेश करेगा। वह क्या है इससे हमें विशेष मतलब नहीं
है। विशेष रूप से वह हमें ऐसी जानकारी देगा जिसे हम ऐतिहासिक कह सकते हैं। वह
कहेगा, 'यह कुछ वैसी बात है जैसी कल हुई थी,' (जैसा कि ऊपर बताए गए दो
भावहीन' स्वप्नों के उदाहरण में था) या 'इससे मुझे किसी ऐसी चीज़ का ध्यान
आता है जो हाल में ही हुई थी, और इस तरह हम यह देखेंगे कि अधिकतर स्वप्नों का
सम्बन्ध उन प्रभावों से है जो एक दिन पहले के हैं। अन्त में स्वप्न से शुरू
करके वह उन घटनाओं को दोहराएगा जो कुछ और पहले हुई थीं, और अन्त में ऐसी
घटनाएं भी बताएगा जो बहुत पहले की हैं।
परन्तु मुख्य प्रश्न के बारे में आपका विचार गलत है। जब आप यह समझते हैं कि
यह मनमानी कल्पना है कि स्वप्न देखने वाले का पहला साहचर्य हमें वही बात
प्रकट कर देगा जिसकी हम तलाश में हैं, या कम-से-कम, हमें उसकी ओर ले जाएगा;
साथ ही यह कल्पना भी, कि अधिक सम्भवतः साहचर्य बिल्कुल मनमाना होगा, और उसका
उस चीज़ से कोई सम्बन्ध नहीं होगा जिसकी हम तलाश कर रहे हैं, और यदि मैं किसी
और बात की आशा करता हूं तो इससे भाग्य में मेरा अन्धविश्वास ही अधिक होता है
तो आप बहुत भारी गलती करते हैं। मैं पहले ही यह संकेत कर चुका हूं कि मन की
स्वतन्त्रता और चुनाव-क्षमता का गहरा जमा हुआ विश्वास आपके मन में मौजूद है;
मैं यह भी कह चुका हूं कि यह विश्वास बिलकुल अवैज्ञानिक है, और इसे नियतिवाद1
के, जो मानसिक जीवन को भी शासित करता है, दावों के सामने मैदान छोड़ना ही
पड़ेगा। मैं आपसे कहता हूं कि इस तथ्य की कुछ तो इज्जत कीजिए कि जब स्वप्न
देखने वाले से पूछा जाता है, तब उसके मन में एक वही साहचर्य आता है, और कोई
नहीं आता। मैं एक विश्वास के विरोध में दूसरे विश्वास की स्थापना भी नहीं कर
रहा हूं। यह प्रमाणित किया जा सकता है कि इस प्रकार बताया गया साहचर्य उसकी
मर्जी का मामला नहीं है, वह अनियत नहीं है और वह उससे असम्बन्धित भी नहीं है
जिसे हम खोज रहे हैं। असल में, मुझे हाल में ही पता चला है-पर इसका यह अर्थ
नहीं कि मैं इसे कोई खास महत्त्व देता हूं-कि स्वयं प्रायोगिक मनोविज्ञान ने
भी ऐसे ही प्रमाण पेश किए हैं।
यह मामला महत्त्वपूर्ण होने के कारण मैं आपसे इस पर विशेष ध्यान देने के लिए
कहता हूं। जब मैं किसी आदमी से यह पूछता हूं कि स्वप्न के अमुक अवयव के बारे
में उसके मन में क्या बात आती है तब मैं यह आशा करता हूं कि वह मुक्त साहचर्य
के प्रक्रम में अपने-आपको शिथिल छोड़ दे, और यह तब होता है जब वह मूल आरम्भिक
विचार अपने मन में रखता है। इसके लिए एक विशेष प्रकार से ध्यान देने की जरूरत
होती है। यह चीज अनचिन्तन या निदिध्वासन2 से बिलकल भिन्न है, बल्कि वह तो
इसमें हो ही नहीं सकता। कुछ लोग बिना किसी मुश्किल के ऐसी अवस्था बना लेते
हैं, पर कुछ लोग जब ऐसा करने की कोशिश करते हैं, तब उनमें एक अविश्वसनीय
अरुचि दिखाई देती है। जो साहचर्य उस समय दिखाई देता है जब मैं किसी खास
उद्दीपन-बिम्ब3 या उद्दीपन-विचार के बिना काम चलाता हूं, और अपने अभीष्ट
साहचर्य के आकार-प्रकार का शायद वर्णन-मात्र कर देता हूं, तब साहचर्य में और
भी अधिक स्वतन्त्रता होती है; उदाहरण के लिए, किसी आदमी से कहिए कि वह कोई
व्यक्तिवाचक नाम या कोई संख्या सोचे। आप कहेंगे कि इस तरह का साहचर्य, हमारी
विधि में प्रयुक्त साहचर्य की अपेक्षा अपनी पसन्द के और भी अधिक अनुकूल होगा
और इसका कोई कारण नहीं बताया जा सकेगा। तो भी यह सिद्ध किया जा सकता है कि यह
मन की महत्त्वपूर्ण भीतरी अभिवृत्तियों के ही ठीक-ठीक अनुसार होगा-ये
अभिवृत्तियां4 क्रियाशील होने के समय हमारे लिए उतनी ही अज्ञात हैं, जितनी
अज्ञात गलतियां पैदा करने वाली विघातक प्रवृत्तियां; और वे प्रवृत्तियां वहीं
हैं जो 'संयोगवश उत्पन्न' कहलाने वाली क्रियाएं पैदा करती हैं।
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1. Determinism
2. Reflection
3. Stimulus-idea
4. Attitudes
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