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मनोविश्लेषण

सिगमंड फ्रायड

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :392
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8838
आईएसबीएन :9788170289968

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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद


विज्ञान के रूप में मनोविश्लेषण की विशेषता इसकी कार्य करने की विधियां हैं, इसकी वर्णित वस्तु नहीं। इन विधियों का जो सारभाग है, वह सभ्यता के इतिहास पर, धर्म-विज्ञान पर तथा पुराण-शास्त्र पर उसी तरह लागू किया जा सकता है, जैसे स्नायु-रोगों के अध्ययन पर। मनोविश्लेषण का लक्ष्य और सफलता मानसिक जीवन में अचेतन की खोज ही है, और कुछ नहीं। असली स्नायु-रोगों की समस्या, जिसमें लक्षण सम्भाव्यतः सीधे टाक्सिक, अर्थात् विष प्रभावजनित आघात से पैदा होते हैं, मनोविश्लेषण के विचारणीय विषय नहीं। इससे उन पर कोई खास रोशनी नहीं पड़ सकती, और इसे वह काम जैविकीय तथा चिकित्सा सम्बन्धी गवेषणा के लिए ही छोड़ देना होगा। शायद अब आप यह बात अधिक अच्छी तरह समझ गए होंगे कि मैंने अपने विषय-प्रतिपादन के लिए यह सिलसिला क्यों चुना। यदि मेरा विचार स्नायु-रोगों के अध्ययन की भूमिका पेश करना होता तो निस्सन्देह यही ठीक होता कि मैं पहले (असली) स्नायु-रोगों के सरल रूप पेश करता और फिर उनसे चलकर राग के विक्षोभों से पैदा होने वाले अधिक उलझे हुए मनोधात्वीय विकारों पर पहुंचता। पहले विषय के बारे में मुझे अनेक स्थानों से वह सामग्री जमा करनी पड़ती, जो उसके बारे में हम जानते हैं, या हम समझते हैं कि हम जानते हैं; और इन पिछले स्नायु-रोगों के बारे में विचार करते हुए इन अवस्थाओं के रहस्य को समझने के सबसे महत्त्वपूर्ण टेक्नीकल साधन के रूप में मनोविश्लेषण को पेश करना पड़ता, पर मुझे मनोविश्लेषण की भूमिका या परिचय देना था, और ऐसा ही मैंने कहा भी था। आपको स्नायु-रोगों के बारे में कुछ समझा देने की अपेक्षा मैंने आपको मनोविश्लेषण की एक रूपरेखा देना अधिक महत्त्वपूर्ण समझा, और इसलिए असली स्नायु-रोग, जिनसे मनोविश्लेषण के अध्ययन में कोई मदद नहीं मिलती, उचित रूप से सामने न लाया जा सका। मैं यह भी समझता हूं कि मेरा चुनाव आपके लिए अधिक उपयोगी था, क्योंकि मनोविश्लेषण की क्रांतिकारी स्वयंसिद्धियां और दूरगामी सम्बन्ध-सूत्र इसे प्रत्येक शिक्षित की दिलचस्पी का पात्र बनाते हैं, पर स्नायु-रोगों का सिद्धान्त और चीज़ों की तरह चिकित्सा-शास्त्र का ही एक प्रकरण है।

फिर भी, आपका यह आशा करना उचित है कि हमें असली स्नायु-रोगों में कुछ दिलचस्पी होनी चाहिए। मनोस्नायु-रोगों के साथ उनके निकट सम्बन्ध के कारण भी इसकी आवश्यकता है। तो मैं आपको यह बताऊंगा कि असली स्नायु-रोग के हम तीन शुद्ध रूप मानते हैं : न्यूरैस्थीनिया या स्नायु-दुर्बलता, चिन्ता-स्नायु-रोग और हाइपोकोन्ड्रिया या उदासी रोग। इस वर्गीकरण पर भी आपत्ति उठाई गई है। ये शब्द निश्चित रूप से प्रयोग में आते हैं, पर उनका अर्थ अस्पष्ट और अनिश्चित है। कुछ डाक्टर ऐसे हैं जो स्नायविक रोगों की उलझनदार दुनिया में कोई भी भेद करने के विरोधी हैं, जो रोग-सत्ताओं या रोग-प्ररूपों में कोई भी विवेक करने पर आपत्ति उठाते हैं, और असली स्नायु-रोगों और मनोस्नायु-रोगों का भेद भी नहीं मानते। मेरी राय में वे अति करते हैं, और उन्होंने जो दिशा चुनी है, वह तरक्की में सहायक नहीं हो सकती। ऊपर बताए गए तीन प्रकार के स्नायु-रोग बहुत बार शुद्ध रूप में पाए जाते हैं। यह सच है कि वे अधिकतर एक-दूसरे से और किसी मनोस्नायु-रोग से मिले हुए होते हैं। इस तथ्य के कारण हमें उनमें विभेद करना ही नहीं छोड़ देना चाहिए। विज्ञान में खनिज-शास्त्र के खनिजों और कच्ची धातु के अन्तर पर विचार कीजिए : खनिजों का अलग-अलग वर्गीकरण किया जाता है. जिसका एक कारण यह है कि वे बहुत बार ऐसे मणियों1 के रूप में पाए जाते हैं जो अपने आसपास की और वस्तुओं से स्पष्टतः भिन्न होते हैं; कच्ची धातु में खनिज मिले हुए होते हैं, जो अकस्मात् नहीं मिल गए हैं, बल्कि अपने निर्माण के समय की अवस्थाओं के अनुसार मिले हैं। स्नायु-रोगों के सिद्धान्त में स्नायु-रोगों के परिवर्धन के प्रक्रम के बारे में हमें इतनी थोड़ी जानकारी है कि अपने कच्ची धातु-सम्बन्धी ज्ञान की तरह हम कोई ज्ञान क्रमबद्ध नहीं कर सकते; पर लक्षणों के समूह में से पहचान योग्य रोग-लक्षणों को, जिनकी अलग-अलग खनिजों से तुलना की जा सकती है, पहले अलग कर लेना निश्चित ही सही दिशा में कदम उठाना है।

असली स्नायु-रोगों और मनोस्नायु-रोगों के बीच मौजूद एक ध्यान देने योग्य सम्बन्ध-सूत्र से मनोस्नायु-रोगों में लक्षण-निर्माण के बारे में कीमती सहायता मिलती है; असली स्नायु-रोग का लक्षण बहुधा मनोस्नायु-रोग के लक्षण का नाभिक या केन्द्र और प्रारम्भिक अवस्था होता है। इस तरह का सम्बन्ध-सूत्र स्नायु-दुर्बलता और उस स्थानान्तरण स्नायु-रोग में, जिसे कन्वर्शन-हिस्टीरिया कहते हैं, चिन्ता-स्नायु-रोग और चिन्ता-हिस्टीरिया में बहुत स्पष्ट रूप में रखा जा सकता है। इतना ही नहीं, बल्कि यह उदासी या हाइपोकोन्ड्रिया में और पैराफ्रेनिया (डेमेंशिया प्रीकौक्स और पैरानोइया) नामक स्नायु-रोग के रूपों में भी पाया जाता है, जिस पर हम आगे चलकर विचार करेंगे। उदाहरण के लिए, हिस्टीरिया वाले का सिर-दर्द या पीठ-दर्द ले लीजिए। विश्लेषण से पता चलता है कि संघटन और विस्थापन द्वारा यह एक पूरी-की-पूरी रागात्मक कल्पनाओं या स्मृतियों की सारी-की-सारी श्रृंखला के लिए स्थानापन्न सन्तष्टि बन गया है, पर किसी समय यह दर्द वास्तविकता था. एक यौन टाक्सिन का प्रत्यक्ष लक्ष्य था, एक यौन उत्तेजन का शारीरिक प्रकाशन था। हम यह नहीं मानते कि हिस्टीरिया के सब लक्षणों में इस तरह का एक नाभिक होता है, पर बहुधा यह बात सच होती है और शरीर पर रागात्मक उत्तेजन के जो भी स्वस्थ या रोगात्मक परिणाम होते हैं, वे हिस्टीरिया के लक्षण-निर्माण के प्रयोजन पूरे करने के लिए विशेष रूप से अनुकूल बने हुए होते हैं। सम्भोग-कार्य के साथ होने वाले यौन उत्तेजन के अस्थायी चिह्न उसी तरह लक्षण-निर्माण के लिए सबसे अधिक उपयुक्त और सुविधाजनक सामग्री के रूप में मनोस्नायु-रोग को लाभ पहुंचाते हैं।

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1. Crystal

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