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विविध >> मनोविश्लेषण मनोविश्लेषणसिगमंड फ्रायड
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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
यह कहना यथार्थ नहीं है कि मनोविश्लेषण ने व्यक्तित्व के यौनेतर पहलू पर
बिलकुल विचार नहीं किया। अहम् और यौन प्रवृत्तियों के विभेद से ही हमें यह
विशेष स्पष्टता से पता चल गया है कि अहंकार-वृत्तियों में भी एक महत्त्वपूर्ण
परिवर्धन होता है, जो न तो राग के परिवर्धन से पूरी तरह स्वतन्त्र होता है,
और न उस पर प्रभाव डालने में निष्क्रिय.। अहम् के परिवर्धन को हम उतनी अच्छी
तरह नहीं समझ पाए हैं जितनी अच्छी तरह राग के परिवर्धन को, क्योंकि
स्नायु-रोगों के अध्ययन से ही अहंकार की संरचना का रहस्य समझ में आने की कुछ
आशा हुई है। तो भी फेरेक्जी ने अहम के परिवर्धन की क्रमिक अवस्थाओं की
सैद्धान्तिक रूप से पुनः रचना करने का उल्लेखनीय प्रयत्न किया है, और
कम-से-कम दो बातें ऐसी हैं, जिन पर हमें एक ऐसा दृढ़ आधार मिल जाता है, जिससे
इस परिवर्धन की आगे परीक्षा की जा सकती है। हम यह नहीं समझते कि मनुष्य के
रागात्मक स्वहित शुरू से आत्मसंरक्षण1 सम्बन्धी स्वहितों के विरोधी होते हैं,
बल्कि यह कहना चाहिए कि प्रत्येक अवस्था में अहम् यह प्रयत्न करता है कि वह
यौन संगठन की तत्संवादी अवस्था से सामंजस्य बनाए रखे, और अपने-आपको उसके
अनुकूल बना ले। राग के परिवर्धन में अलग-अलग कलाओं का अनुक्रम सम्भवतः एक
नियत मार्ग से चलता है; पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस मार्ग को
अहम् की दिशा से प्रभावित किया जा सकता है। यह भी माना जा सकता है कि अहम और
राग के दोनों परिवर्धनों की कलाओं में कुछ सादृश्य और एक निश्चित संवादिता
होती है। सच तो यह है कि इस संवादिता में होने वाला विक्षोभ एक रोगजनक कारक
बन सकता है। हमारे लिए यह प्रश्न अधिक महत्त्वपूर्ण है कि जब राग अपना
परिवर्धन होते हुए किसी पहले वाले बिन्दु, अर्थात् स्थान, पर प्रबल बद्धता कर
चुका है, तब अहम् कैसे व्यवहार करता है। हो सकता है कि अहम् ने बद्धता की
यौन-स्वीकृति दे दी हो और तब वह उस सीमा तक विकृत होगा, या शैशवीय होगा, जो
दोनों एक ही बात हैं। पर यह भी हो सकता है कि यह राग.के इस संयोजन से
अपने-आपको उदासीन रखे, जिसका परिणाम यह होगा कि जहा राग बद्ध होता है, वहा
अहम् दमन का कार्य शुरू कर देता है।
इस प्रकार, हम इस नतीजे पर पहंचते हैं कि स्नाय-रोगों की कारणता में जो तीसरा
कारक द्वन्द्व-वश्यता है, वह अहम् के परिवर्धन से उतना ही जुड़ा हुआ है,
जितना राग के परिवर्धन से; इस प्रकार स्नायु-रोगों के कारणों के विषय में
हमारी अन्तर्दृष्टि विस्तृत हो जाती है। सबसे पहले प्रवंचन2 की सबसे साधारण
सामान्य दशा है। इसके बाद राग की बद्धता है (जो इसे विशेष धाराओं में जाने को
मजबूर करती है), और तीसरी द्वन्द्व-वश्यता-यह द्वन्द्व उस विशेष प्रकार के
रागात्मक उत्तेजनों को अस्वीकार करने पर अहम् के परिवर्धन से पैदा होता है।
इसलिए यह चीज़ उतनी अस्पष्ट और जटिल नहीं है, जितनी शायद आपने मेरे विवरण के
समय समझी हो। फिर भी अभी इसकी समाप्ति नहीं हुई। अभी कुछ और भी बात बतानी है,
और जो कुछ हम पहले जानते हैं, उसकी और भी चीर-फाड़ करनी है।
द्वन्द्व की प्रवृत्ति पर, और उसके साथ-साथ स्नायु-रोग की कारणता पर के
परिवर्धन का प्रभाव स्पष्ट करने के लिए मैं एक उदाहरण दूंगा, जो बिलकुल
काल्पनिक होते हुए भी, किसी भी दृष्टि से असम्भाव्य नहीं है। मैं इसे
नेस्ट्राय के प्रहसन वाला नाम देता हूं, अर्थात् औन दि ग्राउण्ड फ्लोर ऐंड इन
दि मैन्शन (निचली मंज़िल में और अटारी पर)। कल्पना कीजिए कि कोई चौकीदार किसी
मकान की निचली मंज़िल में रहता है और मालिक जो धनी और सम्भ्रांत व्यक्ति है,
ऊपर रहता है। उन दोनों के बच्चे हैं, और हम यह मान लेते हैं कि मालिक की छोटी
लड़की को सामाजिक दृष्टि से हीन चौकीदार के बच्चे से खेलने की खुली छूट है।
तब बहुत आसानी से ऐसा हो सकता है कि उनके खेल 'शैतानी' के हो जाते हैं,
अर्थात् उनका रूप यौन रूप हो जाता है : वे 'पिता और माता' का खेल खेलते हैं,
एक-दूसरे को अंतरंग कार्य करते समय देखते हैं, और एक-दूसरे की जननेन्द्रियों
को उद्दीप्त करते हैं। हो सकता है कि इसमें चौकीदार की लड़की ने मोहिनी डाली
हो, क्योंकि अपनी आयु पांच या छह वर्ष होने पर भी वह यौन विषयों में अधिक
जानकारी प्राप्त कर चुकी है। उनके बहुत थोड़ी देर साथ रहने पर भी इन घटनाओं
से दोनों बच्चों में कुछ यौन उत्तेजन पैदा हो जाएंगे जो उनका खेल बन्द हो
जाने के बाद कुछ वर्ष तक हस्तमैथुन के रूप में प्रकट होंगे। यहां तक दोनों
में समानता है, पर अन्तिम परिणाम दोनों में बहुत भिन्न होगा। चौकीदार की
लड़की शायद मासिक धर्म शुरू होने तक हस्तमैथुन करती रहेगी, और फिर बिना
दिक्कत के इसे छोड़ देगी। कुछ वर्ष बाद वह एक प्रेमी खोज लेगी और शायद एक
बालक को जन्म देगी, जीवन के आगे बढ़ने का कोई रास्ता ढूंढ़ेगी, शायद कोई
प्रसिद्ध अभिनेत्री बन जाएगी, और अन्त में अभिजात कुलीन वर्ग में आ जाएगी। हो
सकता है कि उसकी जीवन-यात्रा इतनी सफल न हो, पर अपरिपक्व अवस्था की यौन
चेष्टाओं से उसे कोई हानि नहीं होगी; वह स्नायु-रोग से मुक्त रहेगी, और अपना
जीवन सुख से बिता सकेगी। दूसरी बालिका में परिणाम बहुत भिन्न होगा। छोटी आयु
में ही उसमें यह भावना पैदा हो जाएगी कि मैंने बुरा काम किया है। कुछ ही समय
बाद वह हस्तमैथुन छोड़ देगी, यद्यपि उसे इसके लिए शायद बड़ा संघर्ष करना
पड़ेगा। पर फिर भी उसमें दबी हुई उदासी की भावना हृदय में बनी रहेगी। जब बाद
में तरुणावस्था आने पर उसे सम्भोग के बारे में कुछ पता चलेगा, तब वह अजीब डर
के साथ इससे दूर भागेगी और अनजान बनी रहना चाहेगी। सम्भवतः उसे फिर हस्तमैथुन
करने के लिए एक प्रबल आवेग पैदा होगा, जो वह किसी को बताने का साहस नहीं
करेगी। जब वह किसी पुरुष की पत्नी बनेगी, तब उसमें स्नायु-रोग पैदा हो जाएगा
और उसे विवाह के सुख और जीवन के आनन्द से वंचित कर देगा। अगर विश्लेषण द्वारा
इस स्नायुरोग का रहस्य उघाड़ा जा सकेगा, तो यह पता चलेगा कि इस अच्छी तरह
पालित-पोषित बुद्धिमती आदर्श प्रिय लड़की ने अपनी इच्छाओं को पूरी तरह दमन कर
दिया है, पर उसकी यौन इच्छाएं अचेतन रूप में उन थोड़े-से छोटे-छोटे अनुभवों
से जुड़ी हुई हैं, जो उसे बालकपन में अपनी सहेली के साथ हुए थे।
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1. Self-preservation
2. Privation
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