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मनोविश्लेषण

सिगमंड फ्रायड

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :392
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8838
आईएसबीएन :9788170289968

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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद


इससे भी अधिक प्रभावोत्पादक उदाहरण ओ० रैंक ने शेक्सपियर में से निकाला था। यह मर्चेण्ट आफ वेनिस में उस प्रसिद्ध दृश्य में आता है जिसमें वह सौभाग्यशाली विवाहार्थी तीन डिब्बियों में से एक को उठाता है; और सबसे अच्छा शायद यही रहेगा कि मैं आपके सामने इसका रैंक द्वारा लिखा हुआ छोटा-सा विवरण ही पढ़ दूं।

बोलने की एक गलती, जो शेक्सपियर के मर्चेण्ट आफ वेनिस (अंक तीन, दृश्य दो) में आती है, उससे प्रकट काव्यमय भावना की, और इस कौशल का प्रयोग करने के शानदार तरीके की दृष्टि से अत्यन्त सुन्दर बन पड़ी है। वालेनस्टाइन में आई गलती की तरह, जो मैं (फ्रायड) ने अपनी साइको-पैथोलोजी आफ एवरीडे लाइफ में उद्धृत की है, इससे भी प्रकट होता है कि कवि लोग ऐसी गलतियों के तन्त्र और अर्थ को अच्छी तरह समझते हैं, और यह मानकर चलते हैं, कि दर्शक भी उनकी बात समझेंगे। पोर्शिया, जिसे अपने पिता की इच्छा के कारण लाटरी से अपने पति का चनाव करना है. अब तक नापसन्द विवाहार्थियों से. उनकी बदकिस्मती के कारण बचती गई है। अन्त में बेसानियो के रूप में अपना मनपसन्द विवाहार्थी पाकर वह इस आशंका से डरती है कि वह भी गलत डिविया उठाएगा। वह उसे यह बताना चाहती है कि उस अवस्था में भी तुम मेरे प्रेम के विषय में निश्चिन्त हो सकते हो, पर अपनी शपथ के कारण वह उससे ऐसा नहीं कह पाती। इस आन्तरिक संघर्ष में कवि उससे अपने मनपसन्द विवाहार्थी को कहलवाता है:

विनती करती हूं कुछ ठहरो; सोचो कुछ दिन
और फिर पासा फेंको; क्योंकि यदि गलत पड़ा
तो छूटेगा संग तुम्हारा; अतः धरो कुछ धीरज।
कोई कहता मेरे उर में (किन्तु वह प्रेम नहीं है)
होगे दूर नहीं तुम मुझसे...
...बतला सकती थी मैं तुमको

कैसे सही चुनो वह डिबिया, किन्तु शपथ है मेरे ऊपर
अतः नहीं कह सकती कुछ; इसका बुरा न मानो;
बुरा मान कर पाप कराओगे तुम मुझसे
क्योंकि शपथ है मेरे ऊपर; ज़ालिम नयन तुम्हारे!
मुझे देखकर बांट चुके हैं दो टुकड़ों में;
मेरा आधा हुआ तुम्हारा, आधा शेष तुम्हारा-
मेरा-मेरा, कहना था; पर यदि मेरा, तो भी रहा तुम्हारा,
यों सारा हुआ तुम्हारा।

सिर्फ वह बात, जो वह उसे गूढ इशारे से बताना चाहती थी, क्योंकि असल में उसे यह बात सर्वथा उससे छिपानी चाहिए थी, यानी कि 'लाटरी से पहले भी मैं तुम्हारी थी और तुमसे प्यार करती थी', यह कवि ने मनोवैज्ञानिक अनुभूति की अत्यधिक सुन्दरता के साथ, उसकी गलती में, उसके मुंह से कहलवा दी है; और इस कलापूर्ण युक्ति द्वारा उसने प्रेमी की असह्य अनिश्चितता को भी दूर कर दिया है, और चुनाव के प्रश्न के बारे में दर्शकों के अनिश्चय को भी शांत कर दिया है। और देखिए अन्त में, पोर्शिया गलती से कही गई दोनों बातों का किस तरह मेल बिठाती है, कैसे वह उनके विरोध का परिहार करती है, और अन्त में उस गलती को उचित भी सिद्ध करती है :

...पर यदि मेरा, तो भी रहा तुम्हारा,

यों सारा हुआ तुम्हारा।

ऐसा हुआ है कि डाक्टरी के क्षेत्र से बाहर के दूसरे विचारकों ने अपने कथन द्वारा किसी गलती का अर्थ प्रकट किया है, और इस दिशा में हमने जो कार्य किया, उसको उन्होंने हमसे पहले किया है। परिहास-व्यंग्य-लेखक लिख्टनबर्ग (1742-1799) को आप सब जानते हैं, जिसके बारे में गेटे ने कहा था, 'जहां वह मज़ाक करता है, वहां कोई समस्या छिपी पड़ी होती है।' और कभी-कभी उस समस्या का हल उस मज़ाक में ही दिखाया होता है। लिख्टनबर्ग ने अपने परिहास तथा व्यंग्य से पूर्ण नोट्स में लिखा है, 'वह 'एंगेनोम्मेन' [क्रिया, जिसका अर्थ है (गलती से) सिद्ध या स्वीकृत मान लेना] के स्थान पर सदा 'एगामेम्नोन' पढ़ा करता था, होमर का वह इतना महान् पण्डित था।' इसमें पढ़ने में होने वाली गलतियों का वस्तुतः सारा सिद्धान्त आ जाता है।

अगले व्याख्यान में हम देखेंगे कि कवियों का मनोवैज्ञानिक गलतियों के अर्थ के बारे में जो विचार है, उससे हम सहमत हो सकते हैं या नहीं।

व्याख्यान

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