गजलें और शायरी >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
|
7 पाठकों को प्रिय 173 पाठक हैं |
तुम्हारे सजने-सँवरने के काम आयेंगे, मेरे खयाल के जेवर सम्भाल कर रखना....
9
पर्वत के शिखरों से उतरी सजधज कर अलबेली धूप
पर्वत के शिखरों से उतरी सजधज कर अलबेली धूप।
फूलों फूलों मोती टाँके कलियों के संग खेली धूप।।
सतरंगी चादर में लिपटी जैसे एक पहेली धूप,
जाने क्यों जलती रहती है छत पर बैठ अकेली धूप।
छाया आगे पीछे नाचे खुद से दूर न होने दे,
जैसे मुद्दत बाद मिली हो बिछुड़ी कोई सहेली धूप।
मुखिया के लड़के सी दिन भर मनमानी करती घूमे,
आँगन-आंगन ताके-झांके फिर चढ़ जाय हवेली धूप।
शायद कोई चाँद-सितारे रख दे उसके हाथों पर,
कब से दर-दर घूम रही है खोले यार हथेली धूप।
|