गजलें और शायरी >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
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तुम्हारे सजने-सँवरने के काम आयेंगे, मेरे खयाल के जेवर सम्भाल कर रखना....
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ज़ख़्मों से होकर ताबिंदा, शाम से गाने लगता है
ज़ख़्मों से होकर ताबिंदा, शाम से गाने लगता है।
दिल का ये मासूम परिंदा, शाम से गाने लगता है।।
करके दुनिया को शर्मिन्दा, शाम से गाने लगता है,
मेरी बस्ती का बाशिंदा, शाम से गाने लगता है।
धूपकी सख़्ती, हरगिज़ जिसके होंठ नहीं खुलने देती,
दिन भर का गूँगा कारिंदा, शाम से गाने लगता है।
मिलजुल कर दफ़ना देती है, दुनिया जिस दीवाने को,
क़ब्र में, फिर से होकर ज़िन्दा शाम से गाने लगता है।
दिन डूबे जब बोझिल साँसें सरगम में ढल जाती हैं,
साज़ पे दिलके, इक साज़िंदा शाम से गाने लगता है।
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