उपन्यास >> भूभल भूभलमीनाक्षी स्वामी
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निस्संदेह यह उपन्यास उन बातों को लेकर नहीं लिखा गया है, जो आगे बढ़ने के साथ पीछे छूटती जा रही हैं बल्कि समय के साथ नहीं छूटने वाली उन बातों को लेकर है जिन्हें अब तक छूट जाना चाहिए था।
अनादिकाल से ही स्त्री पुरुष संबंधों में आकर्षण और विकर्षण एक साथ बड़े वैचित्र्य के साथ मौजूद रहा है। स्त्री विशेष रूप से पुरुष के आकर्षण का केन्द्र रही है। उसके प्रति आकर्षण, उसे पाने की लालसा और भोग की कामना...। इस कामना की अभिव्यक्ति के अनेक सूक्ष्म और जटिल आयाम हैं। येन-केन-प्रकारेण दैहिक भोग की चाह उसे कुंठित और विकृत बना देती है, जो बलात्कार जैसे दुष्कृत्य के रूप में पहले स्त्री पर थोपा जाता है और फिर उसी पर आरोप लगाकर उसे प्रताड़ित भी किया जाता है।
निस्संदेह यह उपन्यास उन बातों को लेकर नहीं लिखा गया है, जो आगे बढ़ने के साथ पीछे छूटती जा रही हैं बल्कि समय के साथ नहीं छूटने वाली उन बातों को लेकर है जिन्हें अब तक छूट जाना चाहिए था।
निस्संदेह यह उपन्यास उन बातों को लेकर नहीं लिखा गया है, जो आगे बढ़ने के साथ पीछे छूटती जा रही हैं बल्कि समय के साथ नहीं छूटने वाली उन बातों को लेकर है जिन्हें अब तक छूट जाना चाहिए था।
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