उपन्यास >> दंतकथा दंतकथाअब्दुल बिस्मिल्लाह
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बहुचर्चित कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह का एक अद्भुत उपन्यास...
Ek Beegha Pyar
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
बहुचर्चित कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह की कलम से लिखा गया यह एक अद्भुत उपन्यास है। अद्भुत इस अर्थ में कि इसकी समूची संरचना उपन्यास के प्रचलित मुहावरे से एकदम अलग है। इसमें मनुष्य की कहानी है या मुर्गे की अथवा दोनों की, यह जिज्ञासा लगातार महसूस होती है, हालाँकि यह न तो फंतासी है, न कोई प्रतीक-कथा।
कथा नायक है एक मुर्गा, जो मनुष्य की हत्यारी नीयत को भाँपकर अपनी प्राण-रक्षा के लिए एक नाबदान में घुस जाता है। लेकिन क्या हुआ? यह तो अब नाबदान से भी बाहर निकलना मुश्किल है! ऐसे में वह लगातार सोचता है : अपने बारे में, अपनी जाति के बारे में। और सिर्फ सोचता ही नहीं, दम घोट देने वाले उस माहौल से बाहर निकलने के लिए जूझता भी है। लगातार लड़ता है, भूख और चारों ओर मँडराती मौत से, क्योंकि वह जिन्दा रहना चाहता है और चाहता है कि मृत्यु भी अगर हो तो स्वाभाविक, मनुष्य के हाथों हलाल होकर नहीं। इस प्रकार यह उपन्यास नाबदान में फँसे एक मुर्गे के बहाने पूरी धरती पर व्याप्त भय, असुरक्षा और आतंक तथा इनके बीच जीवन-संघर्ष करते प्राणी की स्थिति का बेजोड़ शब्द-चित्र प्रस्तुत करता है। लेकिन मनुष्य और मुर्गे के अन्तःसम्बन्धों की व्याख्या-भर नहीं है यह, बल्कि मुर्गों-मुर्गियों का रहन-सहन, उनकी आदतें, उनके प्रेम-प्रसंग, उनकी आकांक्षाएँ, यानी सम्पूर्ण जीवन-पद्धति यहाँ पेंट हुई है। शायद यही कारण है कि ‘दंतकथा’ में हर वर्ग का पाठक अपने-अपने ढंग से कथारस और मूल्यों की तलाश कर सकता है।
कथा नायक है एक मुर्गा, जो मनुष्य की हत्यारी नीयत को भाँपकर अपनी प्राण-रक्षा के लिए एक नाबदान में घुस जाता है। लेकिन क्या हुआ? यह तो अब नाबदान से भी बाहर निकलना मुश्किल है! ऐसे में वह लगातार सोचता है : अपने बारे में, अपनी जाति के बारे में। और सिर्फ सोचता ही नहीं, दम घोट देने वाले उस माहौल से बाहर निकलने के लिए जूझता भी है। लगातार लड़ता है, भूख और चारों ओर मँडराती मौत से, क्योंकि वह जिन्दा रहना चाहता है और चाहता है कि मृत्यु भी अगर हो तो स्वाभाविक, मनुष्य के हाथों हलाल होकर नहीं। इस प्रकार यह उपन्यास नाबदान में फँसे एक मुर्गे के बहाने पूरी धरती पर व्याप्त भय, असुरक्षा और आतंक तथा इनके बीच जीवन-संघर्ष करते प्राणी की स्थिति का बेजोड़ शब्द-चित्र प्रस्तुत करता है। लेकिन मनुष्य और मुर्गे के अन्तःसम्बन्धों की व्याख्या-भर नहीं है यह, बल्कि मुर्गों-मुर्गियों का रहन-सहन, उनकी आदतें, उनके प्रेम-प्रसंग, उनकी आकांक्षाएँ, यानी सम्पूर्ण जीवन-पद्धति यहाँ पेंट हुई है। शायद यही कारण है कि ‘दंतकथा’ में हर वर्ग का पाठक अपने-अपने ढंग से कथारस और मूल्यों की तलाश कर सकता है।
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