उपन्यास >> जहरबाद जहरबादअब्दुल बिस्मिल्लाह
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इसकी कथाभूमि मध्य प्रदेश एक पूर्वी छोर पर स्थित मंडला अंचल है। वहां के ग्रामीण परिवेश में रचे गए इस उपन्यास में ऐसे चरित्रों के निरूपण हुआ है जो आजाद हिंदुस्तान कि बड़ी-बड़ी विकास योजनाओं से एकदम अछूते और अपरिचित है और गरीबी कि रेखा के बहुत नीचे का जीवन जी रहे है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
झीनी-झीनी बीनी चदरिया के प्रख्यात रचनाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह का यह उपन्यास प्रकाशन-क्रम की दृष्टि से तीसरा किन्तु लेखन-क्रम से पहला है। इसकी कथाभूमि मध्य प्रदेश एक पूर्वी छोर पर स्थित मंडला अंचल है। वहां के ग्रामीण परिवेश में रचे गए इस उपन्यास में ऐसे चरित्रों के निरूपण हुआ है जो आजाद हिंदुस्तान कि बड़ी-बड़ी विकास योजनाओं से एकदम अछूते और अपरिचित है और गरीबी कि रेखा के बहुत नीचे का जीवन जी रहे है। उनके माध्यम से लेखक ने समाज की विसंगतियों, वर्जनाओं और दारुण विषमताओं को मार्मिक ढंग से उकेरा है। संक्षेप में कहें तो यह उपन्यास रोज-रोज मरकर जीनेवाले अनगिनत पति-पत्नियों, पुत्रों और प्रेमी-प्रेमिकाओं की, उनके दुःख दर्द की ऐतिहासिक महागाथा है। साथ ही लेखक ने ग्रामीण परिवेश का चित्रण इतनी सशक्त भाषा में किया है कि वह सब आँखों के सामने से गुजरता हुआ प्रतीत होता है। संवादों में मंडला की बोली के प्रयोग ने पात्रों को संभव और विश्वशनीय बनाया है।
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