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कहानी संग्रह >> कुछ भी तो रूमानी नहीं

कुछ भी तो रूमानी नहीं

मनीषा कुलश्रेष्ठ

प्रकाशक : अंतिका प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8111
आईएसबीएन :9788190742443

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भाषा-भाव-सूक्ष्मता-सांकेतिकता-दृष्टि और मौलिकता के लिहाज से परिपक्व मनीषा कुलश्रेष्ठ की समकालीन कहानियाँ

Kuchh Bhi to Roomani Nahin by Manisha Kulshreshtha

भाषा-भाव-सूक्ष्मता-सांकेतिकता-दृष्टि और मौलिकता के लिहाज से ‘कुछ भी तो रूमानी नहीं’ अच्छी कहानी है। अपनी कहानियों में मनीषा जो संयम बरतती हैं, वह परिपक्वता से ही उत्पन्न हो सकती हैं।... इनकी कहानियों में राजस्थान की नीला सन्नाटा बहुत खूब लगता है।

-कृष्णबलदेव वैद

मनीषा कुलश्रेष्ठ नवीनतम पीढ़ी की रचनात्मक प्रतिभाओं में से प्रमुख कहानीकारों में हैं। मुझे उनके साथ पहलगाम (कश्मीर) में एक अनुवाद कार्यशाला में काम के प्रति उनके उत्साह को देखने का अवसर मिला है। वहाँ पर उनकी बहुचर्चित कहानी ‘कठपुतलियाँ’ का आठ भाषाओं में अनुवाद हुआ था। मैंने वहाँ अनुभव किया कि उनकी कहानी लेखन-क्षमता के साथ रचनात्मक समझ भी बहुत गहरी है जिसके आधार पर वे समकालीन कहानी के मिजाज तो भी बहुत अच्छी तरह समझती हैं। इधर उनकी कई अच्छी कहानियाँ आई हैं। ‘कालिन्दों’, ‘फाँस’, ‘कुछ भी तो रूमानी नहीं’ आदि। उनकी कहानियों में संवेदनाओं का तरल फैलाव रहता है जिससे भाषा में छिपी ध्वनियाँ मुखरित करती हैं। इसके साथ ही उनकी भाषा में राजस्थानी अंचल की भी गंध है। वह उसे नया संस्कार देती है। फिर भाषाओं का समन्वय उनकी रचनात्मकता से बहुत गहरा जुड़ा हुआ है। मैं समझता हूँ जिस उत्साह और समर्पण के साथ वे अपने रचनाकर्म में जुटी हैं, उनके उज्जवल भविष्य की प्रमाण है।

-गिरिराज किशोर

सारी चीजों के खाक होने के तर्कों के विरुद्ध भी कुछ धड़कता है वह जो है सहज, स्मृति नहीं, भाषा की किलकारी अदाकारी नहीं, भ्रम नहीं, वह न ही किसी प्रकार का कर्कश आह्वान है। वह तो धड़कता जीवन है जो देश-दुनिया-समय की सरहदों को फलाँगते हुए मनीषा की कहानियों में अभिव्यक्त होता है।

-वंदना राग

मनीषा कुलश्रेष्ठ : चर्चित युवा कथा लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ का जन्म 26 अगस्त 1967 को जोधपुर में हुआ। शिक्षा, हिंदी में स्नातकोत्तर, एम. फिल.। कहानियाँ व लेख कई पत्रिकाओं में प्रकाशित। ‘बौनी होती परछाई’, ‘कठपुतलियाँ’ कहानी-संग्रह प्रकाशित। राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा 1989 में युवा साहित्यकार सम्मान से पुरस्कृत। कथाक्रम द्वारा आयोजित ‘अखिल भारतीय युवा कहानी प्रतियोगिता-2001’ में विशेष पुरस्कार से पुरस्कृत। संप्रति, वेब पत्रिका हिन्दी नेस्ट.कॉम की संपादिका।


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