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श्रंगार - प्रेम >> निमन्त्रण

निमन्त्रण

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :119
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7958
आईएसबीएन :9789350002353

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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...


मेरा अन्दाज़ा है, वे दोनों ढाका शहर से कहीं बाहर चले गये हैं। चट्टग्राम में भाई का एक दोस्त है, शायद उसी के पास गये हैं। लेकिन मैंने चट्टग्राम वाले दोस्त की जानकारी अब्बू को नहीं दी। भाई अकसर मुजाहिद नामक, अपने किसी दोस्त का ज़िक्र किया करते थे।

वे कहा करते थे, 'अगर एक बार मुजाहिद के घर पहुँच जाये, तो चट्टग्राम, बॉक्स बाज़ार-सभी जगह देखा जा सकता है।'

उस तरफ़ उनका कभी जाना नहीं हुआ! मुजाहिद भाई के स्कूल का साथी है। आजकल चट्टग्राम में बस गया है।

यह तो कहना ही पड़ेगा कि भाई में ज़बर्दस्त साहस है। किसी को कानों कान ख़बर नहीं होने दी और भाग लिये? पता नहीं, उनके हाथ में रुपये-पैसे हैं या नहीं। पता नहीं किसी मुसीबत में न पड़ गये हों! पता नहीं, चट्टग्राम तक पहुंच पाये या नहीं।

दिन गुज़रते रहे! मन में थोड़ी-थोड़ी करके आशंकाएँ भी जमा होती रहीं। हर दिन ही मैं कल्पना करती रही-तुलसी को सुर्ख लाल साड़ी पहना कर, भाई डरते-डरते घर में दाखिल हो रहे हैं! अन्दर आते ही, टुप से माँ-अब्बू के पैर छू कर कह रहे हैं- 'हमें माफ़ कर दें।'

लेकिन यह उम्मीद, उम्मीद ही बनी रही। भाई नहीं लौटे।

सुना है, निखिल काका ने जी डी एण्ट्री की है और सावधान किया है कि तुलसी को अगर मुसलमान बनाया गया, तो नतीजा अच्छा नहीं होगा।

बाबा जहाँ थे, वहीं से उन्होंने जवाब दे डाला, 'उस लड़की को मैं अपने घर में घुसने दूंगा, निखिल बाबू ने यह सोच कैसे लिया?'

***

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