श्रंगार - प्रेम >> निमन्त्रण निमन्त्रणतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...
मामा की यह बात सुन कर, मुझे और ज़्यादा रुलाई छूटने लगी। रोने की आवाज़ तक मैं रोक नहीं पायी।
मामा ने चीख-चीख कर समूचे घर में हंगामा मचा दिया।
उन्होंने अपनी दीदी को बुला कर पूछा, 'बच्ची इतनी रो क्यों रही है, दीदी? तुम तो दिन भर बावर्ची खाने में रहती हो और यह लक्ष्मी बेटी दिन भर मन के दुख में घुटती हुई रोती रहती है, कुछ ख़बर है तुम्हें?'
माँ आँचल में अपने भीगे हुए हाथ पोंछते-पोंछते बोल उठीं, 'मेडिकल में चांस नहीं मिला, शायद इसीलिए रो रही होगी। यूनिवर्सिटी में चांस मिला है, वह भी फिजिक्स या पॉल-साइंस में, पता नहीं! यह सब पढ़ कर क्या होगा, बताओ?'
मामा ने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा, 'रो मत, बिट्टी! हर विषय, अच्छा विषय होता है। बस, मन लगा कर पढ़ना ज़रूरी है...।'
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