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बारह घंटे

यशपाल

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7868
आईएसबीएन :978-81-8031-503

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आर्यसमाजी वर्जनाओं और दृष्टि की तर्कपूर्ण आलोचना करने वाला, यशपाल का एक विचारोत्तेजक उपन्यास !

Barah Ghante - A Hindi Book - by Yashpal

‘बारह घंटे, यशपाल का अपने पाठकों के लिए एक वैचारिक आमन्त्रण है। ईसाई समाज की पृष्ठभूमि में घटित इस उपन्यास के केन्द्र में विधवा विनी और विधुर फेंटम हैं जो कुछ विशेष परिस्थितियों में परम्पर भावनात्मक बंधन में बंध जाते हैं।

उपन्यास की नायिका विनी की ओर से इस वृत्तान्त को ‘पाठकों के सम्मुख एक अपील के रूप में’ रखते यशपाल इस उपन्यास के माध्यम से अनुरोध करते हैं कि ‘विनी को प्रेम अथवा दाम्पत्य निष्ठा निबाह न सकने का कलंक देने का निर्णय करते समय, विनी के व्यवहार को केवल परम्परागत धारणाओं और संस्कारों से ही न देखें। उसके व्यवहार को नर-नारी के व्यक्तिगत जीवन की आवश्यकता और पूर्ति की समस्या के रूप में तर्क तथा अनुभूति के दृष्टिकोण से, मानव में व्याप्त प्रेम की प्राकृतिक अनिवार्य आवश्यकता के रूप में भी देखें। वे पूछते हैं कि क्या नर-नारी के परस्पर आकर्षण अथवा दाम्पत्य सम्बन्ध को केवल सामाजिक कर्तव्य के रूप में ही देखना अनिवार्य है।

आर्यसमाजी वर्जनाओं और दृष्टि की तर्कपूर्ण आलोचना करने वाला, यशपाल का एक विचारोत्तेजक उपन्यास !

बारह घंटे


विनी सुबह ही नैनीताल पहुँची थी और अपनी मौसेरी बहिन जेनी के यहाँ ठहरी थी। उसने मुँह-हाथ धोकर, रेल के सफर और बस में पहनी हुई रेशमी ग्रे साड़ी बदल सफेद साड़ी पहन ली। विनी लखनऊ से एक छोटी बाल्टी में टयूबरोज के फूल, मोमबत्ती और अगरु साथ लेती आती थी। वह तुरन्त कब्रिस्तान जाने के लिए तैयार हो गयी।

जेनी और उसका पति पामर भी सौजन्य में विनी के साथ कब्रिस्तान जाना चाहते थे। उनका अनुमान था–विनी रात भर की यात्रा के बाद कुछ आराम करेगी। उसके स्वास्थ्य के विचार से यहीं उचित भी होता लेकिन जेनी को उस दिन पूर्व निश्चय के अनुसार, नौ बजे डेण्टिस्ट के यहाँ पहुँचना था। वह और पामर दोपहर के खाने के बाद ही विनी के साथ कब्रिस्तान जा सकते थे।

विनी आठ बजे बहिन के यहाँ पहुँच गयी थी। जेनी डॉक्टर के यहाँ जाने के लिए नाश्ता निबटा रही थी। उस समय जेनी और पामर विनी के साथ कब्रिस्तान नहीं जा सकते थे। विनी तीसरे पहर प्रतीक्षा नहीं करना चाहती थी। जेनी ने बड़ी लड़की डेजी से झटपट तैयार हो कर आन्टी के साथ चली जाने को कहा।

डेजी उसी समय सो कर उठी थी। वह लगभग बीस-पच्चीस मिनट में तैयार हो सकती थी। विनी ने कह दिया–लड़की को तकलीफ मत दो। धूप अधिक हो जायेगी, धूप से फूल कुम्हला जायेंगे। वह जरा भी प्रतीक्षा करने के लिये तैयार नहीं थी।

पामर के बहुत आग्रह करने पर विनी ने जैसे–तैसे एक स्लाइस निगल कर चाय का प्याला घुटक लिया। टयूबरोज के फूलों को धूप से बचाने के लिए मलमल का टुकड़ा पानी में भिगो कर बाल्टी को ढंक दिया। विनी ने फूलों की बाल्टी हाथ में ले ली। वह मकान के सामने की पगडंडी से रिक्शा लेने के लिये नीचे उतर गयी।

नैनीताल के कब्रिस्तान के फाटक से पति की समाधि की ओर बढ़ते हुए विनी की आँख छलछला आयी परन्तु पति की समाधि पहचान लेने में कोई असुविधा नहीं हुई। समाधि के सिरहाने की ओर दायें हाथ अन्य कब्रों के लिए स्थान अब भी खाली थे। समाधि की संगमरमर की शिला पर और आस-पास की समाधियों पर ढेरों लाल-भूरे तिनके फैले हुए थे। कब्रिस्तान में खड़े देवदार अपनी दीर्घ बाहु फैलाकर समाधियों पर छाया किये थे। इन वृक्षों के सलाइयों जैसे पत्ते सूख कर झड़ते थे तो लाल-भरी बड़ी-बड़ी सुइयों की तरह समाधियों पर छितरा जाते थे।

विनी ने ट्यूबरोज के फूलों की बाल्टी, मोमबत्ती और अगरु, समाधि की शिला के समीप देवदारों से झड़ी हुई सूखी पत्तियों से ढँकी जमीन पर रख दिये। वह समाधि के समीप पाँव के बल बैठ गयी। सफेद साड़ी के आँचल से समाधि पर फैली हुई धूल और पत्तियाँ झाड़ दीं। शिला को अपने हाथों से यत्न से पोंछते समय उसके आँसू टपकते जा रहे थे। समाधि आँसुओं से पूँछ गयी। फूलों की बाल्टी से मुरझाये ट्यूबरोदखींच कर उन्हें ठीक किया और बाल्टी आदर से समाधि पर रख दी। समाधि पर मोमबत्ती और सुगन्ध जला दिये। समाधि के समीप धरती पर घुटने टेक कर उसने पति की आत्मा की सदगति के लिये प्रार्थना की।

विनी समाधि के समीप प्रार्थना करते-करते स्मृतियों और कल्पनाओं में बह गयी। ध्यान आने पर फिर प्रार्थना आरम्भ की और फिर स्मृतियों में बह गयी। वह तीसरी बार प्रार्थना समाप्त करके भी न उठी। प्रार्थना की मुद्रा में आँखें मूँदे, गर्दन झुकाये, सीने पर हाथ बाँधे फिर स्मृतियों और कल्पनाओं में खो गयी।

विनी पति की समाधि के समीप आँखें मूँदे, सिर झुकाये बैठी थी। समाधि की संगमरमर की मोटी कठोर शिला, शिला के नीचे तीन-चार फुट मिट्टी की तह और कफ़न के बक्से का काट का आवरण उसकी स्मृतियों और कल्पनाओं की दृष्टि को रोक नहीं पा रहे थे। विनी को समाधि के भीतर रक्खे गये लम्बें बक्स में पति का चेहरा और शरीर झील में डूबने से मृत्यु के कारण नीले और विकृत नहीं, अपितु स्वस्थ और प्रसन्न दिखाई दे रहे थे। वह रोमी नेपियर को उजली सफेद कमीजपर टाई लगाये, डिनर सूट पहिने स्पष्ट देख रही थी। विनी को पति का स्वस्थ शरीर और चेहरा बदलती हुई अनेक भाव-भंगिमाओं में गर्मी-सर्दी की विभिन्न पोशाकों में दिखाई दे रहा था।

विनी की कल्पना में अनेक घटनाओं से सम्बद्घ पति के वार्तालाप, भाव-भंगिमाएँ और बदलती हुई पोशाकों के अवसर और उन प्रसंगों के स्फुट इतिहास पूरे ब्यौरे से सजीव होते जा रहे थे। उसे सुधि न रही, समाझि के समीप कब से बैठी थी।

विनी ग्यारह मास पूर्व पति के साथ नैनीताल आयी थी। भाग्य ने पति को छीन कर वहीं रख दिया था। उसे अकेले ही लखनऊ लौटना पड़ा था।

विनी को समाधि के समीप देवदार के सूखे पत्तों पर टिके घुटनों में असुविधा अनुभव होने लगी तो धरती पर हाथ टेक कर खड़ी हो गयी परन्तु समाधि के समीप से हट न सकी। वह गर्दन झुकाये समीप के शिलापट पर साकार होती हुई स्मृतियों में डूबी रही। थकान के कारण कभी दायें पाँव पर बोझ बदल लेती, कभी बायें पर। स्मृतियाँ निरन्तर सजीव और साकार होती जा रही थीं और उनके सूत्र उसको समाधि के समीप से हटने नहीं दे रहे थे। थकावट से घुटने काँपने लगे तो वह फाटक की ओऱ लौट पड़ी। विनी की आँखें फिर छलछला आयीं। उसने पर्स में से दूसरा रूमाल निकाल लिया। फाटक की ओर लौटते समय वह आँसू पोंछती जा रही थी।

विनी पति की समाधि से कब्रिस्तान के फाटक की ओर लौटी तो सामने सड़क पर पाँव पसारे, आराम से बैठे पहाड़ी रिक्शा-कुली कपड़े झाड़ते हुए तत्परता में खड़े हो गये। विनी को कब्रिस्तान के निर्जन में आँसू बह आने से संकोच अनुभव नहीं हुआ था। विनी ने आँसू भरी लाल आँखें बचाये रखने के लिये कुलियों की ओर नहीं देखा, उनकी ओर प्रतीक्षा करने के लिए संकेत कर दिया। वह लौटने से पहले समाधि पर एक बार प्रार्थना कर लेना चाहती थी। वह ड्योढ़ी में पड़ी बेंच पर बैठने लगी तो सुना : गुड मार्निग।

विनी को दायीं ओर देखना पड़ा–बेंच के दूसरे सिरे पर एक प्रौढ़ सज्जन खड़ा था। विनी को लगा, सज्जन बेंच से उठ कर खड़ा हो गया था। उसने भद्र महिला के आदर में सिर से फेल्ट हैट उतार कर गुड मार्निग कह दिया था। विनी की डबडबाई गुलाई आँखें अपनी ओर होने पर प्रौढ़ सज्जन ने बहुत गहरे निश्वास से कहा : ईश्वर आपको धैर्य, व्यथा को सह सकने का बल और शांति दे। सज्जन शिक्षित भारतीय ईसाई समाज के साधारण अभ्यास के अनुसार अंग्रेजी में बोला था।

विनी ने गहरे निश्वास से सज्जन की सहानुभूति के लिये धन्यवाद दिया और अपनी आँसू भरी गुलाबी आँखें संकोच से झुकाये बैठ गयी और बेंच के बायें बाजू की टेक ले ली। विनी के बैठ जाने पर प्रौढ़ सज्जन ने भी बेंच के दायें सिरे पर सिमिट कर बैठ गया। उसने फेल्ट हैट बेंच पर रख दिया और दोनों हाथ लिपटी हुई छतरी की मूठ पर टिका लिये। उसकी गर्दन प्रार्थना और गहरी समवेदना की मुद्रा में झुक गयी।

विनी अपने गहरे शोक को किसी से नहीं बँटाती थी। किसी की ओर न देख कर वह अपने शोक में डूबी रहती थी। किसी के सामने आँसू भरी आँखों से अपनी विह्वलता प्रकट करना उसे आत्म-सम्मान के अनुकूल नहीं जँचता था। शोक में डूबी वह न दूसरों की ओर देखना चाहती थी और न अफना अभ्यंतर दूसरों को दिखाना चाहती थी परन्तु बेंच के दूसरे सिरे पर बैठे व्यक्ति का शोक-विजड़ित मुद्रा से और उसके गहरे श्वासों से सम्प्रेषित मौन समवेदना और सहानुभूति अनुभव न करना सम्भव नहीं था। उस व्यक्ति की उपस्थिति से विनी को संकुचित और खिन्न नहीं किया। उससे पायी समवेदना के धन्यवाद में एक गहरे निश्वास से सोच लिया–स्वयं कोई अभागा...।

विनी बेंच के दूसरे सिरे पर बैठे हुए, स्वयं अपने शोक और उसके प्रति समवेदना में गर्दन झुकाये सज्जन से आँखें बचाये थीं। विनी की झुकी हुई दृष्टि फाटक के बाहर सड़क की ओर थी। फाटक के कोने के पास सड़क पर धुएँ का तार छोड़ता हुआ आधा सिगरेट, उसी के समीप बेंच पर बैठे सज्जन की उपस्थिति का संकेत कर रहा था। उस व्यक्ति ने विनी के आदर में खड़े होकर, सिर से टोपी उतार सकने के लिए ही वह अधजला सिगरेट फेंक दिया था। विनी सज्जन को नहीं देख रही थी परन्तु वह सिगरेट विनी को उसकी उपस्थिति के प्रति सचेत बनाये था।

विनी की वियोग-व्यथा में एक सूक्ष्म-सी टीस मिल गयी–कोई वियोग व्यथित बेचारा...सम्भ्वतः पत्नी...ओफ !

विनी को लाने वाले रिक्शा कुलियों को विलम्ब खल रहा था। वह बेंच पर कुछ देर विश्राम करके भी लौटने के लिए सड़क की ओर न बढ़ी तो एक कुली ने विनी की ओऱ बढ़ कर दुहाई दी : मेम साहब, बहुत देर हो गया, हम कब तक बैठेगा ! पादरी आ जायेगा।

विनी ने कुली की ओर नजर उठा कर उत्तर देने के लिये श्वास लिया और बोल सकने के लिये गले में भर आये आँसुओं को निगला।
बेंच के दूसरे सिरे पर बैठा सज्जन कुली को सम्बोधित कर, विनी की ओर से आर्द्र स्वर में बोला उठा : भाई, जरा और ठहर जाओ, कोई बात नही...!
कुली ने फिर आपत्ति की : आप तो अभी आया है, हम दो घंटे से बैठा है। कुली ने आकाश की ओर संकेत किया : वह पछाँगी बादल देखता है, बहुत जोर का पानी आ रहा है साहब !

सज्जन उठ कर खड़ा हो गया था। उसने विनी के बोल सकने से पहले ही, विनी की मनोवस्था के प्रति सहानुभूति से, बहुत धीमे स्वर में कुलियों से उतावली न करने का अनुरोध किया।
विनी ने कृतज्ञता में सज्जन की तरफ देखा। वह विनी की ओर देखे बिना छतरी टेकता कब्रिस्तान के भीतर चला गया था। विनी कब्रिस्तान से लौटने के पहले पति की समाधि पर एक बार प्रार्थना कर लेना चाहती थी। उसने कुलियों को आश्वासन दिया : तुम्हारा टाइम ज्यादा लगेगा तो थोड़ा पैसा और दे देंगे।

कुलियों ने असंतोष प्रकट किया : आप पैसा दे देगा...हमारा रिक्शा का टैम खतम हो गया !
दूसरा कुली बोल पडा : देखो, यह कैसा पानी आता है ! उसने आकाश की ओर हाथ उठाया : हम इतनी देर से कह रहा था–चलो, चलो...।

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