लोगों की राय

श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

Like this Hindi book 0

मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से


अगले दो-तीन घंटे वह नेट पर कुछ ढूँढ़ती रही। अपने मतलब की जानकारी पढ़ने के बाद उसने सोचा कि पास के शापिंग सेंटर में शायद उसके मतलब की जानकारी मिल जाये। यह सोचकर फटाफट तैयार होकर बाजार की ओर चली गई। वापस आकर उसने कपड़े बदले और हल्के कपड़े वाली ब्रा कुर्ते के नीचे पहन लिया और बालों को थोड़ा ढीला करके बेफिक्री की कुछ लटें दोनों ओर निकाल लीं।

शाम को प्रकाश के आने पर उसने गर्मागर्म चाय और पकौड़ियाँ बनाई और उसे आज का समाचार पत्र पकड़ा दिया। थोड़ी देर दिन के हाल-चाल लेने के बाद प्रकाश अपने दफ्तर की फाइलों में उलझ गया। रात के खाने के बाद दोनों टीवी का प्राइम टाइम प्रोग्राम देख रहे थे। प्रकाश का हाथ बार-बार अपनी पीठ और दायें कंधे पर जा रहा था।


कामिनी का ध्यान प्रकाश पर गया और उसने पूछ ही लिया, "कुछ तकलीफ है क्या?"
प्रकाश बोला, "हाँ, पीठ और कंधे में सुबह से ही दर्द हो रहा है।"
कामिनी ने कहा, "क्या गर्दन फिर से अकड़ गई?"
प्रकाश बोला, "हाँ, वही हुआ है।"

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

Abc Xyz

This is not a complete book. Story- garmio mein is not complete. Please upload the full version.