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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से

गरमियों में

स्नानघर से निकलते समय कामिनी अपने सिर को झुकाकर गीले बालों को फटकार कर उनका पानी निकाल रही थी। स्नानघर से निकलकर वह भगवान का कोई भजन गाती हुई सीधे अपने बेडरूम में लगे सबसे तेज गति से घूमते हुए सीलिंग फैन के ठीक नीचे जाकर खड़ी हो गई। जून की गरमियों में पंखे की हवा से उसका गीला बदन धीरे-धीरे सूखने लगा। दिन के ग्यारह बजे भी गर्मी आजकल अपने पूरे यौवन पर पहुँच जाती थी। हालत यह थी कि ग्यारवहीं मंजिल पर बने उसके फ्लैट में तेज गरमी के कारण नहाने के बाद स्नानघर से निकलकर शयनकक्ष तक पहुँचते-पहुँचते भी इंसान पसीने में भीग जाता था। स्ननानघर में लगे फौव्वारे से भी केवल गर्म पानी ही निकलता था। इस समस्या का हल उसने पिछले साल से ही खिड़की खोलकर निकाल लिया था।

कामिनी और उसका पति दो साल पहले ही इस नये फ्लैट में आये थे। कामिनी का विवाह लगभग 12 साल पहले हुआ था, परंतु अभी तक उनकी कोई संतान नहीं थी। उसने और उसके पति दोनों ने कई अस्पतालों, डॉक्टरों के चक्कर लगाए थे। डॉक्टरों के अनुसार सब ठीक था। पता नहीं क्या बात थी, परंतु उनका काम अब तक नहीं बना था।

गर्मी से पीछा छुड़ाने के लिए वह जानबूझकर गीले बदन स्नानघर से निकलती और सीधे पंखे के नीचे पहुँच जाती थी। वैसे भी सुबह-सुबह उसके पति के चले जाने के बाद से घर में उसके अतिरिक्त कोई नहीं होता था, इसलिए अपने ही घर के अंदर उसे क्या करना है, इस बारे में उसे कुछ सोचने की आवश्यकता नहीं होती थी। किसी भी कमरे में जाओ, कुछ भी करो, पूरी स्वतंत्रता थी।

चेहरे के पानी को सुखाने के लिए वह छत पर घूमते पंखे को देखने लगी। कुछ मिनटों बाद ही उसकी दृष्टि फिसलती हुई तीन हिस्सों वाले दर्पण पर गई। वह पंखे के नीचे से निकलकर बीच वाले दर्पण के ठीक सामने खड़ी होकर रोज की तरह अपने सुघड़ शरीर को मोहक दृष्टि से निहारने लगी। कुछ देर अपने पूर्णतः निर्वस्त्र शरीर को देखते रहने के बाद उसने अपने लंबे बालों को चेहरे के दोनों ओर से घुमाया और अपने वक्षों के ऊपर से ले जाते हुए हल्के उभरे पेट को सहलाते हुए अपने गुप्तांग के बालों से कुछ इस तरह मिला लिया कि उसके सिर और गुप्तांग के बाल एक आकार में बदल गये।

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